गीता जयंती विशेष: मोक्षदा एकादशी पर जन्मे सनातन ज्ञान का अनंत संदेश

गीता जयंती विशेष: मोक्षदा एकादशी पर जन्मे सनातन ज्ञान का अनंत संदेश

जे टी न्यूज, फरीदाबाद: लगभग 5000 वर्ष पूर्व, मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के पावन दिन, जिसे मोक्षदा एकादशी कहा जाता है, कुरुक्षेत्र के रणभूमि में वह दिव्य संवाद हुआ जिसने मानव इतिहास की दिशा ही बदल दी यही दिन गीता जयंती के रूप में मनाया जाता है। महाभारत के भीष्म पर्व में स्थित यह ज्ञानशास्त्र किसी एक सम्प्रदाय का ग्रंथ नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता को दिशा देने वाला सार्वभौमिक, सार्वकालिक और सर्वमान्य धर्मग्रंथ है, जिसे गीतोपनिषद् भी कहा जाता है, क्योंकि यह स्वयं उपनिषदों का सार है और उपनिषद वेदों का सार अर्थात गीता को वेदों का ‘पॉकेट संस्करण’ भी कहा जाता है। भारतीय परंपरा के अनुसार महाभारत और गीता की रचना महर्षि वेदव्यास ने की, और एक अद्भुत कथा के अनुसार भगवान गणेश ने अपने टूटे हुए दाँत से इसे लिखकर अमर कर दिया। 18 अध्यायों और 700 श्लोकों में विभाजित यह ग्रंथ संस्कृत भाषा में रचित है, जिसमें 574 श्लोक स्वयं श्रीकृष्ण के, 85 अर्जुन के, 40 संजय के और 1 श्लोक धृतराष्ट्र का माना जाता है। मुख्य पात्रों में अर्जुन पांडवों के योद्धा, श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी और गुरु, संजय धृतराष्ट्र के मंत्री और दिव्यदृष्टा, तथा धृतराष्ट्र कौरवों के पिता व कुरुओं के राजा सम्मिलित हैं। गीता जयंती इसलिए भी विशेष है क्योंकि माना जाता है कि आर्यभट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईसा पूर्व हुआ था और इस युद्ध के ठीक 35 वर्ष बाद श्रीकृष्ण ने देह त्यागी, तब उनकी आयु 119 वर्ष थी; इसी गणना से माना जाता है कि गीता का ज्ञान लगभग 5157 वर्ष पूर्व अर्जुन को दिया गया। परंपरा कहती है कि यह दिव्य उपदेश पहले सूर्यदेव विवस्वान को मिला, फिर मनु, फिर इक्ष्वाकु को और अंततः कुरुक्षेत्र में अर्जुन को। जब अर्जुन मोह और विषाद से भरकर अपने कर्तव्य पथ से विचलित होकर युद्ध छोड़ने का निर्णय लेने लगे, तब श्रीकृष्ण ने मात्र 45 मिनट में वह दिव्य ज्ञान दिया जिसने धर्म, नीति, कर्तव्य, भक्ति, ज्ञान और कर्म के गूढ़ सिद्धांतों को सुस्पष्ट किया और अर्जुन को पुनः धर्मयुद्ध के लिए प्रेरित किया। संजय ने इस संवाद को दिव्यदृष्टि द्वारा सुना और धृतराष्ट्र को सुनाया, जबकि कहा जाता है कि हनुमान सहित ब्रह्मा, विष्णु, महेश और देवलोक के अनेक देवताओं ने भी इस अमर संवाद को सुना। महाभारत को पंचमवेद कहा गया है, और गीता उसका सबसे उज्ज्वल रत्न है, क्योंकि इसमें वह सब कुछ है जो मानव जीवन, समाज, ब्रह्मांड और अध्यात्म को समझने के लिए आवश्यक है धर्म, कर्म और मोक्ष का मार्ग, योग और तप, यम-नियम, नीति, राजनीति, युद्धनीति, आत्मा और परमात्मा का स्वरूप, त्रिगुणों की अवधारणा, सृष्टि और मानव उत्पत्ति, जीवन प्रबंधन, राष्ट्र निर्माण, संस्कार, वंश, कुल, भक्ति, ध्यान, उपासना और मानव सभ्यता के नैतिक मूल्यों तक हर विषय का गहन विवेचन गीता में मिलता है। यह एकमात्र ऐसा शास्त्र है जिस पर विश्व की लगभग हर भाषा में सबसे अधिक टीकाएँ, भाष्य, निबंध, शोधग्रंथ और व्याख्याएँ लिखी गई हैं, और प्रत्येक शब्द अपने भीतर एक पूरा दर्शन समेटे हुए है, जैसे हर नए अध्ययन के साथ नए अर्थ खुलते जाते हैं। गीता न केवल हिंदू धर्म का आधारभूत ग्रंथ है, बल्कि मानवता के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी है क्योंकि यह हमें बताती है कि ईश्वर एक है, आत्मा अविनाशी है, जन्म-मरण केवल परिवर्तन हैं, और मनुष्य का सर्वोच्च कर्तव्य है धर्मानुसार कर्म करते हुए निष्काम भाव से जीवन जीना। इसलिए गीता जयंती केवल एक धार्मिक तिथि नहीं, बल्कि उस शाश्वत ज्ञान की स्मृति है जो मानव को मोह, अज्ञान और भ्रम से मुक्त कर कर्तव्य, विवेक, साहस और सत्य की ओर अग्रसर करता है। यही कारण है कि गीता को पढ़ने से हर बार नए रहस्य खुलते हैं और यह जीवनभर मनुष्य को प्रकाश देती रहती है युगों-युगों तक प्रासंगिक, जीवंत और मार्गदर्शक।

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