डॉ. छोटेलाल यादव ‘प्रचण्ड’ के संघर्षों का परिणाम है

डॉ. छोटेलाल यादव ‘प्रचण्ड’ के संघर्षों का परिणाम है

फिराक बस सेवा 35 वर्षों से कर रहे हैं फ़िराक़ गोरखपुरी के नाम को जीवंत

समाज-सेवा और साहित्य-प्रसार में समर्पित ‘फ़िराक़ साहब सेवा संस्थान’

जे टी न्यूज, गोरखपुर/बनवरपार:

गोरखपुर जिले की गोला तहसील के बनवरपार ग्राम निवासी डॉ. छोटेलाल यादव ‘प्रचण्ड’ विगत 35 वर्षों से महान शायर रघुपति सहाय ‘फ़िराक़ गोरखपुरी’ की साहित्यिक विरासत को सहेजने और समाजसेवा में समर्पित हैं। अपने न सिर्फ प्रादेशिक स्तर पर बल्कि भारत सरकार को इसके लिए ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की और योगी आदित्यनाथ जी की कृपा से दिल्ली से एक बस की यात्रा शुरुआत हुई है जिसका नाम फिराक गोरखपुरी के नाम पर रखा गया फिराक गोरखपुरी की स्मृति में यह बड़ी उपलब्धि है आपको बताते चलें छोटे लाल यादव 35 सालों से समर्पितहैं स्नातक शिक्षा प्राप्त डॉ. यादव ‘फ़िराक़ साहब सेवा संस्थान’ के संस्थापक/अध्यक्ष हैं, जिसके माध्यम से वे फ़िराक़ साहब की जन्मस्थली को एक साहित्यिक और पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं।

साहित्य और संस्कृति के संरक्षक

संस्थान का मुख्य कार्य समाज में फ़िराक़ गोरखपुरी की कृतियों का प्रचार-प्रसार करना और साहित्य के प्रति जागरूकता फैलाना है। डॉ. छोटेलाल यादव हर वर्ष 28 अगस्त को फ़िराक़ साहब की जयंती और उनकी पुण्यतिथि पर भव्य मुशायरों व कवि सम्मेलनों का आयोजन करते हैं। यह आयोजन दशकों से गोरखपुर की साहित्यिक कैलेंडर का अभिन्न अंग रहा है।

मानवीय सेवा में अग्रणी भूमिका

साहित्यिक कार्यों के साथ ही डॉ. यादव समाज-सेवा में भी सक्रिय हैं। वे निरंतर समाज के पीड़ितों और असहायों की मदद करते हैं तथा हर वर्ष ज़रूरतमंदों को कम्बल वितरित करते हैं, जिससे वंचित वर्ग को राहत मिल सके।

फ़िराक़ की जन्मस्थली को विकसित करने की योजना

डॉ. छोटेलाल यादव की अगुवाई में यह संस्थान फ़िराक़ गोरखपुरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम कर रहा है। उनकी प्रमुख योजनाओं में शामिल हैं:

फ़िराक़ गोरखपुरी वाचनालय एवं पुस्तकालय की स्थापना।

जन्मस्थली पर विद्यालय का निर्माण।

फ़िराक़ नगर बनवरपार में फ़िराक़ गोरखपुरी स्मारक का निर्माण।

गोरखपुर-गोला मार्ग पर फ़िराक़ गोरखपुरी प्रवेश द्वार का निर्माण।

डॉ. यादव ने बताया कि फ़िराक़ साहब की जन्मस्थली को संग्रहालय व पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए उनके प्रयास ज़ोरों पर हैं। उनकी निष्ठा और 35 वर्षों की अथक मेहनत ने फ़िराक़ गोरखपुरी के नाम को जन-जन तक पहुँचाने में अमूल्य योगदान दिया है।

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