पढा लिखा और सुखी आम आदमी भाजपा को पसंद नहीं
नितीश ने भी पकड़ ली वही राह : आर के राय प्रधान महासचिव अप्पन पार्टी
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पढा लिखा और सुखी आम आदमी भाजपा को पसंद नहीं
नितीश ने भी पकड़ ली वही राह : आर के राय प्रधान महासचिव अप्पन पार्टी

जे टी न्यूज, समस्तीपुर: बिहार के वित्त रहित शिक्षकों केलिए परीक्षा फल आधारित अनुदान की घोषणा से वित्त सहित करके जो क्रान्तिकारी फैसला किया उसका वित्त रहित शिक्षक व शिक्षक संगठनो ने मुक्त कंठ से स्वागत किया। परंतु कुछ दिनों बाद ही मुख्यमंत्री के कथनी और करनी में जमीन आकाश का अंतर सभी के समझ में आ गया कि बिहार के विभिन्न विश्वविद्यालयों से संबद्धता प्राप्त करीब 250 कॉलेज के कर्मचारियों और शिक्षकों का भविष्य आज भी अंधकार में है। क्योंकि तमाम महाविद्यालय के संस्थापक किसी ने किसी राजनीतिक दल से संबंध रखते हैं और अनुदान की राशि महाविद्यालय के खाते में ही जाती है। फलत: उस रकम का भी बंदरबांट होता है और महाविद्यालय कर्मियों के हिस्से में से मोटी रकम सचिव और प्रबंधन की जेब में चला जाता है, और महाविद्यालय कर्मी बेचारगी के साथ जो मिलता है उसे ही अपनी नियती मान लेते हैं। इसकी जानकारी सीएम सहित तमाम आलाधिकारियों को है मगर आज तक इन शिक्षा कर्मियों की हकमारी रोकने केलिए कोई कदम नहीं उठाया जा सका।
सीएम ने अनुमंडल स्तर पर एक डिग्री काॅलेज खोलने की भी घोषणा की है। मगर घोषणा को अमली जामा पहनाने में सरकार की नीयत सामने आ गई, और संसाधन के अभाव में नितीश कुमार की यह घोषणा लोक लुभावन जुमला बन कर रह गया है। जबकि बिहार में 150 से ज्यादा कॉलेज के पास 500 करोड़ से लेकर 1500 करोड रुपए तक की चल अचल संपत्ति और पर्याप्त भवन, उपस्कर एवं शिक्षको की टीम है, इसके बावजूद उन कॉलेजों का अधिग्रहण नहीं कर सरकार नया महाविद्यालय खोलने की जिद पर अड़ी है। इससे अपनी एवं अपने परिजनों के तीन पीढियों के सपने और अरमानों को बिहार की शिक्षा की वेदी पर एक बेहतर कल की उम्मीद में कुर्बान करने वाले शिक्षा कर्मियों में निराशा व्याप्त है। इन सारी बातों में सरकार और मुख्यमंत्री के मानसिकता के बारे में सहज समझा जा सकता है। जानकारी के मुताबिक 2016 के बाद मुख्यमंत्री द्वारा डिग्री काॅलेज की घोषणा के बाद से ही अनुदान की राशि नहीं दिया जाना सरकार की मंशा का आईना है। कुल मिला कर मुख्यमंत्री के नीति और नियत में कहीं ना कहीं आम लोगों और बिहार के शैक्षणिक वातावरण के प्रति ठीक नहीं लगता है। मुख्यमंत्री के शासनकाल में जब-जब भारतीय जनता पार्टी से इनका घर जोड़ होता है तो जन विरोधी काम तेजी के साथ होने लगता है। भारतीय जनता पार्टी तो स्थापना काल से ही आम आदमी और शिक्षा के प्रति उदासीन रही है। पढ लिख लेगा इंडिया तो भाजपा का झंडा कैसे ढोयेगा इंडिया के तर्ज पर भाजपा ने अपना अलग ही एजेंडा बना रखा है। औद्योगिक घरानों की पोषक भाजपा को पढा लिखा और सुखी आम आदमी कब पसंद रहा है।

