कठपुतली
कठपुतली

जे टी न्यूज
भरती थी जो कुलांचे,
ढल गई कब नवीन सांचे?
कहाँ, पे वो थी जन्मी?
कभी चंचला, आज सहमी।
सुगंधित सी “क्यारी”,
मां-बाप की राज-दुलारी।
लाड़ली हरेक इंसान,
भूली अब खुद की पहचान।
तलक देखिए मरण,
पहने चुप्पी के “आभूषण।
घूंघट तो कहीं पल्लू ,
दिलाये याद अनकहे पहलू।

लबों पर झूठी हंसी,
रीतियों के गर्त में रहे फंसी।
सीख आंसू छुपाना,
गिरा पलकों का शामियाना।
फसाना सुनाये सदी,
न, सूखी अश्कों की पर नदी।
काश सोच बदलती,
नभ में बिन रोकटोक उड़ती।
थे नदारद जज़्बात,
दी बंदिशों ने अनूठी सौग़ात।
भांति है कठपुतली,
सुलगे “गिल” बन पर तीली।
नवनीत गिल

