पाँच माह से वेतन विहीन नियोजित शिक्षक पहुँचे भुखमरी की कगार पर: प्रदीप पप्पू”
पाँच माह से वेतन विहीन नियोजित शिक्षक पहुँचे भुखमरी की कगार पर: प्रदीप पप्पू”
जे टी न्यूज़, पटना : बिहार राज्य प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष एवं बिहार शिक्षक एकता मंच के संयोजक प्रदीप कुमार पप्पू ने राज्य सरकार और शिक्षा विभाग पर तीखा हमला बोलते हुए कहा है कि राज्य के हजारों नियोजित शिक्षक बीते पाँच महीनों से वेतन के अभाव में भुखमरी का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि दिसंबर 2024 से अब तक वेतन नहीं मिलने से शिक्षकों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो चुकी है और अब वे आंदोलन के लिए विवश हो रहे हैं। श्री पप्पू ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा जीओबी मद से वेतन पाने वाले प्रारंभिक शिक्षकों के लिए दिसंबर 2024 से जिलों को राशि का आवंटन ही नहीं किया गया, जिसके चलते शिक्षक बिना वेतन के ही विद्यालयों में पठन-पाठन का कार्य कर रहे हैं। #”काम का बोझ लगातार, वेतन शून्य” श्री पप्पू ने कहा, “राज्य सरकार सिर्फ आदेश देना जानती है, वेतन देना नहीं। शिक्षकों से लगातार कार्य लिया जा रहा है, लेकिन उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं की जा रही हैं। यह केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि शिक्षकों के साथ एक प्रकार की मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना है।” उन्होंने यह भी उजागर किया कि शिक्षा विभाग का वह आदेश, जिसमें कहा गया है कि शिक्षक वेतन भुगतान के बाद ही डीआईओ एवं डीपीओ का वेतन होगा, एक दिखावा मात्र बनकर रह गया है, क्योंकि जिलों को आवंटन ही नहीं दिया जा रहा। # “गुणवत्ता की बात, पर हालात विपरीत”
पप्पू ने कहा कि सरकार एक ओर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करती है, वहीं शिक्षक वेतन के बिना काम कर रहे हैं। “भूखे पेट क्या खाक पढ़ाएंगे शिक्षक? ये हालात बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ हैं,” उन्होंने जोड़ा। # “आंदोलन की राह पर शिक्षक” उन्होंने मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, अपर मुख्य सचिव और शिक्षा निदेशक को ज्ञापन सौंपकर जीओबी मद से लंबित राशि का तत्काल आवंटन करने की मांग की है ताकि पाँच माह से रुका हुआ वेतन तुरंत दिया जा सके।प्रदीप पप्पू ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने जल्द सकारात्मक कार्रवाई नहीं की, तो शिक्षक ससमय वेतन, प्रोन्नति, अनुकंपा नियुक्ति समेत अन्य मांगों को लेकर चरणबद्ध आंदोलन शुरू करेंगे।बिहार के नियोजित शिक्षकों की यह पीड़ा न केवल आर्थिक संकट का संकेत है, बल्कि यह शिक्षा व्यवस्था के प्रति शासन की संवेदनहीनता का प्रमाण भी बनती जा रही है। अब देखना यह है कि सरकार समय रहते संज्ञान लेती है या आंदोलन की आँच और तेज होती है।
