108वें भारतीय आर्थिक संघ सम्मेलन का भव्य समापन अर्थशास्त्रियों से नीति-निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान

108वें भारतीय आर्थिक संघ
सम्मेलन का भव्य समापन अर्थशास्त्रियों से नीति-निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान

जे टी न्यूज, चेन्नई:
भारतीय आर्थिक संघ के 108वें वार्षिक सम्मेलन का तीसरा और अंतिम दिन अत्यंत महत्वपूर्ण अकादमिक गतिविधियों और भव्य समापन समारोह के साथ संपन्न हुआ। इस दिन सम्मेलन में 22 समानांतर (parallel) तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया, जिनमें देश-विदेश से आए विद्वानों ने विभिन्न विषयगत क्षेत्रों पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
इन तकनीकी सत्रों में कृषि एवं ग्रामीण विकास, औद्योगिक अर्थव्यवस्था, वित्तीय प्रणाली, श्रम एवं रोजगार, सामाजिक विकास, डिजिटल अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक अर्थव्यवस्था जैसे प्रमुख विषयों पर गंभीर अकादमिक विमर्श हुआ।
समापन समारोह में राज्यपाल का संबोधन
सम्मेलन के समापन समारोह में तमिलनाडु के माननीय राज्यपाल श्री आर. एन. रवि मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए अर्थशास्त्रियों को केवल सैद्धांतिक अध्ययन तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें ग्राउंड लेवल पर प्राथमिक आँकड़ों का संग्रह कर उसका विश्लेषण करना चाहिए और नीति-निर्माण में सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि जब अर्थशास्त्री समाज और अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थितियों को समझकर नीति सुझाव देंगे, तभी विकसित भारत@2047 का लक्ष्य साकार हो सकेगा।


सम्मेलन में पूर्व उपाध्यक्ष, योजना आयोग एवं पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री, विश्व बैंक श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने ऑनलाइन माध्यम से सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष वैश्विक व्यापार, तकनीकी का बढ़ता दबदबा, जलवायु परिवर्तन, नवीनीकरण ऊर्जा और राजकोषीय संतुलन की चुनौतियां है। उन्होंने कहा कि भारत को तेज़ी से विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए निवेश, उत्पादकता और संस्थागत सुधारों पर निरंतर ध्यान देना होगा। राज्य सरकारों और केंद्र के बीच बेहतर समन्वय से ही विकास की गति को बनाए रखा जा सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत की दीर्घकालिक विकास क्षमता इस बात पर निर्भर करेगी कि शिक्षा, कौशल विकास और बुनियादी ढांचे में निवेश को कितनी प्राथमिकता दी जाती है।

विद्वानों की सक्रिय भागीदारी
तीसरे दिन आयोजित सभी तकनीकी सत्रों में शोधार्थियों और वरिष्ठ विद्वानों ने अपने-अपने क्षेत्रों में नवीनतम शोध निष्कर्ष प्रस्तुत किए, जिनमें भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं पर व्यापक चर्चा हुई।


सम्मेलन का यह अंतिम दिन यह दर्शाता है कि भारतीय अर्थशास्त्री न केवल वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हैं, बल्कि वे भारत के समावेशी, टिकाऊ और संतुलित विकास के लिए भी ठोस बौद्धिक योगदान देने को प्रतिबद्ध हैं।
108वें IEA सम्मेलन ने भारत की आर्थिक नीतियों और शोध की दिशा को एक नई ऊर्जा प्रदान की है। तीन दिनों तक चले इस राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संवाद ने यह स्पष्ट किया कि ज्ञान, डेटा और नीति का समन्वय ही भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाएगा।

Related Articles

Back to top button