सर्वकालिक कवि हैं कविकुल भूषण महाकवि मैथिल कोकिल विद्यापति जेटी न्यूज।
सर्वकालिक कवि हैं कविकुल भूषण महाकवि मैथिल कोकिल विद्यापति
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समस्तीपुर। समकालीन कवियों की चर्चा करते हुए भक्त माल के रचायिता रामानंद परंपरा के संत नाभादास ने कहा था कि सूर सुर्य, तुलसी शशि, उड्गन केशव दास, आजुक कवि खद्योत सम, जहं-तहं करत प्रकाश। अर्थात भक्त शिरोमणि सूरदास भक्ति काव्य जगत के सूर्य समान है, वहीं महाकवि तुलसीदास चंद्रमा के सामन और कविवर केशव दास तारा के समान है। आज के कवि तो जुगनू के समान है महाकवि विद्यापति। जो धरती पर जहां-तहां प्रकाश फैलाते है। विद्यापति स्मृति पर्व के अवसर पर अपने आवास पर आयोजित एक परिचर्चा सह श्रद्धांजलि सभा में जगमोहन विद्यापति काॅलेज ऑफ आर्ट एण्ड टेक्नोलॉजी के सचिव डाॅ संजय कुमार राजा ने उक्त पंक्तियों में विद्यापति का उल्लेख नहीं होने को लेकर उत्पन्न शंका का समाधान करते हुए कहा कि उपरोक्त पंक्तियों में कविकुल शिरोमणी मैथिल कोकिल विद्यापति का जिक्र नहीं होने के कारण तलाशने की कोशिश की जाय तो उक्त पंक्तियों में
संत नाभादास ने जिन कवियों का जिक्र किया है वे भक्ति रस के कवि थे और उनकी रचनाओं में उनके आराध्य विशेष के प्रति समर्पण स्पष्ट झलकता है। जबकि कविकूल शिरोमणी महाकवि, कवि कोकिल, मैथिल कोकिल आदि उपनामों से विभूषित विद्यापति को किसी रस विशेष में सीमित करना मुमकिन नहीं है। डाॅ राजा ने कहा कि गौर से देखिए तो पता चलेगा की सूरदास जी कृष्ण भक्ति केलिए प्रसिद्ध है, वहीं तुलसी दास की भक्ति प्रभु राम के इर्द-गीर्द घूमती है, जबकि केशवदास राम भक्ति में लीन थे मगर मूल रूप से वे श्रृंगार व वीर रस के कवि थे। वहीं महाकवि विद्यापति की रचानाओं से ऐसा कहीं प्रकट नहीं होता कि वे किस की भक्ति में लीन थे. या किस विशेष रस के कवि थे। शिव भक्त होने के नाते उन्होंने अपनी रचनाओं में शिव की अराधाना की है तो सरस सलिला गंगा की स्तुति भी उन्होंने उसी सिद्दत से की है, और जगन्माता काली, व दुर्गा की चरण वन्दना भी पुरी श्रद्धा से की है। यदि उन्होंने राधा कृष्ण के प्रेम को विविध रंगों में उकेरा है तो सीता-राम के प्रेम का भी अपनी रचनाओं में उसी खूबसूरती से वर्णन किया है। यह बात उन्हें अपने समकालीन कवियों से अलग करता है। इसके अलावा महाकवि ने भक्ति परक रचानाओं में श्रृंगार रस के विभिन्न उप रसों यथा श्रृंगार, करूण, उपालंभ, वात्सल्य आदि रसों के अलावा वीर रस का जिस खूबसूरती से समायोजन व वर्णन किया है वह अतुलनीय और अवर्णनीय है। इस सबके अलावा विद्यापति की प्रायः सभी रचनायें गेय है। उन रचनाओं में, राग-ताल, आदि जैसे शास्त्रीय नियम तो खूबसूरती भरते ही है, जन भावना और स्वतः प्रस्फुटित भावनाओं और संवेदनाओं की खूबसूरत व अद्भुत वर्णन शैली उन्हें रंजकता प्रदान कर उन्हें सहज व सुग्राह्य बनाती है। इसलिए उन्हें किसी रस विशेष
का कवि भी नहीं कहा जा सकता। इसलिए निर्विवाद सत्य यह है कि महाकवि विद्यापति वास्तव में व समकालीन कवियों में कालजयी एवं सर्व स्वीकार्य कविकुल शिरोमणी थे।



