*नागरिक परिक्रमा*
*नागरिक परिक्रमा*
*(संजय पराते की राजनैतिक टिप्पणियां)*/जे टी न्यूज़

*1. केवल रुपया ही नहीं, हवाई जहाज भी रुला रहा है देश को!*
डॉलर द्वारा रूपये की छाती पर चढ़कर कूटने पर हमारे आंसू थमे भी नहीं है कि इंडिगो देश की छाती पर चढ़ बैठा। 56″ का हमारा सीना हांफ रहा है। देश के विकास की कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। आपको याद होगा कि मोदीजी ने वादा किया था कि वे हवाई जहाज के सफर को इतना सस्ता बनाएंगे कि हवाई चप्पल पहनने वाले भी इसमें सैर का मजा ले सकेंगे। देश ने तब उनके इस जुमले को भी हाथों हाथ लिया था और दिन के सपने में भी वे हवाई सैर करने लगे थे। कितनों ने वास्तविक सैर किया, यह तो शोध की बात होगी, लेकिन इंडिगो ने पूरे देश को दो तीन दिनों से दिन में ही चांद तारों की सैर जरूर करा रहा है।

ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारतीय रेल रोज लगभग 13500 यात्री ट्रेनों का संचालन करता है और लगभग 2.5 करोड़ लोग इनमें सफर करते हैं। इससे लगभग दुगुने लोग रोज सड़क मार्ग से यात्रा करते हैं। यह आसानी से माना जा सकता है कि इनमें से आधे याने लगभग 4 करोड़ लोग हवाई चप्पल वाले ही होते हैं। अब इनमें से कितनों ने हवाई सैर का आनंद लिया होगा, या तो सैर करने वाला बता सकता है या नॉन-बायोलॉजिकल भगवान मोदी ही बता सकते हैं। लेकिन लोकसभा में उन्हीं के द्वारा आयत किए गए मंत्री माधवराव सिंधिया ने बताया है कि हवाई यात्रियों की संख्या वर्ष 2014 के 6 करोड़ से बढ़कर 2023 में 14.5 करोड़ हो गई है — याने रोजाना के यात्रियों की संख्या 1.64 लाख से बढ़कर लगभग 4 लाख हो गई है। मोदी राज में हवाई सैर करने वालों की बढ़ी हुई पूरी संख्या को भी यदि हवाई चप्पलों की श्रेणी में डाल दी जाएं, तो भी यह बमुश्किल आधा प्रतिशत बैठेगी। यह केवल संख्यात्मक गणना है और इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है। वास्तविकता तो यही है कि पहले के हवाई सफर करने वाले कई लोग जमीन पर उतर गए हैं। यह बढ़ी हुई संख्या तो वास्तव में उन नव-धनाढ्यों का प्रतिनिधित्व करती है, जो पिछले 11 सालों के मोदी राज में फल-फूलकर कुप्पा हो गई है। हमारे देश में धनकुबेरों की न केवल संख्या बढ़ी है, उनकी सम्मिलित संपत्ति में भी 10 गुना का इजाफा हुआ है।

इस हवाई संकट से निपटने के लिए इधर रेल मंत्रालय ने 37 प्रीमियम ट्रेनों में 116 कोचों को बढ़ाने की घोषणा की है। लेकिन इससे 8-9 हजार सीटें ही बढ़ेंगी, जो 2 लाख प्रभावित हवाई यात्रियों की तुलना में ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। इससे विशिष्ट वर्ग के हवाई यात्रियों को तो कोई राहत नहीं मिलेंगी, लेकिन हमारी ट्रेनों में भेड़-बकरियों की तरह ठूंसकर चलने वाले चप्पलधारियों की हालत और खराब होगी। यह कहा जा सकता है कि सामान्य रेल यात्रियों की कीमत पर समाज के विशिष्ट वर्ग को राहत देने की कोशिश की जा रही है।
मोदी सरकार की नीति भी यही है। लोकसभा में ही सिंधिया ने बताया था कि हवाई जहाज की टिकट की कीमतें ट्रेनों के प्रथम श्रेणी की टिकट की कीमत के बराबर रखने की कोशिश की जा रही है, जबकि हवाई ईंधन और परिचालन की लागत में कई गुना वृद्धि जो गई है। इसका अर्थ है कि इस विशिष्ट वर्ग को आम जनता की कीमत पर सरकारी खजाने से सब्सिडी दी जा रही है।
आज जो हवाई संकट पैदा हुआ है, उसके लिए प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मोदी सरकार की एकाधिकार को प्रोत्साहन देने वाली नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। यह आंशिक सच है। पूरा सच तो यह है कि उड्डयन क्षेत्र में सरकार के एकाधिकार को तोड़कर इसका निजीकरण करने का काम संप्रग राज में ही शुरू हो गया था और मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों ने इसे उस ऊंचाई तक पहुंचाया, जिससे आज का यह संकट पैदा हुआ है। तब कांग्रेस निजीकरण के पक्ष में थी और आज भी है। निजीकरण के लिए यह सामान्य तर्क जोर शोर से रखा गया था कि सरकारी क्षेत्र से निजी क्षेत्र की कार्यकुशलता बहुत ज्यादा होती है। इस हवाई संकट ने दिखा दिया कि निजी क्षेत्र कितना कार्यकुशल है। निजीकरण की नीतियों के साथ इंडिगो के लिए एकाधिकार बनाने का रास्ता साफ किया गया। आज देश के उड्डयन क्षेत्र का दो-तिहाई से ज्यादा हिस्से पर इंडिगो का एकाधिकार है और देश में उड़ान भरने वाली 3200 से ज्यादा उड़ानों में 2300 उड़ानें इंडिगो की है। इस क्षेत्र में वर्चस्व के कारण ही उसके पास नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने की हिम्मत है। उसने यह बता दिया है कि यदि उसे निर्देशित और नियंत्रित करने की कोशिश की जाएगी, तो वह कैसी अफरा-तफरी मचा सकती है। वह डीजीसीए के इस सामान्य निर्देश को भी मानने के लिए तैयार नहीं है कि कोर्ट के आदेशानुसार पायलटों और क्रू मेंबर को ज्यादा आराम दिया जाए। इस नियम को मानने का अर्ह है, पायलटों और क्रू मेंबरों की संख्या बढ़ाना, जिससे परिचालन लागत बढ़ेगी और उसके मुनाफे में कमी आएगी। इंडिगो ने अपनी ताकत बता दी है और डीजीसीए को अपने दिशा-निर्देशों में ढील देने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
लेकिन केवल इंडिगो ने ही अपनी ताकत नहीं दिखाई है, उड्डयन क्षेत्र की एयर इंडिया, स्पाइस जेट, एयर इंडिया एक्सप्रेस, आकाशा एयर, विस्तारा, अलायंस एयर, स्टार एयर फ्लाई विग और जेटविंग्स जैसी दूसरी निजी कंपनियों ने भी अपनी ताकत दिखाई और इस संकट की आड़ में डायनेमिक फेयर नियमों की आड़ लेते हुए घरेलू टिकटों की कीमतों में 8-10 गुना तक बढ़ोतरी कर दी और मोदी सरकार कुछ भी करने की हालत में नहीं है। आप दिल्ली से न्यूयॉर्क 47,000 रुपए में जा सकते हैं, लेकिन दिल्ली से भोपाल जाने के लिए 1.32 लाख खर्च करने पड़ेंगे। संकट को मुनाफा कमाने के अवसर में बदलना ही मोदीनोमिक्स है।
इंडिगो और उसके बहाने निजी पूंजी ने दिखा दिया है कि वे देश की अर्थव्यवस्था और सरकार को किस हद तक पंगु बना सकते है। क्रोनी कैपिटलिज्म (परजीवी पूंजीवाद) की यह शुरुआती झलक है, जिसके चरणों में यह सरकार नतमस्तक है।
*2. मांगा मजदूरी मिली मौत : उत्तरप्रदेश में फिर दलित की हत्या*
उत्तरप्रदेश में दलितों का उत्पीड़न और उनकी हत्या होने की घटनाएं थमने का नाम ही नहीं ले रही है। अभी कुछ दिनों पहले ही, और ठीक-ठीक कहें, तो 20 अक्टूबर को राजधानी लखनऊ से एक मंदिर की सीढ़ियों पर 65 वर्षीय दलित व्यक्ति को उसका अपना पेशाब ही चटवाने की शर्मिंदगी भरी एक घटना सामने आई थी। इससे पहले 1 अक्टूबर की रात को रायबरेली में एक दलित पर “ड्रोन चोरी” का आरोप लगाकर पीट-पीट कर मार दिया गया था। इन दोनों घटनाओं की स्याही सूखी भी नहीं थी कि अब अमेठी के एक गांव में एक दलित व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर दिए जाने की पुष्ट खबर सामने आई है। मृतक का अपराध केवल इतना ही था कि उसने अपने एक सप्ताह की बकाया मजदूरी जमींदार से मांगने की जुर्रत की थी, जिसके कारण उसे मौत के घाट उतार दिया गया। उत्तरप्रदेश के अलग-अलग, लेकिन महत्वपूर्ण जगहों पर घटने वाली ये तीनों घटनाएं, प्रदेश में दलितों पर हो रहे भयंकर उत्पीड़न का ठोस चेहरा बनाती है, जिसे भाजपा का योगी-मोदी राज रोकने में नाकाम साबित हुआ है।
अमेठी जिले के फुरसतगंज थाना के ग्राम सालिमपुर की घटना किसी दलित की मॉब लिंचिंग की घटना है, जो एक महीने के अंदर ही उत्तरप्रदेश में दूसरी बार हुई है। मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, हौसिला प्रसाद नामक एक दलित मजदूर को एक सवर्ण जमींदार शुभम सिंह और उसके तीन रिश्तेदार अपने खेतों में कम करवाने ले गए थे। उसकी मजदूरी तय हुई थी 350 रूपये रोजी। उससे एक हफ्ते काम करवाया गया और बाद में उसकी ढाई हजार रुपए की मजदूरी देने से इंकार करने लगे। इस जमींदार को यह मजदूरी दर ज्यादा लग रही थी, क्योंकि गांव में मनरेगा मजदूरी इसकी आधी ही है। अपने खेतों में काम करवाने की गरज से मजदूरी तय करते समय तो वह चुप रहा, लेकिन बाद में मजदूरी देने में आनाकानी करने लगा। 26 अक्टूबर को प्रसाद अपनी इसी मजदूरी को मांगने जमींदार के घर गया था, लेकिन मजदूरी देने के बजाय उसे सरियों से पीटा गया और जब वह बेहोश हो गया, उसे जीप में डालकर उसके घर के दरवाजे पर उसे फेंक दिया गया। बाद में, लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के अस्पताल में उसकी मौत हो गई।
अमेठी की यह घटना बताती है कि हमारे देश में मजदूर की, और खासकर दलित खेत मजदूर की जान कितनी सस्ती है! महज 2500 रुपयों की मजदूरी देने से बचने के लिए जमींदार द्वारा उसकी जान ले ली गई और सोशल मीडिया में हंगामे के बाद उसके खिलाफ हत्या नहीं, केवल गैर-ईरादतन हत्या का मामला बनाकर उसे गिरफ्तार किया गया है, जबकि मॉब लिंचिंग में शामिल तीन और अपराधियों को योगी की पुलिस ने छुआ भी नहीं है।
वर्ष 2022 में हमारे देश में अनुसूचित जाति के लिए बने कानून के तहत 51,656 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें उत्तरप्रदेश से 12, 287 मामले थे। यह दलित अपराधों के लिए दर्ज कुल मामलों का 23.78% होता है। एक साल में ही पूरे देश के पैमाने पर 12% वृद्धि के साथ ये आंकड़े बढ़कर 57789 हो गए और, निश्चित ही, उत्तरप्रदेश में दलित उत्पीड़न के मामलों में कम से कम इतनी ही वृद्धि हुई होगी। उत्तरप्रदेश में देश की कुल जनसंख्या का लगभग 16-17 प्रतिशत निवास करता है। इस लिहाज से उत्तरप्रदेश में दलित उत्पीड़न के आंकड़े आबादी की तुलना में डेढ़ गुना है और राष्ट्रीय औसत से बहुत ज्यादा ऊपर, जो भाजपा-आरएसएस के दलित प्रेम के दावों की असलियत उजागर करता है।
पूरे देश में और खासकर भाजपा शासित राज्यों में, और इसमें भी विशेषकर उत्तरप्रदेश में दलित आदिवासियों पर बढ़ते उत्पीड़न की घटनाओं को केवल कानून व्यवस्था की स्थिति मानना भूल होगा। इस उत्पीड़न की जड़ें उस व्यवस्था में देखनी होगी, जिसे भाजपा राज स्थायित्व देने की जी-तोड़ कोशिश कर रहा है। और यह व्यवस्था है मनु की चातुर्वर्ण्य व्यवस्था, जिसे मनुस्मृति के रूप में संहिताबद्ध किया गया है। आजादी के बाद से ही संघी गिरोह आंबेडकर के संविधान की जगह मनु की व्यवस्था लादने का अभियान चला रहा है। केंद्र और राज्यों की सत्ता का दुरुपयोग भी वह इसी घृणित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कर रहा है। मनु की संहिता साफ तौर से निम्न जाति के लोगों को एक इंसान तक मानने से इंकार करती है और उसकी संपत्ति को हड़पने को अपराध नहीं मानती। शुभम जैसे संघी लठैत मोदी-योगी और संघियों के संरक्षण में मनु की बताई बातों पर ईमानदारी से चलने की कोशिश कर रहे हैं। जिस देश में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ जूतम-पैजार की जा रही हो, उस देश में किसी दलित खेत मजदूर की हत्या तो सामान्य बात है। यही मोदी-योगी की ‘न्यू इंडिया का न्यू नॉर्मल’ है।
इस देश में जो लोग आंबेडकर के संविधान में बताए गए सामाजिक न्याय और जाति उत्पीड़न के खिलाफ है और जो लोग इस देश में आर्थिक समानता पर आधारित समाजवाद की स्थापना के लिए लड़ रहे हैं, उन सब बहुजनों और वामपंथियों को एक साथ आना होगा। शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ उनकी संयुक्त लड़ाई की सफलता में ही इस देश का भविष्य सुरक्षित है।
*(लेखक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)*