हंसते जख्म

हंसते जख्म
जे टी न्यूज


हम अपनी गरीबी से शर्मिंदा नहीं
न जाने कहां कहां से इसका
एहसास दिला जाते हैं लोग
पड़ता है जब बेबसी से सामना तो
अपने आप से ही मुकर जाते हैं लोग
ऐ खुदा तेरी रहमतों से ही तो
जिया करते हैं हम
लगती है ठोकरें गिरते हैं
संभलते हैं हम
अंधेरा वहां नहीं
जहां तन पे फटे वस्त्र हैं
अंधेरा वहां है
जहां मन के गरीब होते हैं लोग
एक कील सी चुभती है सीने में
इतने दर्द हजार हैं
वक्त के धुंध में छुप जाते हैं
ताल्लुक बहुत दिनों तक
फिर भी क्यों चैन से
जीने नहीं देते हैं लोग
दिल में छुपे जख्म
दिखाएं तो दिखाएं कैसे
ये कश्मकश है जिंदगी की
यहां ख्वाहिशें दफन हो जाते हैं
जिसे कहते फिरते हैं हम अपना
क्यों हमें बेगाना समझते हैं लोग
हमारे दर्द सितम न जानो
ना ही मेरे हालात पे
यूं शब्दों का खंजर चलाओ
जीवन की इस
छोटी सी लम्हों में
जिगर इस तरह
चोट खाकर रह जाते हैं
जब नन्हें से दिल को
कोई ठोकर मार जाते हैं
तब हस्ती हुई आंखों से जख्म
अश्क लहू सा बनकर बह जाते हैं
फिर भी न जाने क्यों
अश्क पोछने का
दिखावा करते हैं लोग
सांस जब तक चलती तो
कोई ख्वाब पूरे होते नहीं
सांस की डोरी
जब टूट जाए तो
हर ख्वाहिश पूरी करने में
जुड़ जाते हैं लोग
अजीब विडंबना है ये
जीवन का
आखिर मरने के बाद ही क्यों
दिखावा करते हैं लोग
क्यों खुद को
महान समझते हैं लोग ।
हम अपनी गरीबी से
शर्मिंदा नहीं
न जाने कहां कहां से
इसका एहसास
दिला जाते हैं लोग।
मंजु कुमारी मधेपुरा बिहार

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