*ब्लॉक

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जे टी न्यूज
“इसरत तुम जानती भी हो कि कहकशाँ जी मेरे लिए क्या मायने रखती हैं? अरे मै तो उनकी कदमों की धूल भी नहीं हूँ। अरबपतियों की गिनती में आती हैं। वो भला मुझे क्यों पसंद करेंगी!?” अरबाज ने खुद की सफाई पेश करते हुए कहा।
“मैने तुमसे कोई सफाई नहीं माँगी। तुम्हारी हरकतें खुद-ब-खुद गवाही देती हैं।” इसरत दर्द से कराह उठी।
अरबाज़ दुबई की एक मल्टीनेशनल कंपनी का मालिक था। कंपनी की ब्रांच जैसे ही इंडिया में खुली तो उसके लिए कई एम्प्लाईज भी रखे गए। इसरत ने भी उसी समय कंपनी में जॉब अप्लाई किया था। उसी सिलसिले में इसरत और अरबाज़ की बातें हुई थीं। अरबाज़ इसरत की बातों का मुरीद हो गया। इसरत को जॉब मिल गई पर निजी कारणों से इसरत को जॉब छोड़नी पड़ी। जॉब छोड़ने के बाद भी दोनो के बीच बातें होती रहतीं। धीरे-धीरे दोनो कब एक दूसरे के करीब आ गए पता ही नहीं चला। आखिर वो दिन भी आ ही गया जब अरबाज़ ने इसरत से अपने दिल की बात कह ही दी।


” इसरत अगर इस जहाँ में कहीं अल्लाह का वजूद है तो मै उसे गवाही मानकर कहता हूँ कि मुझे तुमसे बेपनाह इश़्क है। मैं तुम पर फ़िदा हो गया हूँ। खुदा के बाद अगर मै किसी के सामने झुकता हूँ तो तुम्हारे सामने इसरत। क्या तुम्हें मेरी मुहब्बत कुबूल है?”
“मुझे डर लग रहा है अरबाज़!…..मैने जिंदगी में बहुत कुछ खोया है। बिलकुल तन्हा हूँ, कहीं मेरे भरोसा जीतकर मेरा दिल तो नहीं तोड़ोगे न!” इसरत सहमी हुई सी बोली।
“नहीं नहीं इसरत। प्लीज ऐसा न कहो तुम्हे अंदाजा भी नहीं कि किस कदर मै तुम्हे चाहता हूँ। मै तुमसे जिस्मानी नहीं रूहानियत की तह तक इश़्क करता हूँ। मेरा खुदा गवाह है।” अरबाज़ अपनी दलील देते हुए बोला।
आखिर इसरत ने अपनी तन्हा जिंदगी को गुलज़ार करने के लिए अरबाज़ की मुहब्बत को कुबूल कर ही लिया। कुछ दिन तक तो सब ठीक चलता रहा। अरबाज़ सुबहोशाम इसरत का ख़्याल रखता उससे बातें किया करता। इसरत भी उसका प्यार पाकर खुशी से पागल हो उठी थी कि अचानक एक घटना घटी…..
कुछ दिनों से कंपनी में कुछ गड़बड़ी सी चल रही थी। अरबाज़ अब परेशान और चिड़चिड़ा सा रहने लगा था। किसी से भी बात करना उसे अच्छा नहीं लगता था
इसरत को ये बात पता चली तो उसने तरह-तरह के सलाह दिये और अरबाज़ की परेशानी को कम करने की कोशिश की। अरबाज़ को भी इसरत की बातें पसंद आई।


“इसरत अब तुम्हे वापस कंपनी ज्वाइन करनी चाहिए, अगले महीने से ही मै तुम्हे कंपनी में वापस ले रहा हूँ।” अरबाज़ ने कहा।
“नहीं, अरबाज़ मै अभी इसके लिए तैयार नहीं हूँ। वैसे भी तुम्हारी कंपनी में मेरे लिए जगह नहीं है। वहाँ सब खुद को उस्तादों के उस्ताद समझते हैं।” इसरत ने टालते हुए कहा।
” सुनो इसरत! … ये कंपनी मेरी है। मै इसका मालिक हूँ। मै जिसे चाहे रखूँ, जिसे चाहे निकालूँ। ये मेरी मर्जी, मेरा हक बनता है। हाँ, एक बात और ….अगले महीने ईद है। ईद की खुशी में हर साल मेरी कंपनी कई नए प्रोजेक्ट लाँच करती है। मै चाहता हूँ तुम कोई बढ़िया सा प्रोजेक्ट बनाओ जिससे कंपनी को फायदा हो। मै उस प्रोजेक्ट को कंपनी के और प्रोजेक्टों के साथ लाँच करूँगा।” अरबाज़ इसरत को समझाते हुए बोला।
“ठीक है! …मै कोशिश करूँगी। इंशा अल्लाह सब ठीक होगा।” इसरत बोली।
इसरत ने कभी हारना नहीं सीखा था। जिंदगी की तमाम उलझनों के बावजूद उसने अरबाज़ के लिए रात-रात भर जागकर प्रोजेक्ट तैयार किया। उसने अरबाज़ को भेजा।
“अरे! इसरत ….खुदा गवाह है। मुझे ये प्रोजेक्ट बहुत पसंद आया। अब ये तय रहा कि इस प्रोजेक्ट के साथ ही तुम अगले महीने कंपनी से जुड़ रही हो।” अरबाज़ ने इसरत को दिलासा दिया।
अरबाज़ के कहने पर इसरत को एक उम्मीद जगी कि शायद सच में उसने अरबाज़ के लिए कुछ किया। ईद के दिन अरबाज़ ने कंपनी का प्रोजेक्ट वाउचर लाँच किया। अरबाज़ ने इसरत को भी भेजा। इसरत ने जब खुशी-खुशी वो प्रोजेक्ट वाउचर खोला तो सन्न रह गई। मानो किसी ने उसके पैरों तले की ज़मीन खींच ली हो। वो चीख-चीख कर रोना चाहती थी पर रो ना पाई। वाउचर में इसरत का नाम तो बहुत दूर की बात थी, उसके प्रोजेक्ट तक शामिल नहीं किया गया था। पूरे वाउचर में कहँकशा जी अपने नुमाईंदों के साथ छाई थीं। अब इसरत का हाल ऐसा था कि वो अरबाज़ से कुछ पूछ भी नहीं सकती थी, अगर पूछती तो उसकी मुहब्बत पर सवाल उठते। पर ये बात उसके दिल में नश्तर की तरह चुभ रही थी।


“आखिर अरबाज़ ने ऐसा क्यों किया?…जब उसे प्रोजेक्ट डालना ही नहीं था तो मुझसे कहा क्यों?….क्या यही उसकी मुहब्बत की इतंहा है?…या खुदा ये कैसी मुहब्बत है जिसमें कोई वफा नहीं…भरोसा नहीं….अब कैसे उसकी बातों पर यकीं कर पाऊँगी कभी!!??” इसरत खुद से ही सवाल कर रही थी।
अरबाज़ को अंदाज़ा भी नहीं था कि उससे क्या हुआ है। वो लगातार इसरत से अपनी बातें करते रहता और कहँकशा जी की रोज किसी न किसी प्रोजेक्ट की बात चला ही देता। इसरत अंदर ही अंदर सिमटती जा रही थी।उसके मन में एक ही ख़्याल बार-बार आ रहा था कि जिस इंसान की कंपनी में मेरे लिए जगह नहीं, मेरे प्रोजेक्ट के लिए जगह नहीं उसकी जिंदगी में मेरे लिए क्या खाक जगह होगी? फिर कई बार उसने अरबाज़ को आजमाने के लिए छोटे- मोटे काम भी दिए। अरबाज़ ने बहाने बनाने शुरु कर दिए। उसके लिए उसकी कंपनी और कहँकशा जी के प्रोजेक्ट ही जरूरी होते। आखिर आज इसरत नहीं सह पाई, बिफर गई। अरबाज़ ने कहँकशा के तारीफों के पुल बाँधने शुरु किए तो…….
“मेरे प्रोजेक्ट में क्या कमीं थी अरबाज.. तुमने उसे रिजेक्ट क्यों किया?” इसरत ने सवाल दाग ही डाला।
“आजकल ऐसे प्रोडक्ट्स इस्तेमाल कौन करता है?”अरबाज़ ने बेफ़िक्री से जवाब दिया।


“लेकिन अरबाज़ मैने कहँकशा जी का प्रोजेक्ट भी देखा और वाउचर के दूसरे प्रोजेक्ट भी। मेरा प्रोजेक्ट अकेले उन सब पर भारी था। बताओ तुमने ऐसा क्यों किया? उस पर कहते हो कि तुम्हें मुझसे मुहब्बत है…क्या यही है तुम्हारा इश़्क?….इश़्क मीठी-मीठी बातों में कैद नहीं होता साहब!!” इसरत ने एक साथ कई सवालों के तीर चला दिए।
अरबाज़ चुप हो गया उससे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे!
इसरत को अरबाज़ की चुप्पी में अपने कई सवालों का जवाब मिल चुका था। उसने चुपचाप फोन रखा….. अरबाज़ को हमेशा के लिए अपने फ़ोन और अपनी जिंदगी से ब्लाक कर दिया।

रेणु अग्रवाल

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