26 से 28 नवम्बर राजभवनों पर महापड़ाव मोदी सरकार की सत्ता की ताबूत में अंतिम कील साबित होगा

26 से 28 नवम्बर राजभवनों पर महापड़ाव मोदी सरकार की सत्ता की ताबूत में अंतिम कील साबित होगा
आलेख – प्रभुराज नारायण राव


जे टी न्यूज़
संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा देश के सभी राज्यों की राजधानियों में राज भवनों पर 26 से 28 नवंबर तक 72 घंटे का किसानों का महापड़ाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किसानों के साथ की गई वादा खिलाफी और विश्वासघात का परिणाम है ।13 महीने तक चली दिल्ली के बॉर्डर पर ऐतिहासिक किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए किसान विरोधी तीनों काले कानून को वापस लेने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों से अपील की थी कि आपकी सभी मांगों पर विचार होगी और हम उसे पूरा करेंगे। आप आंदोलन समाप्त कर अपने-अपने घर जाइए। लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा इस संदर्भ में कोई भी सार्थक प्रयास नहीं की गई ।नतीजा किसानों को फिर आंदोलन के रास्ते पर आना पड़ा।


अबकी बार संयुक्त किसान मोर्चा के साथ-साथ केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की एक बड़ी जमात भी आंदोलन में शामिल हो गई है। यह सब को पता होनी चाहिए कि देश की आजादी के बाद पहली बार देश के किसान और देश के मजदूर,सेवा संघों के कर्मचारी एक साथ आंदोलन में शामिल हुए हैं। देश के सभी राज्यों में राजभवन पर महापड़ाव की तैयारी जोड़ों पर चल रही है। किसान और केंद्रीय ट्रेड यूनियन के मजदूर अपनी 23 सूत्री मांगों को हासिल करने के लिए एकजुट हो चुके हैं। आज धान पर एमएसपी 2183 रुपए देने की घोषणा केंद्र सरकार ने किया है ।जबकि मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और स्वयं प्रधानमंत्री 3100 रुपए विधानसभा चुनाव जीतने के बाद एमएसपी देने को किसानों से वादा कर रहे हैं। ठीक उसी तरह गेहूं का एमएसपी 2275 रुपए निर्धारित किया गया है। जबकि विधानसभा चुनाव में 2700 रुपए प्रति क्विंटल गेहूं का एमएसपी देने का वादा किया जा रहा है। यह साबित करता है कि किसानों की मांगे कितनी जायज है।

देसी और विदेशी कंपनियों को कृषि और व्यापार को नियंत्रित करने, महंगे इनपुट बेचने, औने पौने दाम पर सभी किस्म के फसल को खरीदने। खाद्य बाजार पर एकाधिकार जमाने में कार्पोरेट समर्थक नीतियों को आज भी मोदी सरकार जारी रखे हुए हैं ।इससे किसान भूख के शिकार हो रहे हैं। जमीन से बेदखल और सस्ते कीमत पर अपने मजदूरी बेचने को विवस हो रहे है। धान की एम एस पी निर्धारित होने के बाद भी किसान अपने धान को 500 रुपए क्विंटल कम पर बिचौलियों के हाथों बेचने को विवश है ।केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा उन पर कोई नियंत्रण नहीं किया जा रहा है। धान खरीदने के लिए खरीद केदो को स्थापित नहीं किया जा रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा 2022 बिजली बिल को तत्काल वापस करने की मांग शुरू से कर रहा है । देश और राज्यों में बिजली की शुल्क में दोगुना वृद्धि हो चुका है। गांव के लोगों को प्रीपेड मीटर लगाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। यह अंग्रेजी लगान की तरह किसानों से वसुला जा रहा है।ट्यूबवेलों के बिजली कनेक्शन काटे जा रहे हैं। किसानों पर अपराधिक मुकदमे भी किए जा रहे हैं ।जबकि संयुक्त किसान मोर्चा ग्रामीण परिवारों को 300 यूनिट मुफ्त बिजली और ट्यूबवेलों के लिए भी मुफ्त बिजली की मांग करता रहा है। जहां चुनाव में कांग्रेस ने 200 यूनिट बिजली बिल मुफ्त देने का वादा किया है। रसोई गैस 450 रुपए में उपलब्ध कराने की राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी ने भी वादा किया है। यह साबित कर रहा है की संयुक्त किसान मोर्चा की मांगें कितनी जायज है। संयुक्त किसान मोर्चा अपने उत्पादन को सुनिश्चित खरीद के साथ-साथ लोगों को उचित भोजन को भी सुनिश्चित करने की मांग करता है।

जबकि खाद्य सुरक्षा में लगातार गिरावट दिख रहा है। भारत सरकार के आंकड़े के हिसाब से 2022-23 में 5 साल से कम उम्र के सभी बच्चों में अल्पपोषण 16.6 हो गया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत आज 125 देश में 111 वें स्थान पर कायम है। हर साल यह स्तर गिरता ही जा रहा है। इसे रोकने के लिए कृषि उत्पादन और उसके खरीद में सुधार के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। संयुक्त किसान मोर्चा C2+50% स्वामीनाथन कमीशन के अनुसंशाओ पर यानी फसल में लागत का डेढ़ गुना दाम देने की मांग कर रहा है।यहीं कारण है कि एमएसपी को कानूनी दर्जा देकर किसानों को भुगतान देने के लिए इस आंदोलन को खड़ा किया गया है।

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