सामाजिक न्याय एवं सामाजिक समरसता के सूत्रधार -जननायक कर्पूरी ठाकुर

सामाजिक न्याय एवं सामाजिक समरसता के सूत्रधार -जननायक कर्पूरी ठाकुर

प्रस्तुतकर्ता -प्रो अरुण कुमार

 

जे टी न्यूज़

जननायक कर्पूरी ठाकुर के जन्म शताब्दी वर्ष (24जनवरी1924) उन्हें सादर नमन करना कोई कैसे भूल सकता है। आडम्बर विहीन और सादगीपूर्ण उनकी जीवन शैली अनुकरणीय थी। उनकी निष्कपटता,

उदारता व सदासयता वाली विनम्र छवि बहुत लोगों को आकर्षित करती थी। सद्व्यवहार और सदासयता उनके जीवन में दुध और चीनी की भांति घुली मिली थी। मानवोचित गुणों से परिपूर्ण ठेठ ग्रामीण पहनावा उन्हें आडम्बर विहीन बना देता है। कर्पूरी ठाकुर का ज्येष्ठ पुत्र होने का गौरव जरूर मुझे प्राप्त है किंतु मैंने कभी अभिमान प्रदर्शित करने का काम नहीं किया।

बड़े बड़े लोग अपने परिवार जनों को राजनीति में स्थापित करने के लिए अपने जीवन काल में ही जोड़ तोड़ और सारे इंतजाम कर देते हैं।यह निर्विवाद सत्य है कि ठाकुर जी ने अपने अनमोल जीवन और परिजनों को उपकृत करने एवं लाभ पहुंचाने की अपेक्षा अपने आदर्श सिद्धांत और मूल्यों को प्रश्रय देते थे।

परिवारवाद और वंशवाद को जनतंत्र के लिए घातक मानते थे। निरंतर वे इस परिपाटी का विरोध करते रहे।अपनी संतानों को राजनीति में उतारने के लिए कभी सिद्धान्तों से समझौता नहीं किया। मेरे उपर उनके प्रभामंडल का प्रभाव इतना है कि मैंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को कभी उभरने नहीं दिया।एक राजनीतिक परिवार में मेरा पालन पोषण हुआ था इसलिए राजनितिक महत्वाकांक्षा अस्वभाविक नहीं था।सच बताता हूं अगर मैं बालहठ पर उतर जाता तो ठाकुर जी राजनीति से संन्यास ले लेते।वे दृढनिश्चयी थे।संसार मुझे कोसता रहता ।पुत्र धर्म का निर्वाह करते हुए मैंने उनकी निश्कलंक छवि को धूमिल नहीं होने दिया।

आज जब सामाजिक और आर्थिक रुप से पिछड़े लोगों को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है तो बिहार राज्य में प्रचलित आरक्षण का कर्पूरी फार्मूला के अध्ययन एवं विष्लेषण की नितांत आवश्यकता है। मानवीय समाज के विकास के विभिन्न कालखंडों में सामाजिक चिंतन और आंदोलन के विभिन्न रुप रहे हैं।इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत वर्ष में जाति और वर्ण व्यवस्था का व्यापक प्रभाव रहा है। काफी हद तक इससे जनजीवन प्रभावित होता आ रहा है। आज के परिप्रेक्ष्य में यह उल्लेखनीय है कि राजनीतिक परिवर्तन जातीय समीकरण और एकीकरण से प्रभावित होता है। जातीय संरचना ऐसी थी जिसमें विषमता और भेदभाव की प्रधानता थी। जाति प्रथा की बुराईयों को यथासंभव दूर करने का यथासंभव प्रयास की समाज सुधारकों, युगपुरुषों ने समय-समय पर किया है। इतिहास साक्षी है कि राज कुमार होते हुए भी सत्य की खोज में सिद्धार्थ संन्यासी बन गये। महात्मा बुद्ध ने जाति प्रथा का मुखर विरोध किया।छुआछूत समाप्त करने का उनका अभियान जन जन तक पहुंचा था।संत शिरोमणि कबीरदास ने जाति प्रथा पर कड़ा प्रहार किया।कबीर की बाणी कटू हुआ करती थी परन्तु उसमें सच्चाई का अंश भी विद्यमान था।

 

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रभावशाली स्तंभ और कोटि जनता विश्वशनीय नायक डा राममनोहर लोहिया ने भारतीय सामाजिक संरचना को भेदभाव पूर्ण और अन्याय पर आधारित बताया। उन्होंने कहा कि जातिवाद और वर्णवाद के ही कारण भारतवर्ष सदियो तक गुलामी की बेड़ी में जकड़ा रहा।ला लोहिया की प्रखरता उनके विरोधी भी स्वीकार करते थे। अपने विभिन्न आलेखों संस्मरणों लेखों और अपनी महत्वपूर्ण रचनाओं,कितावों के द्वारा वे जाति व्यवस्था पर प्रहार करते रहे।वे पिछड़े वर्ग के व्यक्तियों को समाज की मुख्य धारा में लाने के उद्देश्य से एक विशेष सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसे आरक्षण का नाम दिया गया।नर नारी समानता के वे प्रबल समर्थक थे।

भारत के समाजवादी आंदोलन में जननायक कर्पूरी ठाकुर ने सक्रिय भूमिका निभाई।कई सामाजिक आंदोलनों का उन्होंने सफलता पूर्वक नेतृत्व किया। खासकर बिहार में ठाकुरजी जी के जुझारूपन के कारण सामाजिक क्रांति धारदार और असरदार बन सकी।उनके समकालीन लोग उन्हें सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत मानते थे। समाजवादी आंदोलन के इतिहास को निरपेक्ष भाव से देखने पर यह तथ्य उजागर करने योग्य प्रतीत होता है कि उच्च वर्ग के विद्वान, राजनेता और चिंतकों ने नागरिकों में सामाजिक चेतना जागृत करने में महत्ती भूमिका निभाई। उनका कहना था कि भारतीय सामाजिक संरचना भेद-भाव एवं असमानता पर आधारित थी। भारतीय सवर्ण समाज के दिग्गज नेता सामाजिक समानता के सिद्धांत पर आधारित व्यवस्था के पैरोकार थे और शोषण मुक्त समाज की स्थापना करना चाहते थे ।देश के ऐसे रहनुमाओं को सादर स्मरण करना चाहूंगा। राष्ट्रीय स्तर पर स्मृति शेष एस एम जोशी,मधुलिमेय,राजनारायण, पंडित राजनंदन मिश्र, जार्ज फर्नांडिस और राज्य स्तर पर रामानंद तिवारी, सूरज नारायण सिंह, श्रीकृष्ण सिंह व कपिल देव सिंह के नाम उल्लेखनीय हैं। समाजवाद के सिद्धांतों, कार्यक्रमों, उद्देश्यों, एवं नीतिगत निर्णयों में इन सबों के विचारों को प्रमुखता दी जाती थी।ऐसी विचारवान, सिद्धांतनिष्ट एवं संवेदनशील व्यक्तियों ने समाज के दबे कुचले उपेक्षित तिरष्कृत लोगों विशेष अवसर प्रदान कर उन्हें सामाजिक विकास की मुख्य धारा में लाने के बड़े हिमायती थे। ठाकुर जी निष्काम कर्म योगी थे। भारतीय संविधान और लोकतंत्र में उनकी अटूट आस्था थी। किसी भी देश का संविधान वहां की रीति रिवाजों, धार्मिक संस्कारों, सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों से प्रभावित होता है। इंग्लैंड का संविधान परम्पराओं पर आधारित है।इस देश की गणना विकसित,शिक्षित और जागरूक देश में की जाती है। यहां के समाज में नर नारी के बीच सामाजिक असमानता विद्यमान थी।यह सच्चाई है कि महिलाओं के लिए समानता का कानून लंबे अरसे बाद 1911 में बना।कहा जाता है कि भारत का संविधान इंग्लैंड के संविधान से प्रभावित हैं। इसके बाद भी नर नारी में समानता भारत में बेहतर है। संविधान लागू होते ही यहां महिलाओं को मताधिकार का अधिकार मिल गया। भारत विविधता में एकता वाला देश है। यहां विभिन्न संप्रदाय,धर्म, समूह,पंथ के लोग निवास करते हैं।भारत के संविधान निर्माताओं ने इन सभी पहलुओं का गहन अध्ययन , चिंतन,मनन के बाद संविधान का निर्माण किया था। जिसमें गांधी दर्शन का विशेष प्रभाव है। भारत में अन्य मौलिक अधिकारों के साथ ही स्वतंत्रता के अधिकारों को सम्मिलित किया गया है।समानता के अधिकारों का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में किया गया है।यह उल्लेखनीय है ठाकुर जी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में 1978 में संवैधानिक प्रावधानों का पालन करते हुए सामाजिक और आर्थिक आधार पर 28प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की थी।उस वक्त की गई व्यवस्था आरक्षण का कर्पूरी फार्मूला कहा गया था।आज महिलाओं को नौकरियों में 35 प्रतिशत का आरक्षण कर्पूरी फार्मूला को ही विस्तार देता है।

साठ सत्तर के दशक में हिन्दुस्तान की मध्य जातियों में तीव्र गति से राजनीतिक जागरूकता पैदा हो रही थी। अपने बिहार में शासन व्यवस्था में अपनी हिस्सेदारी के लिए मध्य जातियों में व्यग्रता और वैचैनी विद्यमान थी। यदि आरक्षण का प्रावधान नहीं किया जाता तो वंचित समाज की ओर से अधिकार मांगने के लिए हिंसक आंदोलन में सक्रिय हो जाते। सामाजिक ताना-बाना ऐसा टूटता की फिर उसे जोड़ पाना मुश्किल हो जाता। ठाकुर जी ने इस सच्चाई को समझ कर ही निर्णय लिया होगा।राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में कह सकते हैं —

शांति नहीं तब तक जबतक सुखभोग न नर का समय हो,

यदि किसी को बहुत अधिक हो नहीं किसी को कम हो।

 

लेखक-रामनाथ ठाकुर

नेता संसदीय दल(राज्य सभा)

जनता दल(यू)

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