सिविल सर्जन ने हरी झंडी दिखाकर कालाजार रोगी खोज अभियान का किया शुरुआत

सिविल सर्जन ने हरी झंडी दिखाकर कालाजार रोगी खोज अभियान का किया शुरुआत

जे टी न्यूज़,मधुबनी : जिले में कालाजार मरीजों की खोज के लिए अभियान चलाया जाएगा। अभियान के तहत आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर कालाजार मरीजों की खोज करेंगी।

 

निर्धारित कार्यक्रम को लेकर सदर अस्पताल परिसर से सिविल सर्जन डॉ. नरेश कुमार भीमसारिया ने हरी झंडी दिखाकर अभियान की शुरुआत की. इस दौरान सर्जन ने बताया सभी कर्मियों को हाउस टू हाउस संबंधित सामाग्री दी गई है। सभी प्रखंड के बीएचआई,

वीबीडीएस ,बीएचडब्लू (मलेरिया), केबीसी, साहित सभी कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया है। अभियान 31 जनवरी तक संचालित होगा जिसमें आशा कार्यकर्ता के द्वारा घर-घर जाकर कालाजार रोगियों की खोज की जाएगी. अभियान वर्ष 2021, 22 एवं 23 में कालाजार प्रभावित प्रखंडों में प्रतिवेदित कालाजार मरीजों के घर के 500 मीटर के परिधि में (200 से 250 घर ) अवस्थित घर घर जाकर वीएल /एचआईभी+पीकेडीएल रोगी की खोज जाएगी. क्षेत्र में अभियान की सफलता को लेकर प्रचार-प्रसार किया जाएगा।

हर पीएचसी पर मुफ्त जांच सुविधा उपलब्ध : जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ डी. एस.सिंह ने बताया हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर कालाजार जांच की सुविधा उपलब्ध है।

कालाजार की किट (आरके-39) से 10 से 15 मिनट के अंदर टेस्ट हो जाता है। हर सेंटर पर कालाजार के इलाज में विशेष रूप से प्रशिक्षित एमबीबीएस डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी उपलब्ध हैं।

सरकार द्वारा रोगी को मिलती है आर्थिक सहायता : डॉ. सिंह ने बताया कालाजार से पीड़ित रोगी को मुख्यमंत्री कालाजार राहत योजना के तहत श्रम क्षतिपूर्ति के रूप में पैसे भी दिए जाते हैं।

बीमार व्यक्ति को 6600 रुपये राज्य सरकार की ओर से और 500 रुपए केंद्र सरकार की ओर से दिए जाते हैं। यह राशि वीएल (ब्लड रिलेटेड) कालाजार में रोगी को प्रदान की जाती है। वहीं चमड़ी से जुड़े कालाजार (पीकेडीएल) में 4000 रुपये की राशि केंद्र सरकार की ओर से दी जाती है।

कालाजार के कारण : कालाजार मादा फाइबोटोमस अर्जेंटिपस(बालू मक्खी) के काटने के कारण होता है, जो कि लीशमैनिया परजीवी का वेक्टर (या ट्रांसमीटर) है। किसी जानवर या मनुष्य को काट कर हटने के बाद भी अगर वह उस जानवर या मानव के खून से युक्त है

 

तो अगला व्यक्ति जिसे वह काटेगा वह संक्रमित हो जायेगा। इस प्रारंभिक संक्रमण के बाद के महीनों में यह बीमारी और अधिक गंभीर रूप ले सकती है, जिसे आंत में लिशमानियासिस या कालाजार कहा जाता है।

कालाजार उन्मूलन के लिए भारत सरकार का मानक प्राप्त : वेक्टर नियंत्रण रोग पदाधिकारी राकेश कुमार रंजन ने बताया जिले में लगातार छिड़काव के कारण कालाजार उन्मूलन के लिए भारत सरकार का जो मानक है उसे प्राप्त किया जा चुका है। मरीजों की संख्या शून्य करने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है। जिले में वर्ष 2009 में 730 मरीज, 2010 में 630, वर्ष 2011 में 538,

 

वर्ष 2012 में 415, वर्ष 2013 में 321, वर्ष 2014 में 256, वर्ष 2015 में 187, मरीज 2016 में 108, मरीज, 2017 में 85 मरीज, 2018 में 50, 2019 में 31,और 2020 में वीएल के -23,पीकेडीएल के -1,एचआईवी/वीएल के -2, 2021 में वीएल के -15,पीकेडीएल के -4,एचआईवी/वीएल के -3, 2022 में वीएल के -15,पीकेडीएल के -10 एचआईवी/वीएल के -0, वहीं वर्ष 2023 में कालाजार के 7 मरीज मिले जिसमें पीकेडीएल -1, एचआईवी-1, वीएल-5 के मरीज कालाजार के मिले हैं।

कैसे होगी कालाजार रोगियों की पहचान:

 

वैसे मरीज कालाजार के रोगी हो सकते हैं जिन्हें

•15 दिन से ज्यादा से बुखार हो

•जिन्हें भूख नहीं लगती हो, उदर बड़ा हो रहा हो

•जिनका वजन लगातार कम हो रहा हो

•शरीर का काला पड़ रहा हो

•वैसे व्यक्ति जिन्हें बुखार न हो पर उनके शरीर पर दाग हो और पूर्व में कालाजार के रोगी रह चुके हों

मौके पर एसीएमओ डॉक्टर आरके सिंह, डॉ कुणाल कौशल, भीबीडीसीओ राकेश रंजन सहित अन्य कर्मी उपस्थित थे.

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