न समझौता, न करार, न बीमा न पत्राचार, सिर्फ मौखिक आदेश पर हो जाता है अधिग्रहण

न समझौता, न करार, न बीमा न पत्राचार, सिर्फ मौखिक आदेश पर हो जाता है अधिग्रहण
फिर काॅलेज और छात्रों की क्षति के लिए जिम्मेदार कौन? हालिया संपन्न चुनाव से मची तबाही का नजारा


जे टी न्यूज, समस्तीपुर : समस्तीपुर कॉलेज, समस्तीपुर को प्रत्येक चुनाव में चुनाव संचालन स्थल बनाए जाने से मुक्ति की मांग जोर पकड़ने लगी है। पिछले दिनो जिले के उच्च शिक्षा के सबसे पुराने इस संस्थान के सभागार में आयोजित अभिभावकों और कॉलेज प्रशासन की संयुक्त बैठक में यह तथ्य उभर कर सामने आया था कि चुनाव कार्य में कालेज के बिना शर्त अधिग्रहण से एक तरफ जहां 4 माह केलिए शैक्षणिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाती है और छात्र-छात्राओं का शिक्षण कार्य ठप्प पड़ जाता है वहीं तिनका-तिनका जोड़ कर सजाये गये शैक्षणिक उपकरण एवं उपस्कर के अलावे पंखे, बिजली के बल्ब आदि को मिला कर प्रति चुनाव करोड़ों रुपए का नुकसान हो जाता है। एक अनुमान के मुताबिक अब तक चुनाव कार्य के नाम पर महाविद्यालय को तकरीबन 150 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान पहुंच चुका है।

जिसका बिना शर्त अधिग्रहण के कारण कोई क्षतिपूर्ति या प्रतिपूर्ति भुगतान नहीं किया जाता है। महाविद्यालय कर्मियों ने बताया कि चुनाव की अवधि में प्रशासन की देखरेख में मजदूर काम करते हैं। पदाधिकारी और मजदूर दोनो को सिर्फ अपने काम से मतलब होता है, महाविद्यालय का सामान नष्ट हो, खराब हो इससे कोई मतलब उन्हें नहीं होता। कमरे से निकाल कर सामान किसी कोने में या बाहर फेक दिया जाता है। इतना ही नहीं मजदूर जाते जाते दस-बीस बल्ब पंखे भी नोच ले जाते हैं। इस बाबत मिली जानकारी में एक और हैरतअंगेज खुलासा हुआ कि निर्वाचन कार्य हेतु तीन माह केलिए महाविद्यालय अधिग्रहण मौखिक होता है। मुखे कानून की तर्ज पर जिलाधिकारी सह निर्वाचन पदाधिकारी के मौखिक आदेश पर सब हो जाता है। इतना ही नहीं मतगणना के बाद भी परिसर के कई कक्ष वज्र गृह के नाम पर सील होते हैं। इस विषय में पिछले दिनों अप्पन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष दीपक कुमार ने तमाम संबंधित पदाधिकारियों को पत्र लिखकर इस महाविद्यालय को चुनावी त्रासदी से मुक्ति दिलाने की गुहार लगाई थी। यहां एक बात समझ से परे है कि निर्वाचन आयोग राष्ट्रीय महापर्व चुनाव केलिए अरबों रुपए खर्च करती है, हर गतिविधि का रिकॉर्ड बनाया जाता है। मतदान के नाम पर विभिन्न मद में अरबों रुपये खर्च होते हैं, मतदान कर्मियों का बीमा होता है, प्रत्याशियों की सुरक्षा में भी करोड़ो खर्च होते हैं, इनमें कुछ भी मौखिक नहीं होता, यहां तक कि कुछ दिन बाद रद्दी बनने वाली मतदान सामग्री का हस्तांतरण भी मौखिक नहीं होता।

 

मगर, सुरक्षा कर्मियों के आवासन, सहित मतदान सामग्री संग्रहण, वज्रगृह और मतगणना केन्द्र केलिए अधिग्रहित भवन का न कोई बीमा, न कोई कागजी कार्रवाई, न कोई करार या समझौता। फिर इस व्यापक आर्थिक, व शैक्षणिक क्षति केलिए जिम्मेदार कौन होगा? श्री दीपक ने इस सवाल कए साथ कहा कि सरकार, शिक्षा विभाग और चुनाव आयोग को इस विन्दु पर गंभीरतापूर्वक चिन्तन व मंथन करना चाहिए। क्योंकि इससे महाविद्यालय राजस्व की बेनामी क्षति के साथ-साथ छात्रों का भविष्य भी प्रभावित होता है

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