मुफ्त में मिल रहे 5 किलो अनाज प्रधानमंत्री की निजी संपत्ति नहीं आलेख -प्रभुराज नारायण राव

मुफ्त में मिल रहे 5 किलो अनाज प्रधानमंत्री की निजी संपत्ति नहीं
आलेख -प्रभुराज नारायण राव
जे टी न्यूज़


देश में मिल रहे गरीबों को 5 किलो मुफ्त अनाज का सारा श्रेय देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ले रहे हैं । जबकि भारतीय जनता पार्टी शुरू से अनुदानों का विरोधी रही है। वह देश के बड़े लोगों की पार्टी रही है । इसलिए किसी को भी अनुदान देने का लगातार विरोध करती रही है । पिछले दिनों 2020 में जब कोरोना का दौर आया। तो पूरा विश्व भयाक्रांत था। हर देश में कोरोना से मौत हो रहे थे । भारत जैसा विकासशील देश में मरने वालों की संख्या और ज्यादा थी । उससे बचाव का कोई रास्ता नहीं देख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों का दिमाग भटकाने के लिए थाली बजवाया। दीप जलवाए । न जाने क्या-क्या करवाया। इतना तक की इनका एक केंद्रीय मंत्री कोरोना भाग भाग के नारे भी लगा रहे थे।


उस समय प्रधानमंत्री ने देश के सारे कामकाज बंद कर दिए । आवागमन के सारे साधन बंद कर दिए गए। ऐसी स्थिति में भुखमरी देश में बढ़ गया। पलायन बढ़ गया ।भूख से लोग मरने लगे और विपक्ष ने प्रधानमंत्री से देश के लोगों को भूख से बचाने के लिए 10 किलो मुफ्त अनाज की मांग की। लेकिन प्रधानमंत्री ने 5 किलो मुफ्त अनाज की गारंटी की। उसके पहले मनमोहन सिंह की सरकार ने जुलाई 2013 से 2 रुपए किलो गेहूं और 3 रुपए प्रति किलो चावल राशन कार्ड के माध्यम से दे रही थी। इस तरह 12 रुपए देकर 5 किलो अनाज सभी लोगों को मिलता था। कोरोना काल में सभी लोगों को 10 किलो अनाज मिलने लगे थे । कोरोना की समाप्ति के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कूटनीति के तहत अनुदान पर मिलने वाले 5 किलो राशन को समाप्त कर मुफ्त में मिलने वाले 5 किलो अनाज को चालू रखा । नरेंद्र मोदी देश भर में इस बात का ढिंढोरा पीट रहे हैं कि हम गरीबों को मुफ्त में 5 किलो राशन दे रहे हैं । जबकि सच यह है कि 5 किलो राशन का बाजार भाव के अनुसार 188.70 रुपए प्रति 5 किलो बनते हैं । 1996 में जब देवगौड़ा की सरकार बनी थी । तो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सहित वाम दलों ने उस सरकार को समर्थन दिया था और उसके बदले आधे दाम पर गरीबों के लिए अनाज की मांग की थी ।यही कारण था कि देवगौड़ा ने लाल कार्ड जारी किया । जिस पर लोगों को आधे दाम पर अनाज मिलने लगा था। भारत में राशन प्रणाली आजादी के बाद से ही शुरु हो गई थी। जिसमें संशोधन कर 1996 में बाजार दर से आधे दाम पर गरीबों को राशन मिलना शुरु हुआ। फिर जुलाई 2013 से 12 रुपए में 5 किलो अनाज मिलना शुरु हो गया।

फिर कोरोना काल में 5 किलो अनाज मुफ्त मिला शुरु हो गया। यह पता है कि हमारा देश कल्याणकारी राष्ट्र है।यहीं कारण है कि कल्याणकारी योजनाएं बनती रही है। लेकिन मात्र 12 रुपए की छूट देकर मोदी सरकार इसका बाजारीकरण कर एक सस्ती ख्याति अर्जित करना चाहती है। जबकि इसके पहले प्रधानमंत्री देवगौड़ा या मनमोहन सिंह ने इतनी सस्ती ख्याति अर्जित करने की कभी कोशिश नहीं की। प्रधानमंत्री द्वारा इस तरीके के निम्न स्तरीय सोच की सख्त निंदा होनी चाहिए। क्योंकि जनता के पैसे जनता को मिला। यह समय की मांग होती है। न कि किसी प्रधानमंत्री के पॉकेट की संपति है।

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