*महात्मा गांधी के अंतिम दिन : एक मज़ार की तीर्थ यात्रा* *(आलेख : क़ुरबान अली)*/जे टी न्यूज़
*महात्मा गांधी के अंतिम दिन : एक मज़ार की तीर्थ यात्रा*
*(आलेख : क़ुरबान अली)*/

जे टी न्यूज़आज जब हर मस्जिद के नीचे मंदिर तलाश करने की साज़िश रची जा रही है, ऐसे में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद आती है कि वह आज होते, तो क्या करते और आज़ाद हिंदुस्तान में मात्र साढ़े पांच माह जीवित रहने के दौरान उन्होंने क्या किया और हिंदू-मुस्लिम एकता और आपसी सौहार्द को बनाए रखने के लिए उन्होंने अपनी जान को दांव पर लगा दिया और एक हिंदू फ़िरक़ापरस्त की गोली का निशाना बने। आज इस पर एक नज़र डालने की ज़रूरत है।

अपनी हत्या से ठीक 3 दिन पहले वे दिल्ली के महरौली स्थित दरगाह क़ुतुबउद्दीन बख़्तियार काकी की मज़ार पर गए थे। उनकी इस आखिरी सार्वजनिक यात्रा और इस महान कार्य की वजह क्या थी, जिसे उन्होंने एक तीर्थ यात्रा कहा था?
18 जनवरी 1948 को अपने अंतिम उपवास को समाप्त करने के ठीक नौ दिन बाद, दिल्ली में शांति और सौहार्द क़ायम करने के मक़सद से 79 वर्षीय महात्मा गांधी ने, जो बेहद कमज़ोर और थके हुए थे, कड़कड़ाती ठंड में अपनी हत्या से ठीक तीन दिन पहले, 27 जनवरी को दिल्ली की महरौली स्थित क़ुतुबउद्दीन बख़्तियार काकी दरगाह का दौरा किया था। उनके इस दौरे का मक़सद था कि वह ख़ुद मौक़े पर जाकर सांप्रदायिक दंगों के दौरान वहां दरगाह को हुए नुकसान को देख सकें, जो एक अभूतपूर्व सांप्रदायिक हिंसा में घिरी हुई थी।

दिल्ली में कड़ाके की ठंड थी और वे सांप्रदायिक तांडव के दौरान हुए नुकसान को देखने के लिए सुबह 8 बजे से पहले वहां पहुंच गए। वह इस बात से बहुत दुखी थे कि धर्म के नाम पर मुसलमानों पर उनके ही देश में हमला किया जा रहा था। वे मौलाना आज़ाद और राजकुमारी अमृत कौर के साथ वहां गए थे। हालांकि उस समय वहां सालाना उर्स चल रहा था, फिर भी माहौल काफ़ी ग़मगीन था और बापू अस्वस्थ थे, क्योंकि वे हाल ही में उपवास पर थे।
इस पवित्र स्थान पर हमला होने और तोड़फोड़ क�


