*एम.एस. गोलवलकर : ‘निराशा के गुरु!* *(आलेख : शुभम शर्मा — धीरेन्द्र के. झा द्वारा लिखित ‘गोलवलकर : द मिथ बिहाइंड द मैन, द मैन बिहाइंड द मशीन’ की समीक्षा, अनुवाद : संजय पराते)*/

*एम.एस. गोलवलकर : ‘निराशा के गुरु!*
*(आलेख : शुभम शर्मा — धीरेन्द्र के. झा द्वारा लिखित ‘गोलवलकर : द मिथ बिहाइंड द मैन, द मैन बिहाइंड द मशीन’ की समीक्षा, अनुवाद : संजय पराते)*/जे टी न्यूज़

पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों और दुर्रानी के बीच टकराव अपरिहार्य लग रहा था। इसके ठीक एक वर्ष पहले, करहाड़े जाति के ब्राह्मणों के एक समूह को मराठा राजवंश के राजा छत्रपति के प्रधानमंत्री पेशवा बालाजी बाजी राव ने उनके पैतृक गांव से भगाया था।

पेशवा के ध्यान में यह बात लाई गई थी कि दशहरा की पूर्व संध्या पर गोलवाली के करहाड़े लोगों ने अपने स्थानीय मंदिर की अधिष्ठात्री देवी को संतुष्ट करने के लिए मानव बलि का जघन्य कृत्य किया था। पेशवा, जो ब्राह्मणों के चितपावन वंश से संबंधित थे, लंबे समय से करहाड़े लोगों के खिलाफ़ द्वेष रखते थे। मानव बलि के प्रकरण ने पेशवा को करहाड़ों पर हमला करने का एक अनूठा अवसर प्रदान कर दिया। पेशवा ने करहाड़ों के 72 गांवों पर वंशानुगत अधिकार रद्द कर दिए। अपने नुकसान से दुखी होकर, बाहर जाने वाले ब्राह्मणों ने पेशवाओं को शाप दिया कि उनकी शक्ति जल्द ही नष्ट हो जाएगी। संयोग से, शाप सच साबित हुआ। पेशवा को पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली के हाथों हार का सामना करना पड़ा।

गोलवाली के ब्राह्मण इधर-उधर घूमते रहे और उपमहाद्वीप के दूसरे हिस्सों में जाकर बस गए। लगभग 150 साल बाद, विस्थापित करहाड़े परिवार में माधव सदाशिव गोलवलकर का जन्म हुआ। चूंकि हिंदुत्व का इतिहास बदला लेने और प्रतिशोध पर केंद्रित है, इसलिए उम्मीद की जा सकती थी कि गोलवलकर चितपावनों के प्रति प्रतिशोधी रवैया रखेंगे। इसके बजाय, वे चितपावन ब्राह्मण वी.डी. सावरकर के वैचारिक प्रभाव में आ गए, जिन्होंने अपने अनुयायियों को धार्मिक अल्पसंख्यकों पर बंदूकें तानने के लिए प्रेरित किया था, खास तौर पर मुस्लिमों �

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