सामुदायिक रेडियो अब स्वास्थ्य जागरूकता में भी करेगा योगदान

सामुदायिक रेडियो अब स्वास्थ्य जागरूकता में भी करेगा योगदान

जे टी न्यूज, पटना/भागलपुर :
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर (भागलपुर) ने सामुदायिक रेडियो के क्षेत्र में एक अनोखी पहल की शुरुआत की है, जो न केवल विश्वविद्यालय परिसर में, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी चर्चाओं का केंद्र बन चुका है। विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो स्टेशन 90.8 एफएम ग्रीन पर स्थापित एक विशाल धातु निर्मित रेडियो सेट, जिसका वजन लगभग एक क्विंटल है और आकार में यह पाँच फीट चौड़ा तथा तीन फीट लंबा है, अब तक एक सेल्फी पॉइंट के रूप में भी प्रसिद्ध हो चुका है। यह रेडियो सेट छात्रों, किसानों और कृषि वैज्ञानिकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन चुका है, और दूर-दूर से लोग इसे देखने और सुनने के लिए आते हैं।

इस रेडियो सेट का उद्घाटन 5 अगस्त 2024 को सामुदायिक रेडियो स्टेशन 90.8 एफएम ग्रीन के पाँचवे स्थापना दिवस के मौके पर किया गया था। यह रेडियो स्टेशन 2010 में स्थापित हुआ था, और तब से अब तक यह राज्य के प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक महत्वपूर्ण रेडियो स्टेशन बन चुका है। इसके प्रसारण में कृषि, सामाजिक और स्वास्थ्य विषयक जानकारी शामिल है, जो न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रभावी हो रही है।

कृषि, समाज और स्वास्थ्य पर आधारित कार्यक्रमों का प्रसारण
90.8 एफएम ग्रीन रेडियो पर चौबीसों घंटे विविध प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं, जिनमें प्रमुखता से कृषि से संबंधित कार्यक्रम होते हैं। लगभग आधे कार्यक्रम कृषि के नवीनतम तकनीकी विकास, पशुपालन, चारा उत्पादन, पराली प्रबंधन, मशरूम की खेती, और कचरा प्रबंधन जैसी महत्वपूर्ण जानकारियों से जुड़े होते हैं। इसके अलावा, एक तिहाई कार्यक्रम सामाजिक मुद्दों और विज्ञान पर आधारित होते हैं, जो सामाजिक जागरूकता और समुदाय में सकारात्मक बदलाव लाने का काम करते हैंl

 

नवीनतम पहल के तहत, विश्वविद्यालय ने अब स्वास्थ्य जागरूकता से संबंधित कार्यक्रमों के प्रसारण की योजना बनाई है। इसके तहत, चिकित्सकों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और अधिकारियों से साक्षात्कार लेकर, स्वास्थ्य से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियों, रोगों के कारणों और निदान पर आधारित विशेष कार्यक्रम प्रसारित किए जाएंगे। यह पहल ग्रामीण समुदाय को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाने के साथ-साथ उनके जीवनस्तर को भी बेहतर बनाने में मदद करेगी।

*रेडियो सेट की तकनीकी विशेषताएँ*
यह रेडियो सेट अपनी तकनीकी विशेषताओं के कारण खास बन गया है। इसमें एक बारकोड और एलईडी लाइट्स की व्यवस्था की गई है। बारकोड स्कैन करके लोग विश्वविद्यालय के पोडकास्ट को कभी भी, कहीं भी अपने मोबाइल फोन पर सुन सकते हैं। एलईडी लाइट्स की वजह से यह रेडियो सेट रात में भी चमकता रहता है, और इसका धातु निर्माण इसे मौसम की कठिन परिस्थितियों—धूप, बारिश या ठंड—से प्रभावित नहीं होने देता। यह एक स्थायी और आकर्षक डिज़ाइन के रूप में खड़ा रहता है।

इसके अलावा, यह पहल उन मिलेनियम बेबीज़ के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो रेडियो के बारे में ज्यादा नहीं जानते और मोबाइल फोन का इस्तेमाल प्राथमिक रूप से करते हैं। इस रेडियो सेट के माध्यम से विश्वविद्यालय ने युवा पीढ़ी को रेडियो से जोड़ने का प्रयास किया है।

*प्रचार-प्रसार और सेल्फी पॉइंट*
इस विशाल रेडियो सेट का प्रचार-प्रसार भी व्यापक रूप से किया जा रहा है। विश्वविद्यालय परिसर में इसे एक सेल्फी पॉइंट के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो न केवल विद्यार्थियों और किसानों, बल्कि पूरे विश्वविद्यालय समुदाय के लिए एक आकर्षण का केंद्र बन चुका है। विशेष रूप से, कृषि विश्वविद्यालय के वार्षिक किसान मेला जैसे आयोजनों में इसे प्रमुख रूप से प्रदर्शित किया जाता है।

*संवाद और विकास*
रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रमों की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों और तकनीकी टीम के सदस्य नियमित रूप से संवाद करते हैं। उनकी मदद से रेडियो के प्रबंधन में सुधार किया जाता है, और कार्यक्रमों की सामग्री को अद्यतन किया जाता है।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने कटिहार में एक और सामुदायिक रेडियो स्थापित करने की योजना बनाई है, जिससे और अधिक किसानों और समुदायों तक पहुंच बनाई जा सके। यह रेडियो क्षेत्रीय किसानों और स्थानीय समुदायों को न केवल कृषि से संबंधित जानकारी देगा, बल्कि स्वास्थ्य और सामाजिक जागरूकता के क्षेत्रों में भी बड़ा योगदान करेगा।

*इतिहास और योगदान*
इस विश्वविद्यालय का इतिहास भारतीय कृषि शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला रहा है। यह बिहार कृषि महाविद्यालय के रूप में 1905 और 1908 के बीच स्थापित हुआ था और इसके बाद वर्ष 2010 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। तब से यह विश्वविद्यालय कृषि शिक्षा, अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में एक प्रमुख संस्थान बन चुका है।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय का सामुदायिक रेडियो अब केवल कृषि और सामाजिक मुद्दों तक सीमित नहीं है। यह स्वास्थ्य जागरूकता के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कदम बढ़ा चुका है, और यह ग्रामीण समुदाय को सशक्त बनाने, उन्हें सही जानकारी प्रदान करने और उनके जीवन को बेहतर बनाने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। यह पहल न केवल विश्वविद्यालय के छात्रों और किसानों के लिए बल्कि पूरे समुदाय के लिए एक सकारात्मक बदलाव का प्रतीक बन चुकी है।

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