राजनीतिक रीढ़विहीन ईमानदार पत्रकार भ्रस्टाचार की लड़ाई को राजनेताओं के लिए छोड़ दे – डॉ. धर्मेन्द्र कुमार यादव
राजनीतिक रीढ़विहीन ईमानदार पत्रकार भ्रस्टाचार की लड़ाई को राजनेताओं के लिए छोड़ दे – डॉ. धर्मेन्द्र कुमार यादव

जे टी न्यूज़
भ्रस्टाचार के खिलाफ लड़ाई आज नयी नहीं है लेकिन इसके खिलाफ आवाज उठाने वालों की मौत की लिस्ट में एक और नया ईमानदार पत्रकार मुकेश चंद्रकार का नाम जुड़ गया है जिसने छत्तीसगढ़ में एक सड़क निर्माण में हो रहे भ्रस्टाचार का खुलासा किया था. स्वाभाविक है हत्यारा उस सड़क का निर्माण करने वाला हीं कोई होगा क्योंकि उसका शव ठेकेदार सुरेश चंद्रकार के बैडमिंटन कोर्ट के पास बने टैंक के अन्दर से मिला है. गौरी लंकेश भी तो इसी का शिकार हुयी न, ईमानदारी की भेंट चढ़ गयी. प्रश्न है कि क्या भ्रस्टाचार से लड़कर एक आम जनता या एक ईमानदार पत्रकार जीत सकता है? हो सकता है हजारों केस में किसी एक में जीत हो जाय लेकिन अधिकांश में उत्तर नहीं हीं होगा, इसकी गारंटी है. अपने छात्र जीवन में मैं अपने खटाल में बिजली का कनेक्शन लगवाने के लिए एक दिन एक नेता के पास सुबह सुबह पहुँच गया. मेरे से पहले एक व्यक्ति भी उनसे मिलने के लिए लाइन में लगे हुए थे. हम दोनों वहीँ इन्तेजार कर रहे थे. नेताजी आये तो मैंने पहले उसे हीं बात करने के लिए कहा, क्योंकि वो मुझसे पहले से आया हुआ था. वो उस नेताजी को पहचानता था. उस व्यक्ति ने बोला “नेताजी बीती रात में पुटकी कोलियरी से दो तीन टेम्पू लोहा चोरी हुआ है और उस टेम्पू का नंबर मुझे पता है. मैं यह अख़बार में छापूँ या नहीं?” नेताजी ने बोल दिया नहीं. फिर उनका ध्यान मेरे ऊपर गया तो पूछा तुम्हें क्या काम है? मैंने अपना काम बताया तो उन्होंने बोला बात किये हैं कुछ दिन में हो जायेगा. मैं चला आया. कुछ दिन तक रोज धनबाद से निकंलने वाला तीन चार प्रमुख अखबार देखता रहा लेकिन वह लोहा चोरी का खबर नहीं छपा. यह बात मैंने अपने एक मित्र से बोला तो उसने बोला वही नेता तो लोहा कोयला चोरी करवाता है. मैं चुप रहा गया.

छात्र जीवन के हीं दौरान मैं राजद का एक नेता था और विभिन्न मुद्दों पर अक्सर धरना प्रदर्शन में शामिल होता था. एक बार कुछ लोग मुझसे शिकायत किया कि राशन वाला ठीक से राशन नहीं देता है उस पर कुछ करवाई कीजिये. मैं भी ताव में आकर तब के खाद्य आपूर्ति मंत्री पूर्णमासी राम के नाम एक पत्र लिख कर अख़बार में छाप दिया. अख़बारों में प्रमुखता से छापा. मंत्री ने धनबाद के डीएम को फोन घुमाया. डीएम मुझे ढूंढते हुए मेरे घर तक आ गए कि डी के यादव कौन है? राशन वाला अलग परेशान करने लगा कि आप अख़बार में इसका खंडन कीजिये और उसने अपना सारा दुखड़ा सुनाया. जिस जिस व्यक्ति का नाम मैंने अख़बार में दिया था सभी ने मुझसे शिकायत की कि आपने मेरा नाम क्यों डाला? मतलब जिसके लिए मैं लड़ रहा था वो मेरे साथ आने को तैयार नहीं हुआ. राशन दुकान वाला डीलर लगभग धमकी दे चूका था. तब मेरे पिताजी भी दूध बेचने गाँव में जाते थे. मैं भी डर गया कि कहीं मेरे पिताजी को कुछ कर ने दे और अंततः मैंने राशन वाले डीलर को यह बोल दिया कि मैंने अब इसमें कोई कार्यवाई नहीं करूँगा. कितना अजीब केस था कि जो चोरी कर रहा है उससे पत्रकार पूछता है कि आपके चोरी के बारे में अख़बार में छापूँ, जिस जनता की आवाज मैं उठा रहा था वो मेरे साथ आने को तैयार नहीं था और मुझसे उम्मीद कर रहा था कि मैं उसकी लड़ाई बिना उसका नाम लिए लडूं. मुकेश चंद्रकार ने व्यवस्था को समझने में गलती कर दी. क्या व्यवस्था ईमानदार लोगों के दम पर चल रहा है या टिका हुआ है?

क्या जनता ईमानदार है? व्यवस्था को कौन नियंत्रित कर रहा है? भ्रस्टाचार सुनने में बहुत बुरा शब्द लगता है और है भी लेकिन क्या बिना भ्रस्टाचार के वर्तमान लोकतंत्र की कल्पना भी की जा सकती है? अर्थशास्त्र में ऐसी मान्यता है कि भ्रस्टाचार अर्थव्यवस्था में ग्रीज़ का काम करता है इसीलिए अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलने के लिए थोड़ी बहुत भ्रस्टाचार होती रहनी चाहिए. जब मैंने राशन वाले के खिलाफ करवाई किया था तो उसने बताया था कि किस किस अधिकारी को कितना कितना पैसा देना पड़ता है? फिर वो पैसा कहाँ कहाँ भेजा जाता है? अपने अठारह वर्ष के व्यवसायिक अनुभव के आधार पर कहता हूँ कि भ्रस्टाचार की जड़ एक सफाई कर्मचारी से लेकर राष्ट्रपति के दरवाजे तक जाती है. कौन नहीं जनता है कि कोरोना काल में बनायीं गयी वैक्सीन पर भी चंदा लिया गया? राजनीतिक पार्टियाँ चंदा लेने के लिए इलेक्टोरल बांड तक बाजार में लांच कर दिया. जो चंदा देने वाले लोग हैं क्या वो अपने खून पसीने की कमाई से चंदा देते हैं? जो लाखों रूपये चंदा दे रहे हैं क्या वो करोड़ों की कमाई नहीं करेंगे? भ्रस्टाचार की गंगोत्री में बहने वाली व्यवस्था क्या ईमानदार पत्रकारों को बर्दास्त कर पायेगा? आये दिन आर.टी.आई. कार्यकर्ताओं की हत्याएं होती रहती है क्योंकि वो भ्रस्टाचार का खुलासा करते रहते हैं.

आखिर भ्रस्टाचार की जड़ कहाँ से शुरू होती है? लोकतंत्र के चारो स्तम्भ भ्रस्टाचार से अछूता नहीं है. स्वाभाविक है जो शक्तिशाली है उसके खिलाफ भ्रस्टाचार उजागर करना मौत को गले लगाना है. बिहार में ऐसी हीं अनोखी घटना है चारा घोटाला जो 1977-78 से शुरू हुआ माना जाता है. लालू प्रसाद यादव 1990 में मुख्यमंत्री बने तो कुछ वर्ष बाद उन्होंने इस पर सीबीआई जाँच के लिए अनुशंसा किये. राजनीतिक प्रतिशोध के कारण स्वयं उन्हें हीं फंसा दिया गया क्योंकि वो पारंपरिक शासक वर्गों के आंख का कांटा बन चुके थे और जिसने यह चक्रव्यूह रचा वो कामयाब भी हुए. ऐसा माना जाता है कि ठेका लेने पर हर कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के लिए कुछ फीसदी हिस्सेदारी पहले से तय होता है और सबको देने के बाद मुश्किल से 50 से 60 फीसदी फण्ड बचता है जिससे ठेकेदार को काम भी करवाना होता है अपना पिछला चंदा भी वसूल करना होता है अपना घर भी चलाना होता है और अगले चुनाव के लिए चंदा भी इकट्ठा करना होता है. जाहिर है अगर भ्रस्टाचार नहीं करेगा तो उसे अपना घर बेच कर काम करवाना होगा. अधिकांश भारतीय नागरिक खासकर शोषित वंचित वर्ग के लोग स्वभावतः ईमानदार प्रवृति के होते हैं और व्यवस्था की ठीक समझ नहीं होने के कारण ईमानदारी का शिकार हो जाते हैं. नजदीक से दृष्टी दौड़ाएं तो पाएंगे कि एक भी संस्थान भ्रस्टाचार से अछुता नहीं है. जब तक भ्रस्टाचार उजागर करने वाले व्यक्ति के साथ कोई बड़ी राजनीतिक शक्ति नहीं खड़ी है तब तक उसके खिलाफत का अंजाम उसकी मौत हीं होगी या फिर कोई खास असर नहीं होगा. बिहार में वर्तमान मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार के ऊपर सृजन घोटाले आदि कई आरोप लगाये गए लेकिन कुछ नहीं हुआ क्योंकि उनके साथ देश की बहुत बड़ी ताकत खड़ी है जिसने लालू प्रसाद यादव को फसाया और उनकी राजनीतिक जीवन को बर्बाद कर दिया.

1947 से अब तक देश में अरबों खरबों का घोटाला हुआ: मुंद्रा, नागरवाला, बोफोर्स, स्टॉक मार्किट, स्टाम्प पेपर, हवाला, कफ़न, व्यापम, कोयला, ललित मोदी, नीरव मोदी, पेट्रोल पंप, बैंक, इलेक्टोरल बांड, आदि. जिनके पास राजनीतिक शक्ति नहीं थी उन्हें सजा मिली और जिनके पास शक्ति थी वो बच निकले. अभी सदियों तक इस देश से कोई भ्रस्टाचार को ख़त्म नहीं कर सकता है. इसीलिए ईमानदार पत्रकार अपनी जान की हिफाजत के बारे में पहले सोचे और व्यवस्था के बारे में बाद में. जब तक ईमानदार पत्रकार के पास किसी राजनीतिक शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त न हो तब तक वो भ्रस्टाचार की लड़ाई को राजनेताओं और प्रशासन के लिए हीं छोड़ दे.