नीतीश और तेजस्वी को नुकसान पहुँचाने में प्रशांत किशोर की भूमिका अहम – सूत्र

जे टी न्यूज, पटना: आपको सुन कर थोड़ा अटपटा तो लग ही रहा होगा दिल्ली चुनाव के बाद बिहार में नीतीश कुमार की साख दांव पर है, अब या तो खेला करो या खेल खत्म जैसी मौसम बहने लगी है। बसंत के इस सुहाने मौसम को नीतीश कुमार को अंदाजा हो चुका है। बिहार में भी वही रिजल्ट आएगा जो दिल्ली में आया है। यहां बीजेपी का समीकरण टाइट है। चिराग के नाम पर पासवान, मांझी के नाम पर मुसहर, उपेन्द्र कुशवाहा और सम्राट चौधरी के नाम पर कोयरी जैसी बड़ी आबादी वाली जातियां बीजेपी को वोट करेगी। नीतीश कुमार के साथ अतिपिछड़ा का सॉलिड वोट है। अगड़ी जाति भाजपा के साथ मजबूती से खड़ी है। महागठबंधन के पास एक वोट बैंक वाले नेता मुकेश सहनी हैं। बाकी वामपंथी पार्टियों का दायरा कुछ सीमित क्षेत्रों में ही है। रही बात राजद के माय समीकरण की, तो वो पहले ही दरक चुका है।

भाजपा अगर हिंदुत्व का कार्ड खेली तो महागठबंधन धाराशायी हो जाएगा। तेजस्वी यादव ए टू जेड का मोह त्याग कर अखिलेश यादव की तरह पीडीए की राह पर चले, तो भी स्मिता बचाने की लड़ाई होगी। कांग्रेस में दलित पिछड़ों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं है। बिहार कांग्रेस के बड़े नेताओं की जाति के लोग भाजपा के वोटर हैं। अगर बिहार में बीजेपी को बहुमत मिला और नीतीश कुमार की सीटें कम आयी तो इस बार भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनाएगा, कम सीटों पर जीत के चलते नीतीश कुमार पिछली बार ही मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे। फिर भी भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया, इस बार ऐसी उम्मीद नहीं है। हाल ही में अटल जी की जयंती पर डिप्टी सीएम विजय सिन्हा सार्वजनिक मंच से कह चुके हैं कि वाजपेयी को सच्ची श्रद्धांजलि तब मिलेगी जब भाजपा की अपनी सरकार होगी। ऐसे में भाजपा पुराने आर एस एस वाले नेता को मुख्यमंत्री बना सकती है। सम्राट चौधरी आर एस एस वाले नहीं हैं, पार्टी के कई नेता उनके प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम बनने पर ही विरोध कर रहे थे, क्योंकि सम्राट पुराने भाजपाई या आर एस एस से निकल कर नहीं आये हैं। वे राजद और जदयू का सफर कर के भाजपा में पहुंचे हैं। फिर कौन बनेगा मुख्यमंत्री, तो इसका जवाब बस इतना है कि कोई दलित पिछड़ा नेता इस रेस में नहीं दिख रहे हैं। संभव हो कि अगड़ी जाति के किसी नेता के चेहरे को आगे किया जा सकता है।
साभार -फेसबुक

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