स्मृति शेष विश्वनाथ प्रसाद शर्मा जैसों के त्याग-तपस्या के बल पर ही आज हम आजादी का अनुभव करते हैं – रवीन्द्र कुमार रतन 

जे टी न्यूज, वैशाली: अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संस्थान , हाजीपुर की ओर से समाज सेवी, अध्यात्म के प्रणेता, स्वतंत्रता – सेनानी, स्मृति शेष विश्वनाथ शर्मा जी की 22वीं पुण्य तिथि पर हमने उन्हे अपने शब्द सुमनो से श्रद्धा- सुमन अर्पित करने का दुरूह प्रयास किया है ।यह महज संयोग है कि हिंदी- बज्जिका साहित्य के साहित्यकार कवि अग्रज वत श्री उदय नारायण सिंह जी का स्नेह – सहयोग प्राप्त रहने के कारण पता चला कि उनके पिताश्री स्वतंत्रता सेनानी विश्वनाथ प्रसाद शर्मा थे और मेरे पिता श्री भी विश्वनाथ प्रसाद श्रीवास्तव थे । नाम की एकरूपता के कारण जिज्ञासा बढी ,और अग्रज उदय बाबू से जो कुछ जानकारी मिली उसी के आधार पर। उनके 22वीं पुण्यतिथि पर अपने शब्द सुमनों से श्रद्धापूर्वक आलेख लिखने का दुरूह प्रयास किया । स्वतंत्रता की लड़ाई में अनगिनत लोगों ने भाग लिया ,कुछ तो शहीद हो गये ,कुछ जेल में रहे और कुछ फरार रह कर दर – दर की ठोकरे खाते रहे । ऐसे ही वीर सेनानियों में से एक थे विश्वनाथ प्रसाद शर्मा जी जिनका जन्म 19 नवम्बर 1924 को एवं मृत्यु 22 फरवरी 2003 को हुआ। आपने पिता जानकी प्रसाद सिंह की गोद एवं मां रेशमी देवी की कोख को 19-11-1924 को पवित्र किया। आपसे एक बहन बड़ी और एक बहन छोटी थी।आपने अपने गांव तिलक ताजपुर (पोता ताजपुर) के स्कूल से 1936 में अपर प्राइमरी की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की ।चंदौली (बेलसंड) से मिडल स्कूल की परीक्षा 1938 में उत्तीर्ण कर उच्चतर विद्यालय की पढ़ाई हेतु गंगेया हाई स्कूल (कटरा)में दाखिला लिया। 8वीं से 11वीं क्लास की पढ़ाई के बीच आप कतिपय बार स्कूल प्रबंधन के हाथों श्रेष्ठ वक्ता एवं शुद्ध लेखन हेतु सम्मानित किये गए। आप की बुद्धि कुशाग्र और तीक्ष्ण थीं।आप जितना पढ़ते थे उससे कहीं ज्यादा समझते थे।जो बातें दिमाग़ में बैठ गई उसे आपने ताउम्र याद रखा।1940 में आपका पावन परिणय संस्कार राजबाड़ा गांव वासी बाबू कल्लर चौधरी की सुकन्या एवं बाबू देवनन्दन चौधरी की बहन सरस्वती कुमारी से संपन्न हुआ।1942 में आपकी मैट्रिक की परीक्षा होने वाली थी परंतु महात्मा गांधी के आह्वान पर आपने अंग्रेजी शिक्षा को तिलांजलि दे दिया और कूद पड़े,भारत मां की गुलामी की जंजीर को तोड़ने खातिर , समरांगन में। आप 1943 से 1947 तक भूमिगत रहकर स्वतंत्रता आन्दोलन को धार देते रहे। आप आंदोलनकारियों का एक समूह बनाकर अंग्रेज शासकों के दांत खट्टे करते रहे। बेलसंड और कटरा थाने की पुलिस आपको खोजती रही पर आप कभी उनके हाथ नहीं आए।15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। तत् पश्चात श्रीमद्भागवत गीता और रामचरित मानस आपका संबल बना। आपका मानना था -” ज्ञान के लिए स्कूली शिक्षा आवश्यक नहीं है। ज्ञान स्वाध्याय से होता है।”आपने अपनी मान्यता को अपने जीवन में चरितार्थ किया।

इस तरह गांव के खेत -खलिहान, हरे-भरे पेड़ और माटी की सुंगध ने आपका मन मोह लिया और आपने अपने गांव,समाज को आमूलचूल परिवर्तित करने का सपना संजोने लगे।इसी क्रम में 1948 में आप कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य हो गए। कांग्रेस पार्टी ने आपको अपने रचनात्मक और संगठनात्मक कार्यों से जोड़ लिया।

नौ महीने के प्रशिक्षणोंपरांत आप वहां गंभीर रूप से बीमार हो गए।उन दिनों दादा धर्माधिकारी वहां के निदेशक थे और भाई धीरेन मजूमदार प्राचार्य। उन लोगों ने आपको जलवायु परिवर्तन हेतु घर जाने की सम्मति दी।उन लोगों की सम्मति के आलोक में आप 1951 में गांव लौट आए। यहां आने पर आप गंभीर रूप से बीमार हो गए। पारिवारिक दबाव इतना पड़ा कि फिर आप गांव के हीं होकर रह गए।

1952 से 2002 तक तिलक ताजपुर पंचायत में जितने भी रचनात्मक कार्य हुए,ये सभी काम आपकी दूरदर्शिता के परिचायक हैं। गांव का मिडल स्कूल हो,अपर प्राइमरी स्कूल पूरबी टोला या अपर प्राइमरी स्कूल नमनगरा।

नवजीवन पुस्तकालय ,प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र,खादी ग्रामोद्योग केन्द्र की स्थापना,मखनू हाई स्कूल एवं 1960 में गांव की मुख्य सड़क को सीतामढ़ी/मुजफ्फरपुर सड़क से जोड़ने का काम, स्वनामधन्य स्मृति शेष तत्कालीन विधायक त्रिवेणी प्रसाद सिंह से कहकर रून्नी में पीपा पूल निर्माण ये सब आपके परिश्रम एवं दूरदर्शिता के सुफल हैं। आप 1952 से 1970 तक थाना कांग्रेस कमेटी, प्रखंड कांग्रेस कमेटी एवं जिला कांग्रेस कमेटी के विभिन्न पदों पर रहकर कांग्रेस के संगठनात्मक एवं रचनात्मक स्वरूप को स्वस्थ रखने में जो भूमिका निभाई।

वह आने वालीं पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत है।1962 में बाबू जगजीवन राम की अध्यक्षता में पटने में औल इंडिया कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, विजयालक्ष्मी पंडित, इन्दिरा गांधी एवं देश के सभी उच्च कोटि के नेताओं का पदार्पण हुआ था। उक्त अधिवेशन में मुजफ्फरपुर से एक डेलीगेट के रूप में आप भी चयनित होकर पटना अधिवेशन में भाग लेने गए थे।

तिलक ताजपुर पंचायत में 1960 में बहुधंधी सहयोग समिति की स्थापना कर आपने जो समस्त ग्रामीणों की सेवा की उसे कोई कैसे भूला सकता है।1960 से 1974 तक आप बहुधंधी सहयोग समिति तिलक ताजपुर पंचायत के निर्विरोध मंत्री रहे।आपके कार्यकाल में सहकारिता आंदोलन शिशु से जवान हुआ।यह आपकी कर्मठता एवं स्वस्थ कार्यकुशलता का परिचायक है।

आपकी स्पष्टवादिता, निर्भीकता और सामाजिकता आप को औरों से अलग करती है।आप वही बोलते और करते थे जो आपको उचित लगता था। ठकुरसुहाती बात आप कभी किसी से नहीं करते।समाज समरस कैसे हो इसकी चिंता आपको बराबर रहती थी। बात 1952 की है।आप सेवा ग्राम वर्घा महाराष्ट्र से लौटे थे।उन दिनों गांव में छूआ -छूत परवान पर था, पर आप छूआ – छूत को निरर्थक मानते थे। किसी ने आपसे कहा – ‘अहां ऐनुल के हाथ से पानी पी लेवई?’आपने सहर्ष स्वीकार किया और ऐनुल दर्ज़ी के हाथ से पानी पिया।इस कारण तत्कालीन समाज ने आपकी खूब भर्त्सना की, पर आप गजराज की तरह अडिग रहे। कुछ दिनों बाद बात आई- गई हो गई।1971 के बाद गिरती राजनैतिक व्यवस्था और गिरते राजनैतिक चरित्र से दुखी होकर आपने राजनीति से संन्यास ले लिया। आपने,अपने को राजनीति से किनारा कर लिया और आपने अपना ध्यान सामाजिक समरसता, स्वाध्याय एवं आध्यात्मिकता की ओर पूरी तरह से केन्द्रित कर लिया। स्वार्गारोहण से एकाध दिन पहले भी आप ने गीता का उत्स स्वजनों -परिजनों के बीच साझा करते हुए कहा था -“मेरे शरीर का रूपांतरण होगा नाश नहीं; क्योंकि किसी भी पदार्थ का कभी नाश नहीं होता सिर्फ रूपांतरण होता है। आत्मा मरती नहीं देह का रूपांतरण होता है।”आज भी आप अपनी यशोकाया के साथ अपने बन्धु -बान्धवों के बीच हैं, इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है। तभी तो आपके स्वर्गारोहण पर अपने शोक संदेश में वयोवृद्ध/ज्ञानवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी पूर्व विधायक एवं मुजफ्फरपुर जिला के लब्धप्रतिष्ठ अधिवक्ता श्री त्रिवेणी प्रसाद सिंह जी ने कहा था -‘वे उच्च कोटि के चरित्रवान, सत्यवादी एवं स्पष्ट वक्ता थे।उनके जैसा सभी अच्छे गुणों से सम्पन्न हमारे क्षेत्र में कोई नहीं था।”पूर्व मंत्री बिहार सरकार श्री नवल किशोर शाही ने अपने शोक संदेश में कहा था -‘श्री शर्मा देश और समाज के अमूल्य धरोहर थे। इनके निधन से समाज को जो क्षति हुई है वह अपूर्णीय है। ब्रह्मर्षि समाज पत्रिका पटना (संपादक दशरथ तिवारी) के अप्रील2003 अंक में, आपके देहावसान को ब्रह्मर्षि समाज की अपूर्णीय क्षति के रूप में व्याख्यायित किया था।आप अपनी यशोकाया एवं कृतियों में सदा जीवित है।

आपकी पंक्तियों को हीं मैं यहां आपके पाद -पद्मों में समर्पित कर रहा हूं।

“यूं तो मूंह देखी मोहब्बत करते सारे उम्र भर,

मै तो जानूं रखो याद मरने के बाद।”

आपकी यश एवं कृति की महक से आज भी तिलक ताजपुर , थाना रून्नी सैदपुर,जिला सीतामढ़ी की मिट्टी सुवासित एवं सुगंधित है ।आप अपनी यशोकाया के साथ सदा अमर रहेंगे ।

इस प्रकार हम पाते हैं कि हमारे अभिभावक वत विश्वनाथ बाबू आजादी की लडाई में सक्रिय रहे मगर जेल नही जाने के कारण इन्हे स्वतंत्रता सेनानी पेंशन एवं ताम्र पत्र से वंचित रहना पड़ा। ऐसे हजारो सेनानी है जो भगत सिंह,चन्द्र शेखर आजाद, सुभाष चन्द्र बोस, जय प्रकाश नारायण ज की तरह आजादी के संग्राम में गुम्बद तो नही थे मगर नींव की ईंट अवश्य थे जो दिखाई तो नहीं देता मगर आधार शिला का एहसास तो दिलाता ही है।

अंत में आप मेरे इस शब्द- पुष्प एवं भाव-किसलय रूपी नैवेद्य को स्वीकार करें और सदा अपने स्नेहाशीष की बरसात से हम सभी को अभिसिंचित करते रहें।

सश्रद्ध नमन! वंदन! अभिनंदन

Related Articles

Back to top button