भारतीय ज्ञान परंपरा में नारी विषयक संवाद आयोजित
भारतीय ज्ञान परंपरा में नारी विषयक संवाद आयोजित

जे टी न्यूज, मधेपुरा: ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के तत्वावधान में सोमवार को आईसीपीआर, नई दिल्ली की स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत भारतीय ज्ञान परंपरा में नारी विषयक एक संवाद का आयोजन किया गया। इसमें बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, नई दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र आदि राज्यों के 150 से अधिक शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया।
*भारतीय ज्ञान परम्परा में नारी को बहुत उच्च स्थान : प्रो. चंद्रकला पाडिया*
इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर (राजस्थान) की पूर्व कुलपति प्रो. चंद्रकला पाडिया ने कहा कि
भारतीय ज्ञान परम्परा में नारी को बहुत उच्च स्थान दिया गया है। यह अलग बात है कि चिन्तन और व्यवहार में अन्तर पाया जाता है। उसके लिए भारतीय बौद्धिक परम्परा उत्तरदायी नहीं है, वरन हमारी कुत्सित मानसिकता उत्तरदायी है।

उन्होंने कहा कि नारीवाद की इतनी महान परम्परा के बावजूद ‘भारतीय नारीवाद’ को वैश्विक धरातल पर नारीवादी विमर्श में कोई स्थान नहीं प्राप्त है। परन्तु औपनिवेशिक मानसिकता के कारण भारतीय विद्वानों ने स्त्री के स्थान को हमार मूलग्रंथों वेदों और उपनिषदों में स्त्री के स्थान का अध्ययन नही किया। केवल जो कुछ विदेशियों ने कह दिया वे उसी पर विश्वास करते आये हैं।हम सब औपनिवेशिक मानसिकता से ऊपर उठकर अपनी ज्ञान परम्परा का गहन अध्ययन करें और उसम निहित उच्च मानव मूल्यों को उजागर करें।
उन्होंने कहा कि पाश्चात्य नारीवादी चिन्तन किसी भी तथ्य को जांचते समय उसके ऐतिहासिक, स्थानीय एवं सांस्कृतिक सन्दर्भों की उपेक्षा करते हैं। यही कारण है कि पाश्चात्य विद्वान भारतीय ज्ञान परम्परा में स्त्री के स्थान को सही ढंग से नहीं आंक पाये हैं।पाश्चात्य चिन्तन में अरस्तू, रूसो, हीगल जैस दार्शनिकों ने स्त्री को दोयम दर्जा प्रदान किया है।
उन्होंने कहा कि पाश्चात्य दर्शन के विपरित भारतीय ज्ञान परम्परा में स्त्री को न केवल पुरूषों के समकक्ष माना गया है, वरन उन्हें बहुत से सन्दर्भों में पुरूष से उच्च माना गया है। ऋग्वेद से लेकर अथर्ववेद, यजुर्वेद एवं अनेकों उपनिषदों में स्त्री की समानता और उच्चता का स्वर गुंजित हुआ है।
उन्होंने कहा कि भारत विश्व का एकमात्र देश है, जहाँ नारी को शक्ति-स्वरूपा माना गया है। इस बात को पाश्चात्य चिन्तकों ने भी स्वीकार किया है। भारतीय दर्शन में शिव को भी शक्ति (पार्वती) के बिना निष्प्राण (शव) माना गया है।
*भारतीय ज्ञान परम्परा में नारी की है महत्वपूर्ण भूमिका*
मुख्य अतिथि मगध विश्वविद्यालय, बोधगया की पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ.) कुसुम कुमारी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा को आगे संरक्षित रखने तथा आगे बढ़ाने में भारतीय महिलाओं ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं के ज्ञान की अनदेखी नहीं की जा सकती। यहां नारी ज्ञान एवं कौशल की संवाहिका एवं संरक्षिका रही हैं, और उन्हें देवी, माँ, बहन एवं पुत्री के रूप में पूजनीय माना गया है।
उन्होंने बताया कि वैदिक काल में नारी समाज में अग्रणी रही हैं। नारियों ने वैदिक मंत्रों की रचना कीं। भारतीय दर्शन, संस्कृति एवं परंपराओं में नारी को पुरुषों से भी ऊँचा स्थान दिया गया है।
भारतीय संस्कृति में नारी को शक्ति का रूप माना जाता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय महिला दार्शनिक परिषद की अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) राजकुमारी सिन्हा (रांची) ने कहा कि उन्होंने कहा कि वैदिक काल में महिलाओं की सम्मानीय स्थिति और वैदिक काल के युग में भारत विश्वगुरु के रूप में जाना जाता था। भारतीय समाज के निर्माण में नारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारतीय वेदों, शास्त्रों और ऋचाओं को लिखने वाली महिलाएँ थीं। महिलाएँ अनेक अवसरों पर शास्त्रार्थ करती थीं। प्राचीन भारत में महिलाओं को स्वतंत्रता और अनेक अधिकार प्राप्त थे।
उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास के मध्य काल में महिलाओं के सम्मान में कमी आयी। महिलाओं को अनेक अधिकारों से वंचित भी किया गया।
संचालन एवं विषय प्रवेश कराते हुए महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के प्रयागराज केंद्र में स्त्री अध्ययन विभाग की पूर्व अध्यक्ष डॉ. सुप्रिया पाठक ने कहा कि समाज की उन्नति एवं अवनति का सीधा संबंध समाज में महिलाओं की प्रस्थिति और उनके सम्मान से रहा है। समाज में जब और जिस समय महिलाओं का सम्मान रहा है, उस समय के समाज ने उन्नति एवं प्रगति का सफर तय किया है। जब-जब समाज में महिलाओं के सम्मान में कमी आयी है, तब के समाज में पतन की स्थिति देखी जा सकती है।
अतिथियों का स्वागत प्रधानाचार्य प्रो. कैलाश प्रसाद यादव ने की।धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव सह दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने किया।
इस अवसर पर दर्शन परिषद्, बिहार की अध्यक्षा प्रो. पूनम सिंह, प्रो. प्रेम मोहन मिश्र, डॉ. आलोक टंडन, डॉ. अनुराधा पाठक, डॉ. मनीष कुमार, सौरभ कुमार चौहान आदि उपस्थित थे।


