देश में हमारे साथी जैसे हाथी हो रहे कम
प्रोजेक्ट एलिफेंट डूबा चिंतन में शुरू करेंगे कई नए प्रयास
देश में हमारे साथी जैसे हाथी हो रहे कम
प्रोजेक्ट एलिफेंट डूबा चिंतन में शुरू करेंगे कई नए Iप्रयास

जे टी न्यूज, मुंबई: देश में हाथियों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही हैlदेश के पहले डीएनए-आधारित हाथी गणना के अनुसार, भारत में जंगली हाथियों की कुल संख्या 2017 के 27,312 से घटकर 2025 में औसतन 22,446 रह गई है, जो लगभग 18 प्रतिशत की गिरावट दर्शाती है।
गौरतलब है कि देश में
हाथी कम होने से पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हो रहा है, क्योंकि वे “लैंडस्केप आर्किटेक्ट” के रूप में कार्य करते हैं, जिससे वनस्पति और बीज फैलाव को बढ़ावा मिलता है। इससे जैव विविधता में कमी आती है, आनुवंशिक विविधता प्रभावित होती है, और मानव-हाथी संघर्ष की घटनाओं में वृद्धि होती है, क्योंकि हाथी भोजन और पानी की तलाश में इंसानों के करीब आते हैं।
हाथी अपने भोजन और गति से जंगलों में खाली जगह बनाते हैं, जिससे नए पौधे उगते हैं और जंगल पुनर्जीवित होते हैं। वे बीजों को फैलाकर भी पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देते हैं।
हाथियों की कमी से यह पारिस्थितिक भूमिका ख़त्म हो जाती है, जिससे समग्र जैव विविधता प्रभावित होती है।
हाथियों के आवासों के विखंडन के कारण झुंड अलग-थलग पड़ जाते हैं, जिससे उन्हें भोजन और पानी की तलाश में कठिनाई होती है। इससे उनके प्रजनन के अवसर कम हो जाते हैं, जिससे आनुवंशिक विविधता में कमी आती है।
आवासों के नष्ट होने और खंडित होने के कारण हाथियों को भोजन की कमी का सामना करना पड़ता है। इसके कारण वे इंसानों की बस्तियों और फसलों पर हमला करते हैं।

देश में जंगली हाथियों की पहली बार डीएनए आधारित गणना के मुताबिक भारतीय समकालिक हाथी अनुमान( एस ए आई ई ई) विश्व 25 के अनुसार भारत में जंगली हाथियों की संख्या 18255 से 26645 के बीच होने का अनुमान है जिसका औसत 22446 है। सरकार ने 2021 में सर्वेक्षण शुरू होने के लगभग 4 साल बाद पिछले दिनों लंबे समय से लंबित रपट जारी की है। अधिकारियों ने बताया कि रपट जारी करने में देरी जटिल अनुवांशिक विश्लेषण और आंकड़ों की सत्यापन के कारण हुई। वैज्ञानिकों ने हाथियों के विभिन्न क्षेत्रों से 21,056 लीद के नमूने इकट्ठे किए और डीएनए *फिंगर प्रिंटिंग* का उपयोग करके हर एक हाथी की पहचान की। ठीक वैसे ही जैसे मनुष्यों की पहचान उनके अनुवांशिक कोड के जरिए की जाती है। कुल मिलाकर इस अध्ययन में लगभग 6.7 लाख किलोमीटर लंबे वन रास्तों को शामिल किया गया और इसमें 3.1 लाख से अधिक लीद नमूना क्षेत्र शामिल थे। रपट में दिए गए क्षेत्रवार आंकड़ों के मुताबिक पश्चिमी घाट 11,934 हाथियों के साथ सबसे बड़ा क्षेत्र बना हुआ है। इसके बाद उत्तर पूर्वी पहाड़ी और ब्रह्मपुत्र का मैदान 6,559 हाथियों के साथ दूसरा बड़ा क्षेत्र है। शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के मैदान में 2,062 हाथी रहते हैं जबकि मध्य भारत और पूर्वी घाटों में 1,891 हाथी रहते हैं। आंकड़ों के मुताबिक कर्नाटक में सबसे अधिक 6,013 हाथी हैं । इसके बाद असम में 4,159, तमिलनाडु में 3,136, केरल में 2,785 और उत्तराखंड में 1,793 हाथी हैं। उड़ीसा में 912 हाथी हैं जबकि छत्तीसगढ़ और झारखंड में संयुक्त रूप से 650 से अधिक हाथी हैं। पूर्वोत्तर राज्य में जैसे अरुणाचल प्रदेश में 617, मेघालय में 577, नागालैंड में 252 और त्रिपुरा में 153 में भी हाथियों की आबादी है। रपट के मुताबिक मध्य और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में मध्य प्रदेश में 97 और महाराष्ट्र में 63 जैसे राज्यों में हाथियों के छोटे छोटे झुंड हैं। पर्यावरण मंत्रालय, प्रोजेक्ट एलिफेंट और भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से किया गया 2025 का यह सर्वेक्षण भविष्य की निगरानी और संरक्षण योजना के लिए एक नया वैज्ञानिक आधार स्थापित करता है। नई गणना में जमीनी सर्वेक्षण, उपग्रह आधारित मानचित्रण और आनुवंशिक विश्लेषण को मिलाकर तीन चरणों में प्रक्रिया अपनाई गई।

प्रोजेक्ट एलीफेंट भारत में लुप्तप्राय भारतीय हाथियों की रक्षा के लिए शुरू किया गया एक वन्यजीव संरक्षण आंदोलन है । यह परियोजना 1992 में भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा स्वतंत्र रूप से विचरण करने वाली हाथियों की आबादी के वन्यजीव प्रबंधन हेतु राज्यों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी। इस परियोजना का उद्देश्य हाथियों, उनके आवासों और प्रवास मार्गों की सुरक्षा करके उनके प्राकृतिक आवासों में हाथियों की आबादी का दीर्घकालिक अस्तित्व और जीवनक्षमता सुनिश्चित करना है। यह परियोजना हाथियों की पारिस्थितिकी और प्रबंधन पर शोध, स्थानीय लोगों में संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने और बंदी हाथियों के लिए पशु चिकित्सा देखभाल प्रदान करने में भी सहायता करती है।
LP
 


