संस्कृति को लेकर शोर बहुत है, लेकिन समझ बहुत कम : डॉ. आलोक टंडन

संस्कृति को लेकर शोर बहुत है, लेकिन समझ बहुत कम : डॉ. आलोक टंडन

जे टी न्यूज
हम आज जिस दौर में हम जी रहे हैं, उसमें संस्कृति को लेकर शोर बहुत है, लेकिन समझ बहुत कम है। इसलिए संस्कृति के बारे में बात करना जितना कठिन है, उतना ही जरूरी भी है। हम संस्कृति को लेकर गहरे भ्रम के शिकार हो गये हैं। ऐसे में जरूरी हो गया है कि हम संस्कृति की साफ समझ को चारों ओर से ढकने वाले बौद्धिक जालों की सफाई करें।

यह बात समाज दार्शनिक डॉ. आलोक टंडन (हरदोई) ने कही। वे रविवार को अपनी पुस्तक ‘संस्कृति’ पर केंद्रित ऑनलाइन पुस्तक-संवाद में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस), बीएनएमयू, मधेपुरा और दर्शनशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

उन्होंने कहा कि आज मानवविज्ञानियों द्वारा दी गयी संस्कृति की परिभाषा- ‘एक सम्पूर्ण जीवनशैली’ के रूप में अधिक स्वीकृत है। लेकिन यह मूल्य निरपेक्ष नहीं है। संस्कृति की सैद्धान्तिक समझ को और समृद्ध करते हुए वर्तमान सांस्कृतिक संकट के समाधान हेतु एक आलोचनात्मक विवेक जगाने का सुझाव दिया है।

उन्होंने कहा कि आज हम एक नैतिक-बौद्धिक असमंजस के शिकार हैं। जब तक हम साध्य मूल्य और साधन मूल्यों में अन्तर को ठीक से नहीं समझ लेते, यह विवेक जागृत नहीं होगा। हमें यह तय करना होगा कि हमारी प्राचीन संस्कृति में क्या रखने और क्या छोड़ने योग्य है और इसी तरह बाहर से आ रहे सांस्कृतिक प्रभावों में क्या अपनाने योग्य है और क्या बचकर निकल जाने के लायक।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दर्शनशास्त्र विभाग, हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर-गढ़वाल की पूर्व अध्यक्ष प्रो. इंदु पांडेय खंडूड़ी ने कहा कि संस्कृति एक नदी के प्रवाह की तरह है। यह मात्र वह नहीं है, जिसका हम अनुकरण करते हैं, बल्कि वह भी है, जिसे हम जीते हैं।

उन्होंने कहा कि यह पुस्तक हमारे सामने ताजी वैचारिक हवा को लेकर आई है। इसे पढ़ना अपने आपको परखना जैसे है। लेखक ने संस्कृति के बारे में एक नई दृष्टि स्थापित करने की कोशिश की है।

कार्यक्रम के दौरान प्रश्नोत्तर एवं संवाद सत्र में डॉ. हेमलता श्रीवास्तव, डॉ. मिथिलेश कुमार, डॉ. प्रभाकर कुमार, मनोज तंवर, अजय कुमार, चंदन कुमार, सुशांत कुमार, अजय कुमार आदि ने कई प्रश्न उठाए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य प्रो. कैलाश प्रसाद यादव ने की। संचालन कार्यक्रम समन्वयक (एनएसएस) डॉ. सुधांशु शेखर ने किया। तकनीकी पक्ष शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान ने संभाला।

इस अवसर पर प्रो. अविनाश कुमार श्रीवास्तव, प्रो. सिद्धेश्वर काश्यप, डॉ. राहुल कुमार, डॉ. श्रवण कुमार मोदी, डॉ. श्याम प्रिया, शोधार्थी शशिकांत कुमार, रतन कुमार मिश्र, डॉ. राजकुमार झा, दिलिप भट्टाचार्य, मनोज कुमार आदि उपस्थित थे।

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