*किसानों की बदहाली बरकरार, अरबों रुपये खर्च के बावजूद हालात बदतर

4. भ्रष्टाचार में शामिल अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई।

*किसानों की बदहाली बरकरार, अरबों रुपये खर्च के बावजूद हालात बदतर


जेटी न्यूज।
समस्तीपुर।
2005 से अब तक बिहार में बीजेपी नीत राजग गठबंधन के नेतृत्व वाली सरकारें किसानों की हालत सुधारने के दावे करती रही हैं। किसान समृद्धि योजना जैसे चोंचलो के बहाने अपनी पीठ थपथपाते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कृषि मंत्री मंगल पांडेय की नीतियों और किसान हितैषी होने के दावे पर सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि दिन-ब-दिन किसानों की स्थिति और खराब होती जा रही है।

कृषि के नाम पर, किसानों की समृद्धि उनकी खुशहाली को लेकर हर साल अरबों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका फायदा किसानों तक नहीं पहुंचता। किसानों के हिस्से में सिर्फ 6हजार सलाना डाल कर उनको खुशहाल मान लिया जाता है। जबकि इस राशि में किसानों की खेती संबंधित प्राथमिक जरूरतें भी पूरी नही हो सकती। जिसका परिणाम है कि राज्य के कई हिस्सों से खबरें आ रही हैं कि कर्ज और आर्थिक तंगी से परेशान किसान आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो रहे हैं।

किसानों के पास न बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसे हैं, न ही स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए। बेटी की शादी या अन्य पारिवारिक जरूरतों के लिए उन्हें साहूकारों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। दूसरी ओर, सहकारी विभाग और कृषि विभाग के वार्ड स्तर से लेकर मंत्री स्तर तक भ्रष्टाचार की शिकायतें आम हो गई हैं।

किसानों का आरोप है कि सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाती हैं। इन योजनाओं में शामिल अधिकारी और राजनेता किसानों के नाम पर करोड़ों का घोटाला कर रहे हैं।

किसानों की मांगें:

1. सरकारी योजनाओं का पारदर्शी क्रियान्वयन।

2. फसल बीमा योजना को सुलभ और प्रभावी बनाना।

3. कृषि ऋण माफी योजना की तत्काल शुरुआत।

4. भ्रष्टाचार में शामिल अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई।

 

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सरकार ने जल्द ही इस ओर ध्यान नहीं दिया, तो बिहार के किसान और अधिक संकट में फंस सकते हैं।

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