सुखी रोटियों पे इन्कलाब जिंदाबाद:प्रभुराज नारायण राव

जेटीन्यूज़

*बेतिया*::-ज्ञात हो 1886 ई.अमेरिका के शिकागो शहर में मजदूरों ने 12 घंटे काम के बदले 8 घंटे काम के अधिकार के लिए हो रहे मजदूरों के प्रदर्शन पर पहली मई को साम्राज्यवादी हुकूमत ने नृशंस गोलियां बरसाई ,जिसमें 7 मजदूर शहीद हो गए थे ।

तब से दुनिया के मजदूर पहली मई को मई दिवस (मजदूर दिवस) के रुप में मनाते हैं ।
ठीक उसी मई महीने में लॉक डाउन के दौरान मोदी सरकार के निर्देशों पर श्रम कानूनों में संशोधन कर काम के अधिकार को 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करने सहित अन्य कई अधिकार को समाप्त करने का निर्णय लेकर देश के कारपोरेट ,बहुराष्ट्रीय कम्पनियों एवं मजदूरों का शोषण करने वाली विचारधाराओं ने भारत को अबकी बार मजदूर विरोधी केंद्र बनाने का निर्णय ले लिया है ।

लॉक डाउन के 48 वें दिन की समाप्ति के बाद भी देश में मजदूरों को घर पहुंचाने कि कोई स्पष्ट योजना नजर नहीं आती । करोड़ों मजदूर भूख से छटपटाते घर जाने को ब्याकुल हैं और इके दुके रेल चलाई जा रही है ।

जिन मजदूरों के बगैर कोई भी फैक्ट्री नहीं चलती और मुनाफे नहीं कमाया जा सकता । आज वो मजदूरों को काम से हटाकर कोई सुरक्षा नहीं सोच सड़क के हवाले छोड़ दिया । केंद्र व राज्य सरकारें भी उन्हें सहयोग के बदले झूठ व वादा खिलाफी करती रही ।

लग रहा है कि सरकारें बेसहारा मजदूरों को मूर्ख बना रही है । ऐसी हालात में सब्र की सीमा भूख से टूट जाने के बाद लाखों मजदूर आज घर जाने को जूझ रहे हैं । कोटा में पढ़ रहे संपन्न घराने के बच्चों को घर तक पहुंचाने के लिए यू पी , मध्यप्रदेश, हरियाणा जैसी भाजपा शाशित सरकारें हजारों बसें एवं केन्द्र सरकार के रेलों द्वारा अपने घरों तक पहुंचाया जा रहा है ।

इतना ही नहीं हरिद्वार में गए गुजरातियों को गुजरात सरकार ने दो हजार डीलक्स बसें भेजकर वापस बुला लिया । ऐसी हालातों में प्रधानमंत्री तो मौन रहते ही हैं ।


8 मई को महाराष्ट्र के औरंगाबाद से 35 किलो मीटर की दूरी तय कर थके हारे मध्यप्रदेश के 16 मजदूर मालगाड़ी से कटकर मर जाते हैं ।इस जघन्य घटना पर दुख जताने के बदले मध्यप्रदेश और यूपी की भाजपा सरकारें फैक्ट्री एक्ट के तहत मजदूरों को फिर उद्योगपतियों का गुलाम बनाने के लिए काम का समय 12 घंटे करना ही वाजिब समझ निर्णय लेते रहे ।

मोदी जी यह देश मजदूर प्रधान देश है । यहां मजदूर ज्यादा दिनों तक शोषण बर्दास्त नहीं कर सकते । यह एक दूसरे से अलग नहीं हो सकते । फिर इतिहास इस बात की भी गवाह है की एक मजदूर के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं और पाने के लिए सारी दुनिया है ।

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