मिर्जापुर में वैज्ञानिकों ने पपीते की खेती का किया निरीक्षण, पपीता उत्पादक किसानों को दिया आवश्यक निर्देश।

जेटी न्यूज़।

खोदावंदपुर/बेगूसराय::- बाड़ा पंचायत के मिर्जापुर गांव स्थित पपीते की खेतों का कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के वैज्ञानिकों ने गहन जांच- पड़ताल की तथा पपीता उत्पादक किसान प्रखंड क्षेत्र के बरियारपुर पूर्वी गांव निवासी सुरेन्द्र कुमार व उनकी पत्नी से पपीता के फसलों के बारे में आवश्यक पूछताछ की. वैज्ञानिकों ने पपीते की फसलों की स्थिति को देखकर बेहतर उत्पादन के लिये किसानों को आवश्यक निर्देश दिये.

किसान सुरेन्द्र ने बताया कि गत वर्ष भी पपीते की खेती कर अच्छी आमदनी प्राप्त किये थे. इस वर्ष मौसम के साथ नहीं देने की वजह से क्रॉप अच्छी स्थिति में नहीं है.उन्होंने बताया कि पपीता के पौधे के बारे में समय- समय पर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने विचार विमर्श कर पौधे पर दवा का छिड़काव करते रहते हैं.

निरीक्षण के क्रम में केवीके के कार्यक्रम समन्वयक डॉ सुनीता कुशवाहा, सहायक अंशुमन द्विवेदी, वैज्ञानिक विनिता कश्यप, किसान सलाहकार रघुनंदन महतो सहित अन्य प्रगतिशील किसान मौजूद थे. इसकी जानकारी देते हुये कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के वरीय वैज्ञानिक एवंं प्रधान डॉ सुनीता कुशवाहा ने बताया की केविके से प्रशिक्षण प्राप्त कर दर्जनों किसान पपीता की खेती कर रहे हैं.

उन्होंने बताया कि पपीते की खेती जिले के विभिन्न प्रखंडों जैसे बेगूसराय सदर, खोदावंदपुर, बखरी, चेरिया बरियारपुर में सफलता पूर्वक की जा रही है. बेगूसराय जिला में विशेष रूप से पपीते की खेती की जा रही है. इसके कच्चे और पक्के दोनों ही फल उपयोगी होते हैं. इसकी मुख्य किस्म रेड लेडी 786 बेगूसराय में काफी प्रचलित है.

इस पर नर व मादा फूल एक ही पौधा पर होता है, इसलिये लगभग हर पौधे से फल मिलने की गारंटी होती है और यही वजह है कि किसान इसको अधिक पसंद करते हैं. यह लगभग 9 महीने में तैयार हो जाती हैं. पपीते की खेती के लिये दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है, जिसमें पानी निकलने का सही इंतजाम हो, क्योंकि पपीते के पौधों की जड़ों में पानी भरा रहेगा तो तना सड़ने लगता है.

इसका पौधा तैयार करने के लिये किसान प्लास्टिक की थैलियों में बीज उगा सकते हैं. 25 × 15 सेंटीमीटर के आकार के थैले की जरूरत पड़ती है, जिनको नीचे से एक छेद कर देना चाहियेे और 1:1 के अनुपात में पत्ती की खाद, गोबर और मिट्टी का मिश्रण बना कर देना चाहिये. केंद्र के पौधा रोग वैज्ञानिक डॉ विवेक कुमार खरे ने बताया कि पपीते की खेती में प्रमुख रूप से कीड़ों से नुकसान नहीं होता है,

लेकिनवायरस रोग इसमें काफी अधिक होता है. जिसको फैलाने में सहायक होते हैं. इसमें तना, गलन और जड़न की बीमारी काफी अधिक होती है.पपीते की खेती से आमदनी बेगूसराय जिले के किसान प्रति एकड़ में 3- 4 लाख रुपये की आमदनी प्राप्त कर रहे हैं. अगर अंतर्भरती खेती भी करते हैं, जैसे सब्जी, गेहूं, सरसों आदि तो आमदनी 7 से 8 लाख प्रति एकड़ तक होती है.

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