मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, सिर्फ नाम के लिए, काम के लिए नहीं!
(तस्वीर -रजनीश प्रियदर्शी )
रामगढ़वा ( पूर्वी चंपारण)- देखिये पत्रकार का दर्द..
सब व्यक्ति पत्रकारों को एक खिलौना समझकर खेल रहे हैं। कोई उद्घाटन हो तो पत्रकार किसी अधिकारी को अपनी प्रशंसा करानी हो तो पत्रकार गांव में झगड़ा हो तो पत्रकार, आग लग जाए तब पत्रकार, बिजली ना आए तब पत्रकार और परचून की दुकान से सामान नहीं मिले तो पत्रकार, सभी लोग पत्रकारों को अपने-अपने हिसाब से यूज करते हैं और बाद में भूल जाते हैं। मगर पत्रकार साथी भी इस बात को नजर अंदाज करते हुए कोरोना जैसे इस भीषण आपदा में लोगों के साथ खड़े हुए हैं। मगर हमारे जैसे कितने पत्रकार साथी इस काल के गर्त में समा गए हैं मगर शासन-प्रशासन की ओर से पत्रकारों के लिए कोई कार्यवाही नहीं की जाती, ना ही कोई पत्रकार साथियों के लिए 1 मिनट का मौन धारण करता है। जबकि पत्रकार सभी के लिए समान रूप से कार्य करते चले आए हैं, चाहे गरीब हो, चाहे अमीर हो, चाहे प्रशासनिक अधिकारी हो, चाहे शासन हो, सभी के लिए पत्रकारों का अहम रोल रहा है। मगर किसी पत्रकार साथी को अगर किसी की आवश्यकता होती है तो प्रशासन और शासन मुँह फेर लेते हैं। अस्पताल वाले ऑक्सीजन देने से मना कर देते हैं, जिसके कारण कई पत्रकार साथी की मौत भी हो चुकी है। ऐसे तो नाम के लिए मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है! लेकिन काम के लिए नहीं! मेरी सभी भाइयों से अनुरोध है कि अपने आप को बदलें जिससे शासन को भी पत्रकारों के प्रति अपनी सोच बदलनी पड़ जाए और किसी भी पत्रकार का कोरोना रूपी काल के गाल में समाने पर 50 लाख रुपए की बीमा व उनके परिवार के एक सदस्य को नौकरी मिलेगी.
Edited By :- savita maurya