जलवायु परिवर्तन ,बढ़ते प्रदूषण की वजह से बीमारियों का खतरा एक अलार्म की तरह है: प्रो अनिल कुमार सिन्हा

जेटी न्यूज,रामगढ़वा-: पर्यावरण की रक्षा से ही प्राकृतिक आपदाओं से जीता जा सकता है। उक्त बातें आज विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सरिसवा नदी बचाओ आंदोलन की बैठक में बोलते हुए प्रोo डाo अनिल कुमार सिन्हा ने कही। कोरोना प्रोटोकॉल के तहत काली नगरी में संपन्न बैठक में पर्यावरण की रक्षा का संकल्प लिया गया एवं आम नागरिकों सहित विशेषकर युवा वर्ग को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का निर्णय लिया गया । बैठक की अध्यक्षता आंदोलन के अध्यक्ष प्रमुख पर्यावरणविद प्रोo डाo अनिल कुमार सिन्हा ने किया । बैठक में आंदोलन के उपाध्यक्ष स्वच्छता के सिपाही सुरेश कुमार, महासचिव प्रोo मनीष दूबे, कोषाध्यक्ष राकेश कुमार कुशवाहा, मंत्री दुर्गेश साह एवं युवा सहयोग दल के अध्यक्ष संतोष कुमार मुख्य रूप से उपस्थित थे । बैठक के पूर्व जागरूकता पैदा करने के लिए पांच गमलों में पौधा सांकेतिक रूप से लगाया गया ।बैठक को संबोधित करते हुए प्रोo सिन्हा ने कहा कि मानव का अस्तित्व प्रकृति पर निर्भर है। कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी, जलवायु परिवर्तन ,बढ़ते प्रदूषण की वजह से बीमारियों का खतरा एक अलार्म की तरह है जिसे समझने की आवश्यकता है। ताउते और यास जैसे नए नाम वाले तूफान हम पर रोज किसी न किसी रूप में हमला कर रहे हैं। मानव जाति आधुनिकता की चकाचौंध में पृथ्वी पर होने वाले ऐसे संकेतों को लगातार नकारने में लगा है जो आत्मघाती के समान है । प्रोo सिन्हा ने कहा कि जंगल कट रहे हैं, नदियां सूख रही है ,जल स्रोत समाप्त होते जा रहे हैं जो महाविनाश की तरफ बढ़ते हुए कदम को इशारा करते हैं । बैठक में कहा गया कि रक्सौल की जीवनदायिनी सरिसवा नदी जीवन प्रदान करने के बदले जीवन ले रही है। सरिसवा नदी के अति प्रदूषण एवं जहरीलापन पर दुख व्यक्त करते हुए नेपाल सरकार सहित प्रशासनिक एवं स्थानीय निकायों की निष्क्रियता पर क्षोभ व्यक्त किया गया ।नदी को प्रदूषण मुक्त करने एवं उसकी अस्तित्व की रक्षा के लिए नेपाल ,भारत और बिहार सरकार के द्वारा कोई ऐसा प्रयास नहीं किया गया है जिससे नदी को प्रदूषण मुक्त किया जा सके एवं उसके किनारे रहने वाले जीवन को उसके नुकसान से बचाया जा सके । बैठक में निष्कर्ष निकाला गया कि पर्यावरण का विषय वोट बैंक नहीं है जिसके कारण राजनीतिक क्षेत्र को इस विषय से कोई लेना देना नहीं है और नहीं ही किसी चुनाव में यह विषय बन पाता है । स्थानीय सांसद डॉक्टर संजय जायसवाल ने नदी के प्रदूषण की मुक्ति के लिए प्रयास किया लेकिन अभी तक कोई प्रत्यक्ष रूप से सफलता मिलती नहीं दिख रही है। बैठक में भारत में इस नदी के प्रवेश स्थल पर अपशिष्ट उपचार संयंत्र ( इफल्यूंट ट्रीटमेंट प्लांट) स्थापित करने की मांग की गई ताकि नेपाल से आ रहे घातक रसायनों को शुद्ध कर नदी में छोड़ा जा सके । बैठक ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर सांसद डाo संजय जायसवाल से इस विषय को प्राथमिकता के साथ दूर करने की मांग की गई। साथ ही नगर परिषद रक्सौल से तत्काल मल जल उपचार संयंत्र (सीवेज ट्रिटमेंट प्लांट) लगाने की मांग की गई । इस संयत्र का लगाना अति आवश्यक है क्योंकि पूरे नगर के अधिकांश गली मुहल्लों का सीवरेज का गंदा पानी नाली के द्वारा नदी में पहुंचता है और नदी को प्रदूषित करते हुए बूढ़ी गंडक होते हुए गंगा नदी में पहुंच जाता है। बैठक में पूरे नगर के सीवरेज के लिए एक एकीकृत नाली बनाकर उसे मल जल उपचार संयंत्र से शोधित कर नदी में प्रवाहित करने की मांग की गई। वक्ताओं ने कहा कि सत्ता परिवर्तन से समस्याएं एवं प्राथमिकताएं नहीं बदलते इसलिए जीवन से संबंधित इन गंभीर विषयों पर विचार कर उचित निदान करने की आवश्यकता है । बिहार सरकार से नदी की समस्याओं को जल जीवन हरियाली के तहत नदी को जोड़ने की मांग की गई।बैठक में कहा गया कि पृथ्वी और पर्यावरण जिस स्थिति में है उसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं। पेड़ पौधे और नदियां हमारे अनमोल धरोहर हैं। हम भूल जाते हैं कि प्राकृतिक आपदा किसी एक पर नहीं आती। इस वक्त पूरा विश्व कोरोना से जूझ रहा है । यह वास्तविक खतरा है ।विश्व पर्यावरण दिवस हमें हर साल याद दिलाता है कि यह लड़ाई एक दिन नहीं बल्कि रोज सुबह उठकर लड़ने की आवश्यकता है। आज इसकी देखभाल करेंगे तो हमारी आने वाली पीढ़ी बची रहेगी अन्यथा मास्क से पीछा तो नहीं छूटेगा बल्कि ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर घूमने की नौबत भी आ सकती है ।आज स्पष्ट हो चुका है कि पैसा प्रकृति की जगह नहीं ले सकता ।विश्व के विकसित राष्ट्र आज संकट से उबर नहीं पाए । जंगलों के विनाश के कारण मनुष्य और जंगली जीव जंतुओं की दूरी कम होती जा रही है। जिसके कारण 72% बीमारियां सीधे जानवरों से इंसान में आ रही है । प्रोo सिन्हा ने एक आंकड़े का हवाला देते हुए बताया कि हमने जैव विविधता 25% खो दी है । वन्य जीवों के घरों को उजाड़ देना ,उनके भोजन श्रृंखला पर चोट करना ,जल स्रोतों को समाप्त करना मानव जीवन के लिए खतरा पैदा कर चुका है। बैठक में नगर में लगातार धूल उगलने वाली गतिविधियों, सड़कों पर जाम आदि से निपटने के लिए प्रशासन से शीघ्र कार्रवाई करने की मांग की गई। प्रोफ़ेसर सिन्हा ने कहा कि वर्तमान में प्रजातियों के विलुप्ति करण की गति सामान्य से दस हजार गुना अधिक है ।बीते 25 वर्षों में 8462 प्रजातियां विलुप्त हो गई है जिसमें पशु पक्षी वृक्ष आदि सभी शामिल है ।पर्यावरण में मुख्य भूमिका अदा करने वाले गिद्ध करीब करीब समाप्त हो गए। बैठक में अपने एवं परिवार में कुछ आदतें बदल कर अपनी धरती को सहेजने में सहायक भूमिका अदा करने की अपील की गई । बैठक में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई। कोरोना की समाप्ति के बाद रक्सौल में सरिसवा नदी के प्रदूषण पर राष्ट्रीय स्तर की गोष्ठी आयोजित करने का निर्णय लिया गया जिसमें नेपाल सहित भारत के पर्यावरणविदों को आमंत्रित किया जायेगा । इस गोष्ठी के लिए तैयारी समिति गठित की जायेगी।

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