चढ़ गए योगी सूली पर
चढ़ गए योगी सूली पर
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पिछली बार 2017 में हुए थे।पिछली बार भाजपाको तीन चौथाई सीटें मिली थी।जो 312 सीटें भाजपाके खाते में आईं उनमें से सिर्फ 19विधायक ऐसे थे,जो 2बार विधायक रह चुके थे।अर्थात्,लगभग 290विधायक ऐसे थे,जो पहली बार विधायक बने थे और उनमें विधायी जानकारी का अभाव था।नतीजा,कार्यपालिका पर जो नियंत्रण विधायिका का होना चाहिए था,वह कहीं दिखा नहीं।
योगी आदित्यनाथ 5बार के सांसद रह चुके थे और आरएसएस के दबाव में उनको मुख्यमंत्री जरूर बनाया गया,लेकिन,उनके पास प्रशासनिक अनुभव का अभाव था।नतीजा,पूरे हिंदुस्तान के हर शहर में होर्डिंग भले लगवाया जाए,न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अंतर्राष्ट्रीय अखबारों से लेकर देश भर के अखबारों में भले विज्ञापन छपे,लेकिन क्रूर सच्चाई यही है कि मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ बुरी तरह असफल साबित हुए हैं।नीति आयोग के पैमाने पर उत्तर प्रदेश फिसड्डी राज्यों में है और पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स में भी वह फिसड्डी है।न तो,शिक्षा स्वास्थ के क्षेत्र में कोई काम हुआ,ना बिजली,पानी,सड़क जैसी आधारभूत संरचनाके विकास में कोई काम हुआ।उस पर से किसान आंदोलन और कोरोना की दूसरी लहर के कुप्रबंध और कुव्यवस्था ने योगी सरकार को नितांत अलोकप्रिय बना दिया है।
उत्तरप्रदेश विधानसभाके पिछले 3चुनावों के कुल वोटों की संख्या और हुए मतदान प्रतिशतका अध्ययन, आकलन और विश्लेषण करें-2007में कुल वोट थे 11.30करोड़-वोट पड़े 45.96%,2012में कुल वोट थे 12.74करोड़-कुल वोट पड़े 59.40%,2017में कुल वोट थे 14.05करोड़-कुल वोट पड़े-61.04%।इन आंकड़ों के आधार पर एक अनुमान किया जा सकता है कि 2022के चुनाव में कुल वोट होंगे 15.50करोड़ और डाले जानेवाले वोटोंका प्रतिशत हो सकता है- 65% यानि कि तकरीबन 10करोड़ से ज्यादा वोट पड़ेंगे।
अब आइए,इन वोटोंमें भाजपाके वोटोंके हिस्सा का अनुमान करें।भाजपाको 2007में16.97%,2012में 15%,2017में भाजपाके वोटोंमें जबरदस्त उछाल आया और वह 39.67% पर पहुंच गया।जाहिर सी बात है, भाजपा के कोर वोटर 15-17% ही हैं।भाजपा के वोटों में इस जबरदस्त उछाल की वजह राष्ट्रीय राजनीति में मोदीजी का प्रवेश था।2017 में मोदी लोकप्रियता के शिखर पर थे,वोट भी उन्होंने अपने नाम पर मांगा था,डबल इंजन की सरकारका वादा किया,सो भाजपा के वोट प्रतिशत में जबरदस्त उछाल आया,लेकिन आज वह बात कहां?इंडिया टुडे के अप्रकाशित सर्वेक्षण में मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ 42% की गिरावट दर्ज करते हुए 66% से घटकर 24% बताया गया है।उत्तरप्रदेशके मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता का ग्राफ 49% से घटकर 29% तक पहुंच गया है।2022 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा अपने कोर वोट- 15-17% बचा ले,तो बड़ी बात होगी।

भाजपा को सबसे बड़ी चुनौती स्वयं भाजपा प्रस्तुत कर रही है यानि कि अन्दरूनी द्वन्द्व चरम पर है।कोरोना वैक्सीन के लिए भले योगीजी मोदीजी का आभार व्यक्त कर रहे हों और मोदीजी हर दौरे में योगीजी को भांति-भांति का प्रमाणपत्र दे रहे हों, लेकिन यह एक खुला सच है कि 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदीजी की पसन्द योगी नहीं थे।योगी को मुख्यमंत्री बनवाया आरएसएस ने।पहले ही दिन से गैर-हिंदी प्रदेशों में भी योगी आदित्यनाथ को हिंदू हृदयसम्राट के रूप में कुछ इस तरह प्रस्तुत किया गया,गोया वह भावी प्रधानमंत्री हों। मोदीजी खुद आरएसएस के सहयोग से केशुभाई पटेल के विरुद्ध असंतुष्ट गुट को हवा देकर गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे और लालकृष्ण आडवाणी को धकिया कर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने थे।आरएसएस द्वारा योगी आदित्यनाथ को मिल रहे पैट्रोनेज ने मोदी को सशंकित और आशंकित किया।
वहीं दूसरी ओर,योगी आदित्यनाथ में 2024 में प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा जग गई।यह अस्वाभाविक भी नहीं था-चौधरी चरण सिंह और वीपी सिंह प्रधानमंत्री बनने के पहले उप्र के मुख्यमंत्री रह चुके थे।नेहरू,शास्त्री,इंदिरा,चंद्रशेखर और अटलजी सीधे प्रधानमंत्री जरूर हुए लेकिन वह सभी उत्तरप्रदेश की स्थानीय राजनीति को अपनी हथेली की रेखाओं की तरह जानते-समझते थे।
भाजपा के भीतर दूसरा अन्तर्द्वन्द योगी आदित्यनाथ बनाम अमित शाह का है।अमित शाह की महत्वाकांक्षा रही है कि मोदी की विरासत के असली उत्तराधिकारी वह हैं।वह मानकर चल रहे हैं कि जब कभी मोदी उम्र के तकाजे के आधार पर सक्रिय राजनीति से संन्यास लेंगे,प्रधानमंत्री की कुर्सी खिसक कर उनके पास आ जाएगी।अमित शाह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहें हों या गृहमंत्री-पार्टी पर उनकी पकड़ मोदी के बाद सबसे ज्यादा है।भाजपा के भीतर उन्हेंं चाणक्य की हैसियत प्राप्त है।आरएसएस द्वारा योगी आदित्यनाथ को हिंदू हृदयसम्राट के रूप में प्रस्तुति से अमित शाह आहत हुए हैं और वह योगी आदित्यनाथ को ठिकाने लगाने के लिए कटिबद्ध हैं।
भाजपा के भीतर उत्तर प्रदेश की प्रादेशिक राजनीति में योगी बनाम केशव प्रसाद मौर्य का द्वंद्व भी कुछ कम नहीं है।केशव प्रसाद मौर्य बेशक शैक्षणिक तौर पर उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति नहीं है,लेकिन वह बजरंग दल,विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों में कार्य करते रहे हैं।उन्होंने गौरक्षा आंदोलन में भी भाग लिया है और राम जन्मभूमि आंदोलन में भी।संसदीय राजनीति में आरंभिक तौर पर विफल रहने के बाद 2012में वह विधायक बने,2014में सांसद और 2017में उपमुख्यमंत्री।2016में उनको प्रदेश भाजपा की कमान दी गई थी।2017के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें भाजपा के पिछड़ा वर्ग के चेहरा के तौर पर प्रस्तुत किया गया।उस विधानसभा चुनाव के दौरान मोदीजी ने खुदको भी पिछड़ा वर्ग के नुमाइंदे के रूप में प्रस्तुत किया।मोदीजी को मुख्यमंत्री तो बनना नहीं था।स्वाभाविक रूप से केशव प्रसाद मौर्य मानकर चल रहे थे चुनाव परिणाम जीतने के बाद वह मुख्यमंत्री होंगे।लेकिन आरएसएस के दबाव में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए।पिछले साढे 4साल में केशव प्रसाद मौर्य योगी आदित्यनाथ के द्वारा उपेक्षित और प्रताड़ित किए गए हैं।इस बार भी,योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद केशव प्रसाद मौर्य ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। यह आश्चर्यजनक नहीं होगा,अगर वह भाजपा के बाहर जाकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने की कोशिश करें।हालांकि यह बात भी सही है कि समाजवादी पार्टीमें जाने पर भी मुख्यमंत्री पद मिलने की संभावना नहीं है।लेकिन,कांग्रेस की नई सक्रियताने केशव प्रसाद मौर्य के लिए एक नई संभावना प्रस्तुत की है।
एक गंभीर चुनौती उन वर्तमान विधायकों से मिलने की आशंका है,जिनके टिकट काटे जाएंगे।ऐसी खबर है कि आधे से अधिक यानी कि लगभग 160 विधायकों के टिकट कटेंगे।जिनके भी टिकट कटेंगे वह दूसरी पार्टियों में अपना ठौर तलाशेंगे।उसमें से कितने दूसरी पार्टियों में जाकर विधायक बन पाएंगे,यह तो आने वाला समय बताएगा,लेकिन वह भाजपा के लिए परेशानी के सबब तो बनेंगे ही।
मोदी और शाह की इच्छा तो यही थी कि उत्तराखंड, गुजरात और कर्नाटक की तरह उत्तर प्रदेश में भी नेतृत्व परिवर्तन किया जाए और मुख्यमंत्री के रूप में बिना किसी का चेहरा आगे किए मोदीजी के चेहरा पर चुनाव मैदान में जाया जाए।लेकिन योगीजी जिद पर अड़े रहे कि उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए।दूसरी तरफ मोदी शाह ने यह भांप लिया कि योगी को हटाकर मोदी के चेहरे पर चुनाव मैदान में जाना और हारना-एक गंभीर समस्या पैदा कर सकता है।उत्तर प्रदेश 80लोकसभा क्षेत्र और 22करोड़ की आबादी वाला विशाल प्रदेश है।वहां मोदी के चेहरा को आगे कर चुनाव हारना 2024में मोदी के प्रधानमंत्री पद की संभावना पर ग्रहण लगाएगा।ऐसे में मोदी शाहको ज्यादा व्यावहारिक यही लगा कि योगी आदित्यनाथ के चेहरा सामने कर चुनाव लड़ा जाए और हारने पर योगी आदित्यनाथ रूपी चुनौती को हमेशा हमेशा के लिए मैदान से बाहर ढकेल दिया जाए।ऐसे में,प्रत्यक्षतः तो उन्होंने योगी के सामने झुकना स्वीकार कर लिया है,योगी को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया है।लेकिन सच यह है कि मोदी शाह की जोड़ी ने योगी आदित्यनाथ को सूली पर लटका दिया है।

