स्मृतियों में कर्पूरी जी

स्मृतियों में कर्पूरी जी

रामजीवन सिंह

बात मार्च 1953 की है। तब मैं सोशलिस्ट पार्टी का एक कार्यकर्ता था। 1949 में मैं पार्टी में आया था। हमारे ही एक संबंधी थे मेघौल गांव के रहने वाले। 1942 आंदोलन के कारण उनकी पढ़ाई छूट गई थी।1945 में वे हमारे ही घर रहने लगे। यहीं रहकर प्राइवेट इम्तहान दिया और मंझौल हाईस्कूल में पढ़ाने लगे। उन्हीं के सम्पर्क में मैं समाजवादी पार्टी में आया। समाजवादी पार्टी स्वतंत्र रूप से 1948 में संगठित हुई थी। उसके पहले समाजवादी लोग कांग्रेस के मंच से ही काम करते थे। तो मार्च 1953 की बात कह रहा था। उस वर्ष पार्टी की ओर से पटना के गांधी मैदान में किसान मार्च आयोजित किया गया था। उसमें बेगूसराय से मैं भी शामिल हुआ था। हमारे विधानसभा क्षेत्र चेरिया बरियारपुर से प्रथम आमचुनाव में रामनारायण चौधरी विधायक हुए थे। बाद में कई बार मैं भी इस क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुआ। तो किसान मार्च के बाद रामनारायण चैधरी के एम.एल.ए आवास में मैं ठहरा। कर्पूरी जी का आवास उनके बगल में ही था। उन्होने ही कर्पूरी जी से परिचय कराया। धीरे-धीरे उनसे आत्मीयता बढ़ी और बाद में काफी निकट का संबंध विकसित हो गया। उनसे जुड़ी ढेर सारी स्मृतियां रही हैं। मुझे याद है कि 8 अगस्त 1974 को जेपी का मौन जुलूस खत्म हुआ था। वहां से कर्पूरी जी के साथ ही रिक्शे पर हम महामाया प्रसाद के पास पहुंचे। उनके साथ चाय पी और वहां से लौटते हमने अपने मन की बात कर्पूरी जी से साझा किया कि मन पड़ता है कि विधायकी से इस्तीफा करके आंदोलन में कूद पड़ें। उस समय कर्पूरी जी हाईकोर्ट के पश्चिमी गेट के बगल में रहते थे। वे वहीं हाईकोर्ट के फिल्ड में बैठ गए। कहा कि ‘आप इस्तीफा दीजिएगा रामजीवन भाई तो इसपर कौन तैयार होगा।’ इसपर हमने कहा कि आप देंगे तो उसका असर होगा। वे तैयार हो गए। बीपी मंडल से बात की। फिर धनिक लाल मंडल, पूरनचंद्र, कर्पूरी जी, बीपी मंडल, हुकुमदेव नारायण यादव और मैंने कुल 6 विधायकों ने विधानसभा में जाकर इस्तीफा कर दिया। उस समय स्पीकर थे हरि नारायण मिश्रा। हम छह ज्योंहिं इस्तीफा देकर लौटे, सेकेंड हाफ में जनसंघ के भी 11 विधायकों ने इस्तीफा करके आंदोलन में शामिल होने की घोषणा कर दी।
कर्पूरी जी के साथ मैं नेपाल में भी रहा। बाद में वे काठमांडू चले गए। मैं नेपाल में ही रह गया बभनगामा कट्टी में। यह ऐतिहासिक जगह है।1942 वाले मूवमेंट के क्रम में जेपी हजारीबाग जेल से भाग कर वहीं पहुंचे थे। उनकी चप्पल जेल में ही रह गई तो सूरजनारायण सिंह ने जेपी को कंधे पर बैठाकर उन्हें यात्रा पार लगाई थी।
कर्पूरी जी ने जेपी के नेतृत्व को सहर्ष स्वीकारा।दोनों के बीच सद्भाव और विश्वास हमेशा बना रहा। एक अपवाद छोड़कर अपने संसदीय जीवन में वे कभी हारे नहीं। एक बार 1985 में रामदेव राय से लोकसभा चुनाव हार गए। लेकिन रामदेव राय का जो सम्मान उनके प्रति अभिव्यक्त हुआ वह दुर्लभ है।
कर्पूरी जी विचार और आचरण से पूरी तरह सोशलिस्ट थे। वे गरीबों, वंचितों के लिए ही आजीवन काम करते रहे। सत्ता के लिए उन्होंने जो समझौते किए हो लेकिन व्यक्तिगत जीवन में संपति और इस तरह के अन्य दोष से पूरी तरह मुक्त रहे। जातपात को वह सामाजिक बुराई मानते थे और इसे दूर करना चाहते थे। किसी भी तरह राजनीति में इसके इस्तेमाल को गलत मानते थे। मुझे याद है 1985 का विधानसभा चुनाव हो रहा था। पार्टी ने अपनी चुनावी सभा पश्चिमी चंपारण से शुरू की। तीन चुनावी सभा के बाद पार्टी की इंटरनल मीटिंग में कर्पूरी जी रिएक्ट कर गये। उन्होंने कहा कि मैं लगातार यह क्या सुन रहा हूं कि जहां जाओ जाति जाति। फलां उम्मीदवार को टिकट दो क्योंकि उसकी जाति की संख्या ज्यादा है। अगर यह जाति ही सबकुछ है तो मैं 52 से चुनाव लड़ रहा हूं इस आधार पर तो मुझे टिकट ही नहीं मिलता क्योंकि मेरी जाति की संख्या इतनी नहीं है कि उस आधार पर मुझे टिकट मिले।
यह भी चुनाव से ही जुड़ा हुआ प्रसंग है। मैंने कहा कि एक सीट मैं रिजर्व रखूंगा। कर्पूरी जी ने कहा-‘किसके लिए?’
हमने कहा-‘रामनाथ के लिए।’
कर्पूरी जी ने कहा- ‘कौन रामनाथ?’
हमने कहा-‘रामनाथ ठाकुर।’
कर्पूरी जी ने कहा-‘रामजीवन भाई ऐसा मत कीजिए। यह क्या बात हुई। इंदिरा गांधी का वंशवाद खराब और कर्पूरी का वंशवाद अच्छा।’
हमने कई तरह से उन्हें कन्विंस करने की कोशिशें की। कहा कि सबके लिए एक तरह का क्राइटेरिया रखा गया है। रामनाथ ठाकुर को इसलिए टिकट देने की बात नहीं की जा रही है कि वह आपके पुत्र हैं अपितु इसलिए कि वह समाजवादी आंदोलन में जेल गए हैं हर काम में पार्टी के एक समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं, नेपाल में भी भूमिगत रहे हैं। मेरी इतनी आर्जु के बाद भी कर्पूरी जी पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
उन्होंने कहा-‘रामनाथ को टिकट मिलेगा तो मैं चुनाव नहीं लडूंगा।’ तो यह थे कर्पूरी ठाकुर। इतना लंबा संसदीय जीवन, दो-दो बार मुख्यमंत्री और एक बार नेता प्रतिपक्ष रहते हुए भी न पटना में एक एक धुर जमीन, न घर पर जमीन जायदाद। उनके जैसा समावादी होना आसान नहीं। समाजवाद के बारे में कहा जाता है कि यह 90 प्रतिशत आचरण और 10 प्रतिशत सिद्धांत है। कर्पूरी जी ने अपने जीवन में इस आदर्श को पूरी तरह से सच साबित किया।
(वरिष्ठ समाजवादी नेता रामजीवन सिंह से अरुण आनंद की बातचीत पर आधारित)

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