भारतीय आत्मा की खोज करने वाले थे प्रेमचंद

भारतीय आत्मा की खोज करने वाले थे प्रेमचंद


— डॉ परमानन्द लाभ
प्रेमचंद एक ऐसे भारतीय लेखक थे,जो भारत में पैदा लिए थे, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के साथी थे और भारतीय आत्मा की तलाश आजीवन करते रहे थे।उनका समय हीं ऐसा था कि भारत की भारतीयता, भारतीय स्वत्व -बोध, परंपरा से आने वाले भारतीय जीवन- मूल्य,जो उत्तम मानवीयता की आधार स्तम्भ थे, उसे अंग्रेजी हुकूमत तथा उसके संग आगत सभ्यता आहत कर भारतवासियों के मन और मस्तिष्क में हीनभावना उत्पन्न कर रही थी। तात्कालिक सांस्कृतिक नवजागरण इसी परिस्थिति का प्रतिफलन था।इसे भारतीय जागरण कहा जा सकता है। हिन्दू -मुसलमान एक साथ अवश्य लड़ रहे थे, लेकिन उसके पश्चात् अंग्रेजों ने मुस्लिम नेताओं के साथ मिलकर मुस्लिम धर्मावलंबियों को एक अलग राह पर चलने की ओर प्रेरित कर दिया, परिणामत: मुस्लिम लीग और पाकिस्तान का प्रादुर्भाव हुआ। इसलिए यह कहना उचित हीं प्रतीत होता है कि प्रेमचंद के युग का सांस्कृतिक जागरण मूलतः हिंदू समाज का जागरण था। लेकिन, उसमें भारतीय राष्ट्रीयता की गुंज थी। यह जागरण सारे देश का जागरण था। और यही कारण था कि महात्मा गांधी की अगुवाई में अग्रसित स्वाधीनता के आंदोलन में प्रायः सभी जातियों, वर्गों, क्षेत्रों और धर्मों की भागीदारी थी। प्रेमचंद का साहित्य इसी भारतीयता का प्रतिबिंब है।
प्रेमचंद का साहित्य वैसे तो हिन्दू समाज का साहित्य है, लेकिन इसकी यह खूबसूरती है कि इसमें मुस्लिम, ईसाई आदि धर्मों के अनुयायी पात्रों की भी उपस्थिति है। इससे भारतीय समाज की समग्रता का एक सुन्दर चित्र चित्रित होता है।
प्रेमचंद नि:संदेह हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं के मान्य और लोकप्रिय कहानीकार थे। उन्होंने हिंदू जीवन की कथा को रचकर मुस्लिमों तक पहुंचाया और कर्बला, ईदगाह आदि रचनाएं रचित कर मुस्लिम समाज में निहित श्रेष्ठ तत्वों को हिंदू समाज तक पहुंचाने का सफल प्रयास किया। यह भारतीय समाज को एक साथ जीने, सोचने तथा रहने के भारतीय दर्शन के आधार को हीं पुष्ट करने के ध्येय से हीं लिखा गया था। भारतीयता की भूमि समन्वित एकता, सामंजस्य व अनेकता में एकता पर हीं स्थिर है; जो प्रेमचंद साहित्य की भूमिका तैयार करता है। प्रेमचंद के पात्र अपनी धर्मगत पहचान को भारतीय पहचान में परिवर्तित कर देते हैं और अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित होते हैं। यही प्रेमचंद साहित्य की विशेषता है।
भारतीय जीवन में परिवार एक केन्द्रीय इकाई है और यह भारतीय संस्कृति, जीवन -शैली एवं इसके उद्भव और विकास की बुनियाद है। प्रेमचंद के साहित्य में परिवार की सत्ता और उसकी उपस्थिति मौजूद है।इनकी रचना में पारिवारिक टूटन और जुड़न की एक परिवार केन्द्रित सुख-समृद्धि की कामना है,जो भारतीय जीवन की यथार्थता के समीप है।
गोदान में होरी व राय साहब तथा रंगभूमि में सूरदास -मिठुआ और जनसेवक व जाह्नवी परिवार की कहानियां हैं। निर्मला में परिवार टूटने की कथा है। बड़े घर की बेटी,हार-जीत व कफन आदि भी परिवार की महत्ता को बाकायदा बताने में सफल दिखता है। इस प्रकार प्रेमचंद साहित्य को पारिवारिक संस्कृति का साहित्य कहना अतिश्योक्ति न होगी।
प्रेमचंद के साहित्य में सेवा एक ऐसा मूल्य है,जो भारतीय संस्कृति की आत्मा है।मंत्र कथा का पात्र भगत अपने पुत्र के हत्यारे चड्ढा के पुत्र को सर्पदंश से बचाता है और स्वयं गौण हो जाता है।इसी तरह रहस्य कथा का नायक सेवा से ही देवत्व का अनुभव करता है।
क्षमा भारतीयता का अलंकरण है। गोदान में होरी गाय की हत्या करने वाले अपने भाई हीरा को क्षमा कर देता है।
भारतीय की यह विशेषता है कि वह संतोष में परम सुख का अनुभव करता है।कफन कहानी में घीसू-माधव अपने बचे भोजन एक भिखारी को देकर परम संतोष को प्राप्त करता है। रंगभूमि में सूरदास अपने समाज -संस्कृति की रक्षा के निमित्त शहीद हो जाता है। प्रेमचंद के पात्रों का यह मानवीयता भारतीय संस्कृति की हीं तो देन है।
नारी के लिए उसका सतीत्व बहुमूल्य है और यह घासवाली कहानी परिलक्षित होता है।
इनकी साहित्य के कतिपय पात्र पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित दिखते हैं, परंतु भारतीयता के साथ द्वंद्व में भारतीयता की विजय होती है। रोशनी कहानी में एक गरीब अशिक्षित विधवा अपने स्वाभिमान और सेवा भाव से अंग्रेज बने एक भारतीय अधिकारी को भारतीय महत्ता को समझाने में सफल होती है। प्रेमचंद पश्चिमी शिक्षा के विरोधी हैं। उनकी परीक्षा कहानी अनेक स्नातकों के बीच एक भारतीय युवक के दीवान बनने की कहानी है। मंगलसूत्र उपन्यास का प्रतिपाद्य है कि एक भारतीय लेखक भी जीवन में सफलता का अनुभव कर सकता है।
प्रेमचंद गीता के कर्मयोग के अनुयायी हैं, जिसका जीता जागता उदाहरण रंगभूमि का सूरदास है।
प्रेमचंद के साहित्य में देवी-देवताओं की चर्चा भी देखने को मिलती है। वे इसका उपयोग मानव के उत्कर्ष और और देश -भक्ति के लिए करते हैं। हिन्दू धर्म में बेटी को पराया धन माना गया है और उसे लेना पाप समझा जाता है। प्रेमचंद अपनी रचनाओं में इस नैतिक चेतना को जगाने का काम करते हैं। भारतीय जीवन कृषि पर आधारित है। गोदान में वे कृषि-संस्कृति के विनाश का आख्यान लिखते हैं। गोदान की त्रासदी में हीं प्रेमचंद की कृषि संस्कृति की मान्यता छिपी है।
प्रेमचंद पश्चिमी आधुनिकता से तो दो-चार होते हीं हैं, पर भारतीय संवेदना व मानवता की रक्षा करते नजर आते हैं।उनका स्पष्ट कहना था कि एक लेखक स्वाभाव से ही प्रगतिशील होता है।
मार्क्सवादी आलोचकों के अनुसार यथार्थवादी प्रेमचंद हीं असली प्रेमचंद हैं और आदर्शवादी पहलुओं को कपोल कल्पित बताया है।
मेरी दृष्टि में प्रेमचंद को आदर्शवाद से दूर करना भारतीयता पर करारा प्रहार है। भारतीय चेतना मानव मात्र को देवत्व के तरफ़ ले जाता है। और यही वजह है कि प्रेमचंद मन का संस्कार करना ही साहित्य का ध्येय मानते हैं। प्रेमचंद अपनी भारतीयता में समन्वयवादी हैं।
प्रेमचंद को आज भी लोग मार्क्सवादी,वर्ग-संघर्ष और हिंसक क्रांति का समर्थक मानते हैं और उनकी मान्यता है कि वे क्रांतिकारी समाजवादी लेखक थे। उन्हें मार्क्सवाद और क्रांतिकारी यथार्थवादी यथार्थवाद की जंजीरों में जकड़ दिया गया। ऐसे लोगों ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए प्रेमचंद के सही रुप को गौण कर दिया। उनके भारतीय स्वरुप को बर्बाद कर दिया। मेरा ऐसा मानना है।
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि प्रेमचंद साहित्य की भारतीय तत्व ने हीं उन्हें कालजयी साहित्यकार बनाया है,जो आज भी हम सबों के लिए श्लाघ्य,वरेण्य एवं अनुकरणीय है। प्रेमचंद जयंती के मौके पर हम उन्हें शत शत नमन करते हैं।
— उपाध्यक्ष, जिला प्रगतिशील लेखक संघ,समस्तीपुर।
मो ७४८८२०४१०७

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