शीर्षक- सत्य की राह पर
शीर्षक- सत्य की राह पर
जे टी न्यू

मैं तथागत की धरा पर जन्म ली हूं।
जानती हूं सत्य की राह पर असंख्य कंटक है भरा।।
पर क्यों संभव नहीं मेरा ध्यान में हों मग्न रहना।
जब कि मैं धैर्य धरकर लक्ष्य निहित कर्म पथ पर चल पड़ी हूं।।
हों कठिन जितनी भी राहें चलना मेरा निश्चित ही हैं।
पर आहत मन रोकता है क्या यह वही धरा है।।
जो तथागत के चरणधूलि के स्पर्श से खड़ा हैं।
जाने क्यूं ज़िद पर अड़ी हूं ?
फिर भी मैं चल पड़ी हूं।
उस गतिशील राह पर।

अब दुःख मिले या सुख मिलें करती हूं आश्वस्त खुद को।
ज्ञान का भिक्षा मिलें मैं वहीं भिक्षुक बनूं।।
क्यूं कि मैं तथागत की धरा में जन्म ली हूं।
और मरुंगी भी तथागत की धरा पर , जबकि मुझको ये विदित है मिलेगी इक सुजाता।
और फिर राह में दिख जाए अंगुलिमाल है आता।।
अच्छाई या बुराई सब यहीं मिलेगी,
यही जग में निहित है।
पर मैं यह मानती हूं कि सत्य की ही विजय होती।।
और झूठ हरदम हार जाता।

मोह माया योगियों सा त्याग कर जो चल दिया था,
और पीछे छोड़ दिया अपना धन, संपदा,वैभव सारा।।
वो जो किसी के वेदना में व्यथित होता,
और किसी दुसरे के पीड़ा से है पीड़ित रहता,
और जिसे दूसरे के घाव का आभास होता,
वो नितांत एकांत होकर निरंतर चल पड़ा था,सत्य की ही खोज करने।
यूगान्तकारी बदलाव लाने के लिए कटिबद्ध था जो,
सत्य का वो उपासक धर्म का नव बीज बोता।
बुद्धता को प्राप्त कर जो जी रहा इसी सत्य में,
वास्तविक ज्ञान, है उसी को मिल रहा
जो पथनिदर्शित बुद्ध की राह में हैं चल रहा l

वास्तविक सत्य का ज्ञान हैं उसे ही मिल रहा।।
है प्रकाशित उसका जीवन और सदा ही रहेगा।
सत्य की राह पर जो सदा चलता रहेगा।।
राखी देब (स्वरचित एवं मौलिक)
चन्दननगर, हुगली, पश्चिम बंगाल


