‘मोक्षवन’ उपन्यास लिखने की इच्छा क्यों हुई ?
‘मोक्षवन’ उपन्यास लिखने की इच्छा क्यों हुई ?
जे टी न्यूज
मुंबई: इसके कई कारण हैं l पहला यह कि मेरी ननिहाल ब्रज में है l जब बचपन और उसके बाद अपनी किशारावस्था में ननिहाल जाता था तो माथे पर चंदन का तिलक लगाए मामूली-सी सफेद धोती लपेटे इन महिलाओं को में अक्सर देखता था l ब्रज में इन्हें बाई कहा जाता है l तब मुझे नहीं पता था कि ये बंगाल से आई विधवाएँ हैं l दूसरा कारण यह था कि मैं जिस केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड, जो केंद्रीय एवं महिला बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत आता है, और जिसे मौजूदा सरकार ने बंद कर दिया है लगभग तीस साल पहले वृंदावन के स्थानीय स्वयं सेवी संगठनों के साथ मिलकर, इन अभागियों के लिए कुछ कल्याणकारी कार्यक्रम शुरू किये थे l लेकिन इसके लिखने की इच्छा मेरी 2015 में हुई और इसके लिए मैं भरतपुर भी गया था l लेकिन तब मैं इस पर काम नहीं कर पाया l आपको याद होगा कि साल 2012 के मध्य में वृंदावन और यहाँ रहने वाली ये विधवाएँ तब चर्चा में आईं जब माननीय उच्चतम न्यायालय ने नेशनल लीगल सर्विस अथारिटी को यहाँ की विधवाओं और निराश्रित महिलाओं की दुर्दशा पर ध्यान देने का निर्देश दिया l इसका जिम्मा सरकार ने सुलभ इंटरनेशनल को दिया l
बात आई-गई हो गई l वर्ष 2022 में अपने नवें उपन्यास ‘ख़ानज़ादा’ के बाद जब नए उपन्यास की पृष्ठभूमि के बारे में सोच रहा था, तभी मुझे याद आया की जो काम मैं 2015 में नहीं कर पाया, अब करना चाहिए l हालाँकि इस बीच मैं इन महिलाओं से संबंधित काफी सामग्री एकत्रित कर चुका था, बस एक बार वृंदावन और जाना था l तो इस तरह मैं 2022 के अंत में वृंदावन गया और वहाँ के पुराने मंदिरों, यमुना के घाटों, सारे रास्तों, भजनाश्रमों, बाजारों, गलियों का बारीकी से अध्ययन किया इसमें मेरी सबसे अधिक मदद यहाँ गोदा विहार स्थित ‘ब्रज संस्कृति शोध संस्थान’ ने की l वहाँ से आने के बाद मैंने इसे लिखना शुरू किया l एक बात और जो बहुत महत्त्वपूर्ण है और वह यह कि इस उपन्यास में केवल वृन्दावन ही नहीं बल्कि शांति निकेतन और उसके आसपास का इलाका भी है l संयोग से एक बार मैं नादिया जिले के मायापुर स्थित नबद्वीप, जहाँ चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ था, वहाँ भी गया था l इस तरह इस उपन्यास को आप सांस्कृतिक उपन्यास भी कह सकते हैं l
इस उपन्यास को लिखने में क्या कठिनाइयाँ हुईं ?
इसको लिखने में सबसे अधिक इन महिलाओं और उनसे जुड़ी जानकारियाँ जुटाने में हुईं l जैसे जिन भजनाश्रमों में ये पूरे-पूरे दिन भजन गाती हैं, उन भजनाश्रमों की जानकारी इनके व्यवस्थापक नहीं देते हैं l इनका इनके बारे में निजी जानकारी भी ये महिलायें नहीं देती हैं l बावजूद इसके स्थानीय लोगों से मैंने ये जानकारियाँ हासिल कर लीं l दरअसल, मेरे मन में शुरू में केवल इन विधवाओं को केंद्र में रख कर उपन्यास लिखने की योजना थी लेकिन जब मैंने वृंदावन में जाकर कुछ बातें खुद देखीं और महसूस की, मुझे लगा इस उपन्यास में अन्य मुद्दों को भी लेना चाहिए l कुछ ऐतिहासिक और मिथकीय प्रसंगों को भी मैंने लिया है l एक बात और धर्म और धार्मिकता से जुड़ी बातों में बड़ी सावधानी बरतने की जरूरत होती है l मैंने इनका पूरा ध्यान रखा है l