।मन की चीख

मन की चीख
जे टी न्यूज

राजनीति का रंग चढ़ा है सत्ता के मक्कारों को,
गरिमा कुर्सी की बतलादो संसद में चाटूकारों को।
अरे तवायफ़ भी मुज़रा में वस्त्र चुनंदा रखती है,
अपराधों की आजादी दे दी भारत के गद्दारों को।।

अपमान की टीस

लाचारों की चीख उठीं हैं गांव, शहर, गलियारों से,
याचक बन अब न्याय मांगते कानूनी दरबारों से।
जो नारी के शोषण पर भी चुप्पी साधे बैठे हैं, ,
क्यों झूठी आस लगा रखी है दिल्ली की सरकारों से।।

खुद की अदालत

लगे हुए तन के घावों को मरहम लगाकर खुद सीन लो,
दुष्कर्म भरे अनुमानों को हथियार बनाकर खुद जी लो।
मदहोश भेड़िए माँ बहनों की हर मर्यादा भूल गए,
बोटी-बोटी काट खून को ओक़ लगाकर खुद पी लो।

Related Articles

Back to top button