आरक्षण पर हंगामा नहीं क्योंकी विरोधियों ने मुंह खोलना उचित नहीं समझा आलेख : राम सुदिष्ट यादव
आरक्षण पर हंगामा नहीं क्योंकी विरोधियों ने मुंह खोलना उचित नहीं समझा
आलेख : राम सुदिष्ट यादव

जे टी न्यूज़ : इस बार बिहार में आरक्षण जब बढ़ाया गया तो हंगामा नहीं हो पाया। इसका कारण यह है कि पिछड़े वर्गों, दलितों में जागरूकता बढ़ी है सामाजिक न्याय दिलाने वाली क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत हुई है। इसलिए आरक्षण विरोधियों ने मुंह खोलना उचित नहीं समझा। आज की पीढ़ी के लिए ये समझ पाना मुश्किल होगा कि आरक्षण दिलाने के लिए 1978 में बिहार में समाजवादी सरकार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर जी को उस समय आरक्षण विरोधी श्रेणी वर्ग के नेताओं ने कितनी गालियां खाई थी…. कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में आरक्षण दिलाते समय कितनी गाली खाई थी ….फिर 1990 में मंडल कमीशन को पास करते समय वी पी सिंह ने सामान्य वर्ग के लोगों से खूब गालियां सुनी थी।

कर्पूरी के पीछे चुनिंदा पिछड़े लोग लामबंद थे ….”आरक्षण कहाँ से आई….करपुरिया के माई बियायी…”बोलने वाले सामान्य वर्ग नेतृत्व वाली पार्टियों के लोग सड़क से लेकर सदन तक में पागल हो चुके थे…कर्पूरी जी के पिता तक को उनके गांव में सामंतों ने बेइज्जत किया था। फिर भी ओबीसी समाज को कर्पूरी फॉर्मूला के तहत 28% आरक्षण लागू हुआ था। आज समय बदला तो आज वही लोग मजबूरी में सदन में चुप-चाप बैठे देखते रहे और बिहार विधानसभा के सदन में कुल 75% आरक्षण पास हो गया….ओबीसी वर्ग को 27% से 43% आरक्षण मिल गया। कानून बनते ही लागू हो जाएगा। विरोधी लोग चुप क्यों थे इसपर बहुजन समाज को विचार करने की जरूरत है !!

आजादी के बाद से आपकी अनभिज्ञता और अल्प जागरूकता ने हमेशा आपको एक वोटर से ज्यादा कभी समझा नहीं गया। 1990 के दशक में जब प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मण्डल कमीशन लागू किया तो वीपी सिंह को खूब गलियां दिया गया। आत्मदाह तक किया गया। क्रीमी लेयर के प्रावधान को जोड़ने के लिए सवर्ण लोग सुप्रीम कोर्ट गए। लेकिन देर से ही सही देश में ओबीसी वर्ग के लिए 27% आरक्षण लागू हुआ….लेकिन आज भी उस आरक्षण को छेड़ छाड़ करने के लिए पिछले 10 साल से चल रही सरकार ने हर सम्भव कोशिस किया है। पहले 2017 में लेटरल इंट्री के माध्यम से आईएएस आईपीएस बनाने का अध्यादेश लाया और बिना यूपीएससी परीक्षा दिए आईएएस आईपीएस बनाने लगा। फिर सामान्य वर्ग के लिए EWS आरक्षण लाया गया….रिक्रूटमेंट में ओबीसी का सीट कम देना शुरू किया। कट ऑफ ओबीसी का EWS से बहुत ज्यादा हुआ….27% सीटों को भरना पहले और दुरूह कर दिया। अक्सर आप सुनते है केंद्रीय नौकरियों में ओबीसी 6 से 7 % है बांकी ओबीसी का संवैधानिक सीट कौन खा रहा है ?

इतना कुछ होने के बाद आप कुछ नहीं कर सके है। क्यों नहीं कर सके उसका सिंपल कारण है; केंद्र में आपके हितों को साधने वाली कभी सरकार नहीं बनी है । बिहार उन चुनिंदा राज्यों में एक राज्य है, जहां आरक्षण का कोटा सही से लागू होता रहा है। उसका कारण सिंपल है क्योंकि यहां 33 साल से सामाजिक न्याय की एवं समाजवादी सरकार है। फिर भी सोशल मीडिया पर वंचित समाज के लोग इसी सरकार पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहे है। मसलन कुछ आरोप इस तरह है। “जैसे जातीय सर्वे का रिपोर्ट सही नहीं है…हमारी जाति को कम दिखाया गया है” “जब ओबीसी 63% है तो मात्र 43% रिजर्वेशन क्यों दिया गया ?” “इस रिजर्वेशन को लागू करने के बाद BPSC शिक्षक की नियुक्ति होनी चाहिए थी …क्या फायदा जब नियुक्ति के बाद रिजर्वेशन सदन में पास हुआ।” सबसे खराब रोल तो जीतन राम मांझी जी का रहा जब सवर्ण नामधारी सदन में आरक्षण लागू करते समय अपने दुखों को व्यक्त करने लगे, तो उनके दुःखों का सहारा बनने और अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के लिए खड़े हो गए। बहरहाल ! ये सभी आरोप अपने लोग लगा रहे है जिनको आरक्षण पास करवाने की गंभीरता की समझ नहीं है। मैं यहाँ उत्तर देने की कोशिश करता हूँ। जिन सामाजिक न्याय के साथियों को जातीय आंकड़ों से दिक्कत है उनको समझ लेना चाहिए कि ये सर्वे अगर न होता तो शायद ही कोई दुसरे राज्यों की सरकार अपने राज्य में जातिय जनगणना करवाने का हिम्मत नहीं दिखाते। अगर जातीय आंकड़ा गलत लग रहा है तो केन्द्र सरकार पर दबाव बनाया जाए जातिय जनगणना कराने केलिए और सही संख्या सामने आ जायेगी। आप अपने समाज को डेटा देने के लिए जागरूक बनाइये। ओबीसी वर्ग के लोग सोचिए इस सर्वे को रोकवाने के लिए जो पार्टियां अप्रत्यक्ष रूप से हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गई वो आपके हित में कभी भी सोचेगी ? फिर भी आप उनकी ही भाषा बोल रहे हों।

जिनको लग रहा है ओबीसी 63 % है 43% आरक्षण क्यों मिला। ये भावुकता से ज्यादा कुछ नहीं हों। बिहार सरकार 63% दे देती और जाकर मामला सुप्रीम कोर्ट में फंस जाता। आपको भी पता है सुप्रीम कोर्ट में कौन सा वर्ग मुकम्मल कब्जा किए बैठे है वो आपके लिए न्याय नहीं करेंगे। क्योंकि उनमें इमानदारी और न्यायिक चरित्र नहीं होता है। अगर 63% चाहते है तो आपको उसके लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को लॉ की पढ़ाई करके कोर्ट परिसर में भीड़ जुटानी पड़ेगी। जिनको लगता है BPSC टीचरों की नौकरी ये आरक्षण लागू होने के बाद होती, उनसे ज्यादा मूर्ख कोई और हो नहीं सकता है। जब नीतीश कुमार को नहीं पता था कि जातीय सर्वे की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला देगी, अगर फैसला हक में दे दी तो….रिपोर्ट पर लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी ?? उसके बाद लोग सदन में इसे पास कराने में कितना सहयोग करेंगे ?
ये सब बात ऐसी थी जो भविष्य के गर्भ में थी। ये बिहार सरकार की शुक्रिया मनाइए कि सभी काम जल्द से जल्द करवा दिया, जिसकी उम्मीद विरोधियों को भी नहीं थी….पढ़े लिखे ज्ञानी समर्थकों को तो विश्वास भी नहीं हुआ।

आरक्षण पास होने के बाद ट्वीटर पर मलाइखोर पार्टी के नेताओं, समर्थकों, आईटी सेल के धुरंधरों की प्रतिक्रिया पढ़िए। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी पर विश्वास है कि ये 75% आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में फंसा देंगे। अगर आपको विश्वास है कि मोदी जी 2024 में राम मंदिर बना देंगे….उस विश्वास को वो नहीं तोड़ेंगे। आरक्षण पर आपको निराश करेंगे…इस मामले में वो मलाइखोर लोगों के साथ है। बांकी इस ऐतिहासिक आरक्षण बिल पर कहीं कोई सकारात्मक चर्चा नहीं होगी। क्योंकि इससे देशव्यापी माहौल बनेगा, जो तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टियों के लिए खतरे की घण्टी है। आप बहुजन ओबीसी के पास न मेन स्ट्रीम का अखबार है, और न ही टीवी चैनल है जहाँ इसकी चर्चा होगी। न आपके पास यूट्यूब चैनल बहुतायत संख्या में है जिसपर इसकी चर्चा करवा के देश के हर गांव तक जनता के बीच यह संदेश पहूंचाते। आप उन सवर्णों का टीवी चैनल और अखबार पेपर पढ़ेंगे और अपने समाजवादी नेताओं की खामियां जान कर अपने ही ओबीसी नेता को गलियायेंग।

ये अभी भी आपकी यही नियति है। नीतीश के सदन में बोलने पर जो पब्लिक में माहौल बनाया गया…उससे ये साबित हो जाता है कि आप अपने नेता के पक्ष में सही से स्टैंड भी नहीं ले पाते है। लेकिन इतना याद रखिए बिहार के समाजवादी नेताओं कर्पूरी ठाकुर,वी पी मंडल, लालू यादव, नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव ने समय-समय पर देश के शोषितों पीड़ितों वंचितों को मुख्यधारा में लाने केलिए देश में राजनीति को नई दिशा देते रहे हैं। तब आज हमलोग यहां खड़े हैं।
