उफ़! कितना सम्मान…!*

उफ़! कितना सम्मान…!*
*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

जे टी न्यूज

मोदी विरोधियो और कितना गिरोगे। बताइए, एक शहीद के सम्मान करने के तरीके पर भी पॉलिटिक्स हो रही है। वो भी सेना के शहीद के सम्मान के तरीके पर। वह सेना, जो हमारे देश की सीमाओं की रक्षा करती है। वह सेना, जो सीमाओं पर होती है, तो हम घर में सुरक्षित सोते हैं। वह सेना, जो आए दिन शहादतें देती रहती है, देश की और उसकी सरकार की भी आन, बान, शान बनाए रखने के लिए। जी हां, उसी सेना के शहीद शुभम गुप्ता की शहादत के सम्मान के तरीके पर पॉलिटिक्स हो रही है।

विरोधी देश भर में इसका झूठा प्रचार कर रहे हैं कि योगी सरकार के मंत्री जी ने शहीद की माता को पचास लाख का चेक पकड़ाकर, शहीद का अपमान किया है। इन दुष्टों ने तो शहीद की माता तक को नहीं छोड़ा; उनके वीडियो दिखा-दिखाकर, इसका प्रचार कर रहे हैं कि तस्वीर में मंत्री, योगेंद्र उपाध्याय जी शहीद की माता का और उनकी मार्फत शहीद का अपमान कर रहे हैं। यह सरासर झूठ है। उपाध्याय जी सबसे बड़े देशभक्त, उनकी पार्टी सबसे बड़ी देशभक्त पार्टी, उनकी सरकार सबसे ज्यादा देशभक्त सरकार और उस सरकार के भी उच्च शिक्षा मंत्री; वे किसी शहीद और उसकी माता अपमान कर सकते हैं, यह कोई सोच भी कैसे सकता है!

वीडियो में वैसे भी है क्या? मंत्री जी और उनके संगी विधायक जी, शहीद की माता को शहादत के सम्मान का चेक दे रहे हैं। पूरा ख्याल रखकर उस बेहाल-बेसुध माता को चेक दे क्या पकड़ा रहे हैं, जिसे पता भी नहीं है कि क्या हो रहा है? उसके बार-बार यह कहने के बावजूद चेक पकड़ा रहे हैं कि उसे कुछ नहीं चाहिए; बस किसी तरह उसका बेटा वापस ले आएं। बेकल माता चेक नहीं पकड़ रही है, फिर भी उसके हाथ में चेक ठूंसे दे रहे हैं, पर दे रहे हैं! और यह सब कैमरे में दर्ज कराते हुए कर रहे हैं, ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए। इतनी सी बात जरूर है कि चूंकि डबल इंजन वाली सरकार कुछ भी चांस पर नहीं छोड़ती है और सारे इंतजाम खुद से कर के चलती है, मंत्री जी अपना वीडियोग्राफर अपने साथ लेकर गए थे। डबल इंजनी, आत्मनिर्भरता वाले जो ठहरे!

अब कोई बताएगा कि इसमें शहीद का तो छोड़िए, शहीद की माता का भी अपमान कैसे हो गया! क्या चेक लेने और देने की फोटो ठीक से आए, इसके लिए शहीद की मां को दरवाजे पर बुलवाने में अपमान हो गया? या इसमें अपमान हो गया कि बेचारी मां इतनी विकल थी कि मंत्री के चेक देने के फोटो के लिए उसे खड़ा रखने के लिए, दोनों तरफ से कई-कई नाते-रिश्तेदारों ने अगर पकड़ कर नहीं रखा होता, तो वह गिर जातीं और फोटो बिगड़ जाती? और कम-से-कम इसमें तो अपमान हर्गिज नहीं हो सकता कि शहीद की मां के ना-ना करने के बाद भी, मंत्री जी शहादत का चेक उसे पकड़ाकर ही माने।

और विपक्षी जो यह शोर मचा रहे हैं कि मौका-माहौल देखना चाहिए था, वह तो सरासर बेईमानी है। हम तो कहेंगे कि योगी जी-मोदी जी की डबल इंजन सरकार की तो सराहना होनी चाहिए कि उसने, शहादत की रकम का चेक दिलवाने में इतनी तेजी दिखाई। शहीद के चिता पर पहुंचने से घंटों पहले, शहादत की रकम का चेक घर पहुंचा दिया और वह भी सीधे शहीद की मां के हाथ में। अठारह-अठारह घंटे काम करने वालों की सरकार ऐसे ही दौड़-दौड़कर काम करती है। मोदी जी को तीसरा कार्यकाल मिला, तो घरवालों के पास ताबूत के साथ चेक पहुंचा करेगा। पर इन निकम्मे विरोधियों का बस चले, तो ये तो चुस्ती से चेक पहुंचाने को भी, मोदी जी की पार्टी का गुनाह बना देंगे।

और हां, शहीद की मां के यह कहने का जो इतना शोर मचाया जा रहा है कि ‘‘इसकी प्रदर्शनी मत लगाओ, इसका तमाशा मत बनाओ’’; सरासर बेईमानी है। नहीं, शोक विह्वल मां का ऐसा कहना तो समझा जा सकता है। उसे तो उस समय सभी कुछ निरर्थक लग रहा होगा, अपने बेटे के गम में। उसका तस्वीर खिंचने को प्रदर्शनी कहना, उसे नापसंद करना बनता है। पर क्या विरोधी भी, डबल इंजनियों के विरोध में अंधे होकर यह भूल जाएंगे कि चेक दान के सरकारी कार्यक्रम के लिए, तस्वीर की कितनी महत्ता है? मंत्री जी कोई अपनी जेब से थोड़े ही पैसा दे रहे थे कि चेक कैसे भी, कभी भी, किसी को भी देकर चले आते! सरकारी काम का एक कायदा होता है। और सरकारी पैसा देने का तो और भी पक्का कायदा बना हुआ है। आखिर, ईमानदारी तो खैर है ही, उसके साथ ही पारदर्शिता भी एक चीज होती है। हमें तो हैरानी है कि किसी भी वीडियो में, मंत्री जी चेक देते समय, रेवेन्यू स्टाम्प वाली रसीद पर चेक प्राप्तकर्ता के दस्तखत लेते या अंगूठा लगवाते नजर नहीं आ रहे हैं। क्या सचमुच चेक देकर भी रसीद नहीं ली? मंत्री जी को कहीं ये वाली चूक भारी नहीं पड़ जाए! शुक्र है, चेक देने की तस्वीर तो है, प्रमाण के रूप में।

सुना है कि अलीगढ़ वाले शहीद सचिन लौर के मामले में, विरोधियों ने आगरे वाले मामले से उल्टी तरह से शहादत का अपमान खोज लिया है। इस बार अलीगढ़ के प्रभारी और गन्ना विकास मंत्री, चौधरी लक्ष्मीनारायण ने उच्च शिक्षा मंत्री वाली जल्दी नहीं की। मंत्री जी शहीद की अंत्येष्टि में ही पहुंचे और वह भी आराम से, खूब रोना-धोना हो जाने के बाद। शहीद ने अंत्येष्टि के लिए मंत्री जी का डेढ़ घंटे इंतजार किया। अब विरोधी तय कर लें कि उच्च शिक्षा मंत्री की चेक देने की जल्दी में शहीद का अपमान हुआ या गन्ना विकास मंत्री के अंत्येष्टि के लिए डेढ़ घंटा इंतजार कराने में? विरोधियों की चित भी मेरी और पट भी मेरी नहीं चल सकती। हां! डबल इंजनियों की बात दूसरी है। उनके मंत्री का दोनों मामलों में सम्मान रहा — आगरा में इंतजार नहीं किया, तब भी और अलीगढ़ में जल्दी नहीं की, तब भी। उनके मंत्रियों के सम्मान में ही तो, शहीदों का भी सम्मान है।

 

Related Articles

Back to top button