सैंया भये कोतवाल फिर लोकतंत्र की फिक्र कौन करे

सैंया भये कोतवाल फिर लोकतंत्र की फिक्र कौन करे
जेटी न्यूज


एस कुमार।
समस्तीपुर। एक गाना कभी खूब बजता था, जब सैंया भये कोतवाल भैया अब डर काहे का। ऐसा ही कुछ दिख रहा है इन दिनों राष्ट्रीय महापर्व आम चुनाव में। सत्ता धारी दल चीख चीख कर दावा कर रहा है अबकी बार चार सौ पार मगर चुनाव आयोग, शीर्ष न्यायालय सहित सभी सक्षम इकाई खामोश हैं। पिछले मतदान में पोस्टल बैलेट गणना में हुई व्यापक गडबडी तो लोग भूल भी चुके है, पूरे सरकारी महकमो के पदाधिकारी व कर्मियों को सत्ता धारी दल का गुणगान करने केलिए बाध्य किया गया तब भी इन दोनो शीर्ष संस्थानो सहित सभी ने आश्चर्यजनक ढंग से चुप्पी ओढ रखी है। विपक्षी दलों द्वारा इवीएम से चुनाव कराने को लेकर आपत्तियों और चिन्ताओं से संबंधित सप्रमाण दिये गये आवेदन को खारिज करते हुए इवीएम से ही चुनाव कराने का फैसला 400 पार के दावे की दोनों संस्थानो द्वारा मौन स्वीकृति जैसा ही इशारा करती है। सत्ता में बने रहने केलिए हाॅर्स ट्रेडिंग पर आयोग और माननीय शीर्ष अदालत की चुप्पी से मतदाता तो हैरान थे ही अब एक राष्ट्रीय दल के प्रत्याशी के नाम निर्देशन पत्र को रद्द करने के साथ ही शेष सभी प्रत्याशियों का नाम वापस लेना लोकतंत्र के इतिहास की ही पहली घटना नहीं है बल्कि इस प्रकरण पर लोकतंत्र की रक्षक सबसे बडी संस्था चुनाव आयोग की खामोशी भी पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में पहली घटना है। अब जब देश में चुनाव शुरू हो गये हैं तो बेशक शीर्ष अदालत के फैसले पर बहस व्यर्थ है।

अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद सम्पन्न दो चरणों के चुनाव में मतदाताओं में अपने संवैधानिक अधिकार और लोकतंत्र के इस महापर्व के प्रति उदासीनता सामने आ गई है तो राजनीति के विश्लेषक व समीक्षक इस वोट प्रतिशत में आई कमी को सत्ता धारी दल केलिए खतरा बताने लगे हैं। मगर हवा में 400 पार का शोर थमा नहीं है। निश्चित रूप से यह चिन्ताजनक है। आम मतदाता भी हैरान-परेशान है, चुनाव आयुक्त ने कह तो दिया है कि आपका वोट सुरक्षित है, मगर कैसे यह आज भी अनुत्तरित है। क्या होगा जब जनता के मिजाज के विपरीत चुनाव परिणाम आयेंगे इस पर भी चुनाव आयोग ने कुछ भी स्पष्ट नहीं किया है।

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