हेलो, मैं नौवीं फेल आप मुझे ट्रॉल करे शिक्षा पर, स्वास्थ्य पर, नौकरी पर – तेजस्वी यादव
हेलो, मैं नौवीं फेल आप मुझे ट्रॉल करे शिक्षा पर, स्वास्थ्य पर, नौकरी पर – तेजस्वी यादव
जे टी न्यूज़
ना, बिल्कुल मत चौंकिए। मुझे कोई एतराज़ नहीं है। क्योंकि ये आपका ग़ुस्सा नहीं है। उपहास नहीं है। तंज नहीं है। ये वो तमग़ा है, प्यार है जो आपने मुझे दिया है। शायद आप मुझसे कभी नहीं मिले। मेरे काम को क़रीब से नहीं देखा। मुझे ठीक से नहीं जाना। लेकिन फिर भी जाने-अनजाने में सही, किसी की बातों में आकर, आप मुझे जिस नाम से जानते हैं, वही मेरे लिए उपलब्धि है। आप यक़ीन करेंगे, जब से होश सम्भाला है। अपने पिता को, माँ को, दीदी को…सबको लड़ता हुआ देखा है। एक समय पापा देश के सबसे मज़बूत नेता थे। पटना से दिल्ली तक उनकी चलती थी। सबसे बड़े सोशलिस्ट लीडर थे। आज भी हैं। लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब हमारा परिवार अकेला पड़ा। पार्टी के कई लोग साथ छोड़ के गए। पापा जेल गए। माँ सीएम बनी। उन्हें अनपढ़ कहकर चिढ़ाया गया। अंगूठा छाप मुख्यमंत्री कहा। तरह-तरह की बातें की। मैं सब देखता था, अख़बारों में, कभी टीवी में। सब मेरे परिवार के ख़िलाफ़ थे। लेकिन कोई पीछे नहीं हटा। पापा जेल में रहे लेकिन टूटे नहीं। बीमार हुए लेकिन झुके नहीं। कुछ लोग पूछते हैं क्या किया, मुझे बिहार के सात बड़े विश्वविद्यालय नज़र आते हैं। पंद्रह ज़िले नज़र आते हैं। सामाजिक न्याय का धरा नज़र आता है।
जब उन्हें गद्दी मिली। बिहार सबसे पीछे था। दंगे हो रहे थे, जातीय नरसंहार हो रहा था। दलितों को मारा जा रहा था। एक तरफ़ पलायन था तो दूसरी तरफ़ दमन। लोकतंत्र स्थापित था लेकिन सामन्तवाद की जड़ें जम चुकी थी। तो पापा ने उसे जड़ सहित काट दिया। पापा दोषी हो गए। मीडिया, ब्यूरोक्रेसी, सरकारें सब ख़िलाफ़ हो गई। ये सब बताने में कई दिन बीत जाएंगे। लेकिन आप सुनेंगे कहाँ, आपने तो पहले ही जंगल राज का तमग़ा दे दिया है। यक़ीन मानिए, मेरे लिए या मेरे परिवार के लिए आपके व्यक्त विचार मुझे दुखी नहीं करते। मैं मुस्कुराता हूँ। अपना काम करता हूँ। आपने मेरी बेटी की तस्वीर देखी होगी। कात्यायनी नाम रखा है। तब मेरी पत्नी पेट से थी। सीबीआई वाले आए थे। पंद्रह घंटे बैठाया। पूछताछ की। हमनें सहयोग किया। कहीं संशय नहीं, माँ के साथ बेटी भी डटी रही। ये नहीं होना था। उनलोगों ने किया। कोई बात नहीं।
जब भी सज़ा मिली क़ुबूल किया। फर्जी केस में फँसाया, खड़े रहे, लड़ते रहे। हर फ़ैसलें को स्वीकार किया। मैं आज भी चार्जशीटेड हूँ। ज़मीन के एक फर्जी केस में, तब मैं 12 साल का था। हाँ, तब मैं क्रिकेट खेलता था। दिल्ली के लिए खेला। कप्तानी की। फर्स्ट क्लास भी खेला। इन सब के बीच मेरी पढ़ाई छूटी। मैंने सारा ध्यान क्रिकेट पर लगाया। मेरी उम्र के ज़्यादातर क्रिकेटर यही कर रहे थे… आप देख आइए। कोई मुश्किल से आपको ग्रेजुएट मिलेगा। लेकिन ये मसला है ही नहीं। मैं कोई स्पष्टीकरण नहीं देना चाहता, मैं चाहता तो दुनिया की बेशक़ीमती डिग्रियाँ मेरे चौखट पर रखी होती। मैंने ठुकरा दिया। ये जानते हुए कि आप मेरा उपहास करेंगे। मैं ख़ामोश था। लेकिन मैं ये भी चाहता हूँ कि आप मेरा उपहास करें। मुझे चुनौती दे। मेरे काम पर सवाल उठाए, मुझे कटघरे में खड़ा करे। अगर मैं आर्थिक न्याय के वादे से मुकर जाऊँ, माइक लगाकर मेरा विरोध कीजिए।
मैं तैयार हूँ। मैंने 10 लाख नौकरियों का वादा किया, समय से पहले पूरा करूँगा। जातीय जनगणना की उम्मीद दी, आर्थिक डाटा जारी कर के आरक्षण के स्लॉट में बदलाव कर दिया। मुझे अस्पताल अच्छे नहीं लगे, हालत नाज़ुक थी। मैंने ख़ुद से दौरा किया, मिशन 60 लागू किया। अब सब ठीक है। मैं चाहता हूँ आप मुझे ट्रॉल करे। शिक्षा पर, स्वास्थ्य पर, नौकरी पर। मेरे घर का दरवाज़ा खुला होता है। जनता दरबार लगता है। सबकी शिकायत सुनी जाती है। तत्काल कार्रवाई होती है। यहाँ कोई भेदभाव नहीं है। कोई नफ़रत नहीं। सब बराबर हैं। जितनी बड़ी लेगेसी है, जितना बड़ा साम्राज्य है। जितनी बड़ी सियासत है, उससे कई ज़्यादा बड़ी सेवा है, समर्पण है, भरोसा है। आपने मेरे आंदोलन देखें है। सड़क पर संघर्ष देखा है। जब गांधी मैदान में लाठियाँ चली, आप सब साथ थे। जब सदन में विधायकों को पीटा गया, आप संबल देने आए।
तब मैंने एक दिन में 16 रैलियाँ की। मैंने हाथ बढ़ाया, आपने साथ दिया। मैंने झोली फैलाई, आपने 80 सीटें डाल दी। तो ये शासन आपका है। ये सत्ता आपकी है। ये कुर्सी आपकी है। आपको जब भी मौक़ा मिले, आ जाइए। एक हांक लगाइए। मुझे आवाज़ दीजिए।नौवीं फेल बाहर आएगा। एक पैर पर खड़ा रहेगा। आपके लिए। बिहार के लिए। हमेशा।
साभार : सोशल मीडिया