बिहार आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करवाना जदयू की नैतिक व वैधानिक जिम्मेदारी

बिहार आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करवाना जदयू की नैतिक व वैधानिक जिम्मेदारी


जे टी न्यूज़, पटना : राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए प्रवक्ता चितरंजन गगन एवं मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि बिहार आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करना जनता दल यू की नैतिक और वैधानिक जिम्मेदारी है। ज्ञातव्य है कि 1951 में संविधान में किये गये पहले संशोधन में नौवीं अनुसूची को जोड़ा गया था। इसमें शामिल कानूनों की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है। राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि मंडल आयोग की अनुशंसा लागू होने के बाद से ही राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री लालू प्रसाद जी देश में जाति जनगणना कराने और उसके अनुसार आरक्षण की सीमा का निर्धारण करने की मांग करते रहे हैं, जिसका उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं प्रशासनिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान कर उनके लिए विशेष अवसर का प्रावधान करना रहा है। लालू जी के नेतृत्व में राजद इन सवालों को सदन और सड़क पर उठाती रही है। बाद के दिनों में तेजस्वी जी ने इस अभियान को जारी रखा। उनके पहल पर बिहार सरकार द्वारा सर्वदलीय बैठक बुलायी गई और मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल माननीय प्रधानमंत्री से मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना कराने की मांग की गई। इसके बावजूद केन्द्र सरकार द्वारा इस दिशा में कोई पहल नहीं किया गया है। अगस्त, 2022 में बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद प्राथमिकता देते हुए बिहार में जातीय गणना करायी गई।

हालांकि भाजपा के अपरोक्ष समर्थन और सहयोग से इसे बाधित करने का भरपूर प्रयास किया गया। राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि जातीय गणना से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर महागठबंधन सरकार द्वारा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, इबीसी और ओबीसी के लिए आरक्षण के सीमा को बढ़ाया गया। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण की सीमा 16 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 1 से बढ़ाकर 2 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ी जाति के लिए 18 से बढ़ाकर 25 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 15 से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया। इस तरह जाति आधारित आरक्षण की कुल सीमा 50 से बढ़कर 65 हो गई। अलग से सामान्य वर्ग के गरीबों (ईबीसी) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि महागठबंधन सरकार के समय हुई शिक्षकों सहित अन्य नियुक्तियों में बढ़ाये गये आरक्षण का लाभ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अतिपिछड़ा वर्ग, पिछड़ा वर्ग एवं ईबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को मिला। शिक्षण संस्थानों में भी इसका लाभ उक्त वर्गों को प्राप्त हुआ। भाजपा के अपरोक्ष समर्थन और सहयोग से बढ़ाये गये आरक्षण के खिलाफ माननीय उच्च न्यायालय ने रीट दायर की गई। माननीय उच्च न्यायालय द्वारा बढ़ाये गये आरक्षण पर रोक लगा दी गई। राज्य सरकार उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गयी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थगन देने से इंकार कर दिया गया है। अब स्थिति यह है कि लगभग एक लाख शिक्षकों के साथ हीं स्वास्थ्य, राजस्व एवं अन्य विभागों में नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है। शिक्षण संस्थानों में भी नामांकन की प्रक्रिया चल रही है। हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थगन देने से इंकार करने के बाद बढ़े हुए आरक्षण सीमा के लाभ से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अतिपिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थी वंचित रह जायेंगे। यदि सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले की प्रतीक्षा की जाती है तो फिर होने वाली नियुक्तियों में विलंब होगा और बहुत से छात्रों का सत्र छूट जायेगा। ऐसी स्थिति में यह अनिवार्य हो जाता है कि बिहार में बढ़ाये गये आरक्षण सीमा को संविधान की नौवीं अनुसूचि में शामिल किया जाए।

राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी आज इस स्थिति में हैं कि वे यदि केन्द्र सरकार पर दबाव बनाते हैं तो बिहार आरक्षण को नौवीं अनुसूचि में शामिल कर लिया जाएगा। राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि जदयू के साथ हीं एनडीए में शामिल लोजपा (रामविलास) एवं हम पार्टी से भी हमें अपेक्षा है कि वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर बिहार आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करवायेंगे। संवाददाता सम्मेलन में प्रदेश महासचिव श्री मदन शर्मा, संजय यादव, निर्भय अम्बेदकर, अभिषेक सिंह एवं पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष श्री विजय कुमार यादव उपस्थित थे।

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