गूगल से ज्ञान लेने से पहले उसकी सत्यता की जांच कर ले: कुलपति प्रो विवेकानंद सिंह ।

गूगल से ज्ञान लेने से पहले उसकी सत्यता की जांच कर ले: कुलपति प्रो विवेकानंद सिंह ।
जे टी न्यूज़

पूर्णिया:: पूर्णिया कॉलेज, पूर्णिया में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, शिक्षा मंत्रालय (उच्चतर शिक्षा विभाग), भारत सरकार एवं पूर्णिया कॉलेज, पूर्णिया के तत्वावधान में  “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में  तकनीकी शब्दावली इतिहास एवं संस्कृति”  विषय  पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ दीप प्रज्वलित कर पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विवेकानंद सिंह ने किया।  कुलपति प्रोफेसर सिंह ने संगोष्ठी की आयोजन पर हर्ष व्यक्त करते हुए उपस्थित शिक्षक और छात्रों से कहा की विद्यार्थी को आगे बढ़ना आवश्यक है । साथ में इस बात पर भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि हम जो ज्ञान बच्चों को दे रहे हैं वह उससे मिल रहा है या नहीं, इसका भी मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। उन्होंने शिक्षकों को प्रेरित करते हुए कहा कि वे शिक्षण, शोध और छात्र पर अधिक ध्यान दें और सही रास्ता दिखाएं। गूगल पर सूचना की भरमार है, गूगल से ज्ञान लेने से पहले उसकी सत्यता की जांच कर ले । टेक्सट बुक, संदर्भ पुस्तके का अध्ययन अवश्य करें।


मुख्य अतिथि के रूप में ऑनलाइन माध्यम से आयोग के अध्यक्ष प्रोफेसर गिरीश नाथ झा ने विषय वस्तु पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि भाषा लगातार कम हो रही हैं। शब्दावली आयोग लगातार मानक शब्दों पर काम कर रही है और जरूरत अनुसार उसे जोड़ और संशोधित कर रही है। प्रोफेसर झा आगत विद्वानों से अनुरोध किया की वह आयोग से जुड़े और भारतीय भाषाओं को मानक बनाने में अपना योगदान दें। मुख्य वक्ता प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्रा सेवानिवृत्ति विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा ने कहा कि भारत की संस्कृति अनेक प्रजातियां द्वारा निर्मित हुई है। अंग्रेजों ने भारत की संस्कृति और ज्ञान पद्धति को तोड़ने का प्रयास किया । योग और आयुर्वेद को हमने उपेक्षा की है ।  हमें अपने ज्ञान परंपरा को सुरक्षित रखने की सचेष्ट करना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से इसे संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास और संस्कृति भटक रही है।  इसकी रक्षा पर सार्वभौम विचार करने की जरूरत है। आयोग के सहायक निदेशक शहजाद अंसारी ने विषय वस्तु पर विस्तार से प्रकाश डाला। संगोष्ठी में  प्रधानाचार्य प्रोफेसर शंभू लाल वर्मा आगत अतिथियों को शॉल,पुष्प पौधा और पुस्तक देकर सम्मानित किया और कहा कि महाविद्यालय परिवार गावरान कमहसूस कर रहा है कि भारत सरकार तकनीकी शब्दों को संरक्षित करने जैसे  विषयों पर विचार करने के लिए पूर्णिया कॉलेज , पूर्णिया को अवसर प्रदान किया है।  प्रधानाचार्य प्रोफेसर वर्मा ने संगोष्ठी  को सफल बनाने के लिए समन्वयक मनमोहन कृष्ण और सह समन्वयक प्रो सुनील कुमार की भूरि – भूरी प्रशंसा की।  कार्यक्रम का संचालन डॉ सविता ओझा  ने किया। इस अवसर पर पूर्व प्रधानाचार्य प्रोफेसर प्रमोद कुमार सिंह, डॉ सी.के. मिश्रा, डॉ मनीष कुमार सिंह, डॉ. अभिषेक आनंद, डॉ. भरत कुमार मेहर, डॉ. सुमित सिंह, डॉ अंकित विश्वकर्मा, डॉ रामदयाल पासवान, डॉ इश्तियाक अहमद,  श्री राजेश झा, डॉ सीता कुमारी, श्री ज्ञानदीप गौतम, अमृता सिंह, डॉ मुजाहिद हुसैन, डॉ निरुपमा राय, डॉ. पटवारी यादव और डॉ वंदना भारती सहित महाविद्यालय के सभी शिक्षक, शिक्षकेत्तर कर्मचारी और अधिक संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थी।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे तकनीकी सत्र  डॉ नवेंदु शेखर, असिस्टेंट प्रोफेसर, इतिहास अध्ययन केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली  की अध्यक्षता में हुआ। अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर शेखर ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों और विशेषताओं को  विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि यह नीति पहुंच, सामानाता, गुणवत्ता,समर्थता और जवाबदेही को सुनिश्चित करता है।  इस नीति के माध्यम से भारत के शाश्वत ज्ञान को लाने का प्रयास किया गया है।  भारत में शिक्षा की पहचान स्व की भी रही है शिक्षा सत्य और वैज्ञानिकता पर आधारित होनी चाहिए।

इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी शासन शब्दावली को संग्रह करने का प्रयास किया था।  पूर्व प्रधानाचार्य प्रोफेसर प्रमोद कुमार सिंह ने कहा कि पुरानी दस्तावेजों से शब्दों का चयन करें और उसे व्यवहारिक और मानक बनाने में आयोग कम करें। आदिवासियों के बीच से शब्दों का चयन करें,  धार्मिक यात्रा के कई शब्द होते हैं उसे भी संग्रह करना चाहिए। प्रेम की भाषा, भाव की भाषा, सांकेतिक भाषा आदि सभी को संरक्षित करने की आवश्यकता है।उन्होंने पुरातन ज्ञान को प्रकट करने के लिए सरकार की प्रयास की सराहना की।
डॉ भुवन कुमार झा इतिहास विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा कि शब्द का समय के अनुसार परिवर्तन होता है,  हर शब्द की अपनी आत्मा होती है,  शब्द भारत केंद्रित हो मन और विचार के स्तर पर स्वदेश की भावना हो। गुरु के प्रति समर्पण भाव होना चाहिए।  इस तकनीकी सत्र का संचालन डॉ. अंकित विश्वकर्मा ने किया।

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