लॉक डाउन पार्ट2: मध्यम वर्ग की स्थिति बदहाल,केंद्र व प्रदेश सरकार मुखदर्शक।

आर.के.रॉय/संजीव मिश्रा

नई दिल्ली::-जैसा कि सबको पता है समूचे विश्व मे अभी कोरोना महामारी का ख़ौफ़ है ।समूचा भारत भी इसके चपेटे में है । एक दिन की जनता कर्फ्यू के बाद 21 दिन का लॉक डाउन,उसके बाद 15 अप्रैल से पूरे भारत मे लॉक डाउन पार्ट 2 की घोषणा भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में कर चुके हैं जो 3 मई तक समूचे भारत मे लागू रहेगी। स्थिति को देखते हुए 20 अप्रैल को कुछ ढील दी जा सकती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि 21 दिन बीत जाने के बाद और फिर लॉक डाउन पार्ट2 शुरू होने तक अभी तक मध्यम वर्गीय परिवार की क्या दशा है ना तो भारत सरकार ने जानने की कोशिश की और ना ही प्रदेश की सरकार ने । अभीतक किसी ने इन वर्गो पर किसी का ध्यान नहीं गया या जानबूझकर ध्यान दिया नहीं गया। सबसे ज्यादा परेशानियो से तो इन्हीं वर्गों को गुजरना पड़ रहा है।

इस वर्ग के अंदर, छोटे दुकानदार, गैर सरकारी शिक्षक, वीडियो ग्राफर, मीडिया कर्मी,खोमचा वाले, ऑटो वाले, गाड़ी वाले, चालक, मंदिर के पुरोहित,कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारी,चाय पान के दुकानदार , बिहार के 227 संबंद्ध डिग्री महाविद्यालय के शिक्षक व कर्मी जो 2012 से आजतक का अनुदान लंबित है उनकी क्या स्थिति होगी,कल्पना किया जा सकता है । ये हालात केंद्र सरकार के 6 वर्ष एवं बिहार सरकार के लगभग 15 वर्ष के कार्यकाल का देंन है ।


ये लोग 8 से लेकर 15000 की कमाई में किसी तरह से अपना परिवार का भरण पोषण करते हैं। इनको बचत कहा से होगा। अभी लगभग 25 दिन से कोरोना को लेकर आपदा की स्थिति है । ऐसे में इन्हें पैसा न कहीं मिल रहा तो ये अपना भरण पोषण कहा से करेंगे। ये वर्ग तो ऐसे होते हैं कि घर मे भूखे रहेंगे किन्तु किसी को बोलेंगे नहीं । गरीबों की तो सभी मदद कर देते हैं, किन्तु जैसे ही इस वर्ग की बात आती है तो ये लोग भी सोचेंगे ठीक ठाक स्थिति ही होगी,इनको क्या जरूरत ?पर इनको क्या पता कि इनके यहाँ चूल्हा जलने में आफद है। कोई दुकानदार उधारी भी ऐसी स्थिति में ज्यादा देना नहीं चाहेगा। पत्रकार वर्ग कहें या मीडिया वर्ग इसकी स्थिति भी काफी खराब है ।

इस वर्ग को भी ना भारत सरकार ना प्रदेश सरकार से कोई राहत मिला आखिर ऐसा क्यो। कौन नही जानता कि मीडिया कर्मी गरीब व मध्यम वर्ग के श्रेणी में आते हैं। अगर चंद को हम छोड़ दे तो पत्रकार वर्ग गरीब होते हैं। 4 से 6000 तक कि मेहताने में काम करते हैं । कितने तो फ्री में अपना योगदान देते है। क्या सरकार की इनके प्रति कोई जवाबदेही नहीं । प्रदेश सरकार द्वारा बीते सप्ताह बिहार के चुनिंदा 40 पत्रकारो को पेंशन सम्मान निधि योजना का लाभ मिला। कुछ को अगर छोड़ दे तो अधिकांश पटना जिले के पत्रकार को शामिल किया गया । क्या इस आपदा के समय सरकार को पूरे प्रदेश के पत्रकारो चाहे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया,प्रिंट मीडिया, या वेब मीडिया के बारे में नहीं सोचना चाहिये ? सरकार की संवेदना आखिर कहा गयी। दूसरी तरफ ये आज भी जान जोखिम में डालकर अपने रिपोर्टिंग को करते जा रहे हैं। क्या इनके परिवार नहीं है, भगवान ना करें कुछ हो,अगर किसी को कुछ हो जाता है तो देखने वाला कोई है ,किसकी जवाबदेही तय होगी । आजतक सरकार ने इनके लिए एक बीमा पोलोसी तक नही करवाया है । फर्ज कीजिये अगर एक दिन पूरे प्रदेश सहित भारत के मीडिया कर्मी हड़ताल पर चले जाएं तो क्या होगा ?

भारतीय संविधान में मीडिया को चौथा स्तंभ माना गया है और आज विपदा की घड़ी में सरकार द्वारा इन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया है । आखिर सुशाशन की दम भरने वाले सरकार को क्या वस्तु स्थिति दिख नहीं रही है । आये दिन अभी हाल तक रिपोर्टिंग में गए पत्रकारो को पीटा जा रहा है प्रदेश की पुलिस द्वारा। एक तरफ जहां प्रदेश के डीजीपी कहते हैं मीडियाकर्मी इस बंदी से मुक्त है। किंतु उन्ही की पुलिस पत्रकारो पर लाठियां भांज रही है । ऐसे मे पत्रकार वर्ग कैसे काम करेंगे और कैसे जीवित रहेंगे।
क्या डीजीपी साहब ये नहीं जान रहे की उनकी पुलिस बर्बरता पूर्वक आज पत्रकारो के साथ व्यवहार कर रही है। आखिर केंद्र सरकार व प्रदेश सरकार इस स्थिति को देख समझना नहीं चाहती। आज ये वर्ग सरकार की उदासीनता के कारण भुखमरी के कगार पर आ खड़ी हुई है। क्या बिहार सरकार को अभी जो हालात हैं पूरे प्रदेश के पत्रकारो को भी यथा संभव राहत देती, गैर सरकारी शिक्षक, दुकानदार जो राजमर्रा कमाकर अपना जीवन यापन करते उन्हें भी मदद पहुचाते ।

प्रदेश मे इसी वर्ष विधानसभा का चुनाव भी होना है। उम्मीद थी कि लॉक डाउन पार्ट2 अगर शुरू होती है तो सरकार कुछ घोषणाएं मध्यम वर्गीय के लिए भी करेगी ,किन्तु हकीकत में ऐसा कुछ नही हुआ। आखिर ये वर्ग भी तो यही की जनता है । बेहतर होता केंद्र व प्रदेश सरकार इस वर्ग के लिए भी कोई राहत पैकेज की घोषणा करती । क्योकि ये समय की मांग व जरूरत है कि इन्हें राहत की जरूरत है। पत्रकारो पर इसका सीधा असर पड़ रहा है । वो जान जोखिम में डालकर अपने कार्य को कर रहे हैं, किन्तु उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं।
जैसा कि पता है 3 मई तक लॉक डाउन रहेगी, देखना है भारत सरकार व प्रदेश सरकार इस वर्ग के लिए क्या कदम उठाती है ।

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