बाई के झोंक पर चलता बिहार …

बाई के झोंक पर चलता बिहार …जे टी न्यूज़, पटना : पटना के अस्पताल संचालिका सुरभि राज हत्या में उसके पति सहित पांच अन्य लोग गिरफ्तार हुए है, वही आरा जिले में कल एक प्रेमी ने प्रेमिका सहित उसके तीन लोगों को गोली मारकर हत्या कर दी.. दरअसल बिहार की ज्यादातर जनता बाई के झोंक पर चलती है, और ये झोंक कहा झोकाझोकि में तब्दील हो जाये पता नही। व्यक्ति स्वयं के लिये खुशी चाहता ही नही है वो दिन रात इस विचार में रहता है कि कैसे हम दूसरे के ऊपर हावी रहे नतीजन दिमाग का झोंक बढ़ता रहता है। झोकझोकी के खेल को उच्चतम स्तर पर सूखा नशा ले गया है। गांव गांव में अब सूखा नशा इस कदर फैल गया है कि ये बदहवास कब कहा क्या कर दे किसी को नही पता. हथियार गोभी-पालक की तरह कौड़ियों के भाव मे उपलब्ध है। विधानसभा के सत्र लोकसभा के सत्र में यह सवाल नही होते है। सवाल जबाब तोहर पति, तोहर बेटा ..पूरा का पूरा सत्र इन्ही बाद-विवाद में निकाल देना है। रोजाना सड़क दुर्घनाएं में सैकड़ो लोगो की जान बिहार में जाती है उसके उपरांत करोड़ो का मुआवजा वितरण होता है मगर सड़क सुरक्षा जागरूकता के नाम पर कुछ भी नही.. अब DTO शायद ही बिहार के सड़को पर निकलकर आम ट्रक बस की जांच करते है जिसमे चालक के पास वैध लाइसेंस है भी या नही.. बिहार में व्यक्ति की जान खस्सी-बकरी से भी कम हो गया है।

कभी कभार बिहार का आदमी छुट्टी मनाने निकलेगा तो वो भी मंदिर जाएगा और मंदिर में भी वहां जाएगा जहाँ सबसे ज्यादा भीड़ हो, ये भी प्रयास नही रहता है कि मंदिर जाए तो एकाध घंटे स्थिर से आराधना कर सके ।

बिहार में मंदिर से जुड़े कुछ रोचक कहानी है, हर गाँव गाँव 2-4 मंदिर मिलेंगे मगर 95% मंदिर में या तो पुजारी नही है अगर है तो तो बस नाम मात्र के । दस, बीस ,पचास लाख लगाकर अगर मंदिर बना सकते हों तो 5-10 हजार महीने का एक पुजारी रख लीजये जो पूजा पाठ सहित तमाम देखभाल सही से कर सके । दरअसल बिहार में मंदिर भी बाई के झोंक में ही बनता है, वहाँ है तो यहां क्यो नही । आस्था- श्रद्धा झोंक से नही आता है, झोंक से भूत, प्रेत डायन जोगिन आती है ।

बिहार की पहचान लिट्टी चोखा है मगर बिहार के किसी भी जिले के हाइवे से गुजर जाइए रोड किनारे कहि भी आपको आसानी से कोई लिट्टी चोखा बनाते नही मिलेगा, दरअसल सब को झोंक है या तो होटल खोलेंगे नही तो बम्बई, कलकत्ता, दिल्ली जाएंगे ।

झोंक का नतीजा यह है कि लोग मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री को दिन रात गलियाते तो है ही लाइव कार्यक्रम में थुककम फजीहत करते है. JNU के गलियारों में रहनेवाले एक जनकवि थे रामशंकर यादव जी वो कहते थे कि “आसमान में धान बो रहा हूँ” यहां सचमुच में जनता आसमान में धान बो रही है पिछले 30-35 साल से .. 2014 के चुनावी आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी के सभा मे दिन ही बिहार के वर्तमान एक मंत्री जी रैली कर गये और उनकी खबर अखबारों में थोड़ी कम आयी तो स्थानीय एक अखबार के कार्यलय में जाकर तोड़फोड़ कर आये । झोंकाझाँकी बिहार की संस्कृति बन चुकी है, भोज भात में भी हो हो करके मिठाई, दही खिलाने के बात हो या झोंका झोंकी करके दही-हल्दी लगाने का हो .

ललुआ, नीतीशवा, मोदिया, अफसरवा, फलनवा, ढिकनवा, कहनेवाले और गलियानेवाले लोग बहुतयात है बिहार में जो 30-40 साल से यही कर रहे है, ये आज भी कालीचरण के डायलॉग रट्टा मार के रखे हुये खुद को सब के सब सरकार समझते है। मगर सरकार होना और सरकार समझना दोनो में अंतर है।
इस बाई के झोंक की प्रवृत्ति को बदलने की जरुरत है उसके लिए 2025 में एक सुलझे पढ़े लिखे लोग को नेतृत्व करने की जरूरत है इसके लिए सबसे उपयुक्त आदरणीय श्री आर सी पी सिंह जी है जिनके पास हर तरह का कार्य करने का अनुभव है ॥
लेखक :- आशीष रंजन सिंह राजनीतिक चिंतक

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