साईकिल की यादें — रमेश चंद शर्मा

साईकिल की यादें —रमेश चंद शर्मा जे टी न्यूज सुबह कार्यालय, बाजार के समय में चलने वाली साईकिलों के रेले में कभी-कभी शामिल होना ज्यादा कारगर नजर आयाI साईकिल के सहारे संदेश, क्रांति की आवाज का बिगुल बजाना अच्छा लगाI
दिल्ली उस समय साईकिल का शहर थाI साईकिल दिल्ली की जीवन रेखा थीI हर आयु का व्यक्ति इसका उपयोग करता थाI टोकन, बिना टोकन के खूब साईकिल चलती, दौड़ती रहती थीI साईकिल आने-जाने के साधन के साथ-साथ, व्यापार के काम भी आती थीI साईकिल आर्थिक गतिविधियों में भी अपनी भूमिका निभा रही थीI साईकिल कम खर्च में, स्वावलंबी साधन रहा हैI अपनी मर्जी से जब चाहो तब उठाकर चल दोI ऐसे गुण होते हुए भी साईकिल दिल्ली से गायब सी हो गई, क्योंI
जिनके पास अपनी साईकिल नहीं होती वो भी दिल्ली में किराये की साईकिल लेकर चला सकते थेI गली, मोहल्लों में किराये की साईकिल मिलती थीI घंटों के हिसाब से किराया लगता थाI जितना समय उतना पैसाI छोटी साईकिल भी किराये पर मिलती थीI इसके लिए आप आसपास में रहते है पहचान के लिए इतना ही काफी थाI बच्चे भी किराये की साईकिल लेकर गली मोहल्लों में खूब चक्कर लगाते रहतेI जगह-जगह साईकिल की मरम्मत करने वाले, पंक्चर लगाने वाले, सड़क के किनारे बैठे रहते थेI
अपन ने साईकिल बचपन में ही गाँव में ही चलानी सीखीI गाँव में गिनीचुनी साईकिल होती थीI हमारे पास एक फिलिप्स की भी साईकिल थी जिसका फ्राईवल बड़ा था जिससे अन्य साईकिलों से कम शक्ति लगानी पड़ती थीI दिल्ली में हम बच्चें मिलकर घुमने का कार्यक्रम बनाते तो कई दिन पहले से योजना बनती, तैयारी की जातीI क्या-क्या सामान साथ रखना है उसकी सूची बनती जिसमें नाश्ता, पानी, डंडा, हॉकी, साईकिल में हवा भरने वाला पम्प, पंक्चर लगाने का सामान, कुछ औजार साथ रखतेI पुरानी दिल्ली, चार दीवारी दिल्ली से बाहर होते ही सुनसान नजर आता थाI दूर-दूर तक कुछ भी नजर नहीं आता थाI बस सेवा, वाहन का आना जाना बहुत सीमित होता थाI कल का घोड़ा लेख पढ़ने के बाद भाई श्री एस एस नेहरा, एडवोकेट सर्वोच्य न्यायालय का फोन आया और उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी श्री बीजू पटनायक जी, पूर्व मुख्य मंत्री उड़ीसा का एक साईकिल से जुड़ा मजेदार प्रसंग सुनायाI बीजू साहब ने अंग्रेज सरकार के विरुद्ध कदम उठायाI उन्हें लगा अब पकड़ा जाना तय हैI इससे बचने के लिए उन्होंने साईकिल का सहारा लियाI उन्होंने अपनी साईकिल उठाई और उड़ीसा से लाहौर की यात्रा शुरू कर दीI साईकिल चलाते-चलाते लाहौर पहुँच गएI स्वाभाविक है रास्ते में साथियों से संपर्क, संवाद, बातचीत, चर्चा तो हुई ही होगीI देश दर्शन का भी लाभ मिला होगाI देश, समाज का काम करने के लिए केवल मरना ही नहीं होता, बल्कि सही सेवा करने के लिए जीना होता हैI देश के लिए, समाज के लिए कुछ सकारात्मक सोच के साथ, त्याग, तपस्या करनी होती हैI टकराने की हिम्मत जुटानी पडती हैI कष्ट उठाना पड़ता हैI जोखिम उठानी होती हैI सत्य, अहिंसा, समझदारी से बड़ा काम संभव हैI उनकी हिम्मत, साहस, सोच को सलामI उस समय जब सड़कें कैसी थी, सुविधाएँ कैसी रही होगी, जंगल, सुनसान रास्तों पर साईकिल पर अकेला इंसान चला जा रहा हैI अपनी मौज मस्ती में देश, समाज के प्रति अपना दायित्व निभाने की धुन में ‘बिन सोचे परिणाम रे, कायर का नहीं काम रे भाई कायर का नहीं काम रेI’
साईकिल की बात चल रही है तो बाबा आमटे जी के नेतृत्व में कन्याकुमारी से कश्मीर और उत्तरपूर्व से पश्चिम में द्वारका तक भारत जोड़ो साईकिल यात्रा को कैसे भुलाया जा सकता हैI जिनमें कहीं ना कहीं अपन को भी जुड़ने का अवसर मिलाI ऐसे समय पर मदुराई से मद्रास(चेन्नई) तक हुई साईकिल यात्रा जिसका आयोजन तमिलनाडु सर्वोदय मंडल ने किया था जिसमें भाई डॉ अन्नामलाई, डॉ राजा के साथ अपन भी शामिल हुए थे कि याद ताजा हो गईI
भाईजी सुब्बाराव ने भी सद्भावना रेल यात्रा में साईकिलें साथ रखवाई थी। स्थानीय आवागमन, रैली में इनका भरपूर उपयोग किया गया।
रेल में साईकिल का अपना ही आनंद। पहले जो शाहदरा सहारनपुर रेल चलती थी। उसमें दूधिया गांव-गांव से साईकिल पर दूध लेकर आते स्टेशन पर साईकिल रखते और दिल्ली दूध पहुंचाते थे। वहां भी साईकिल रखते थे। कभी-कभी तो ऐसा देखने को मिला कि ट्रेन छूट गई तो ट्रेन के अगल-बगल साईकिल चलाते और मौका पा कर साईकिल छोड़ रेल पर लटक जाते। यह ट्रेन की गति मंदी भी रहती थी। दूसरा रेलवे कर्मचारियों को दूधिया मुफ्त में दूध देते थे। दूधियाओं का ख्याल, ध्यान वे भी रखते थे।
अनेक युवा साथी आजकल भी देश में, दुनिया में साईकिल यात्रा करते है, कर रहे हैI महाराष्ट्र के युवा साथी श्री द्यान येवतकर पिछले कुछ सालों से शांति चक्र विश्व यात्रा पर चल रहे है अभी तक अनेक देशों का दौरा पूरा कर चुके हैI कई बार साईकिल टूटी, चोरी हुई, सामान चोरी हुआ, दुर्घटना भी हुई मगर हिम्मत के साथ अभी भी कदम बढ़ा रहे हैI यात्रा से पूर्व वे दिल्ली अपन से मिलकर बातचीत करके गएI अपनी शुभकामनाएं, आशीर्वाद, स्नेह उनके साथ हैI हिम्मत से पतवार संभालों फिर क्या दूर किनारा।

Related Articles

Back to top button