श्रद्धांजलि संदेश वो नेता जिसने गोलियों की बौछार के बीच अंग्रेजों का झंडा उतार कर तिरंगा झंडा फहरा दिया था

श्रद्धांजलि संदेश वो नेता जिसने गोलियों की बौछार के बीच अंग्रेजों का झंडा उतार कर तिरंगा झंडा फहरा दिया था जे टी न्यूज, लुधियाना:
कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत जी को उनकी 17 वीं पुण्यतिथि पर क्रांतिकारी नमन
आज, कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत की पुण्यतिथि पर, हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। वे न केवल भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के एक मजबूत स्तंभ थे, बल्कि एक महान देशभक्त, सच्चे किसान नेता और संघर्षशील योद्धा भी थे।
कामरेड सुरजीत ने 14 वर्ष की आयु में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध विद्रोह किया, साल1932, दिन था 23 मार्च, शहीद भगत सिंह का पहला शहादत दिवस. क्रांतिकारी धड़े ने पंजाब में कचहरियों पर तिरंगा झंडा फहराने का प्लान बनाया. लेकिन इस प्लान की खबर अंग्रेज़ी हुकूमत को लग जाती है. इसके बाद पंजाब में अंग्रेजी सेना ने जिलेवार मोर्चा संभाल लिया. क्रांतिकारी नेताओं ने एक सीक्रेट मीटिंग बुलाई, जिसमें अंडरग्राउंड होने की बात कही गई. लेकिन उस मीटिंग में 16 साल का नौजवान कामरेड हरकिशन सिंह सुरजीत पीछे हटने को तैयार नही हुए.
नेताओं ने उन्हें समझाया भी और गोली लगने का डर भी दिखाया. लेकिन नौजवान सुरजीत किसी की भी सुनने को तैयार नहीं थे. वहां मौजूद एक संघर्षील नेता उनसे कहा कि हम तो डरपोक हैं और तुम ज्यादा बहादुर हो तो जाओ खुद ही फहरा लो झंडा. नौजवान कामरेड सुजीत का उबाले मार रहा खून कहां शांत होने वाला था. उन्होंने झंडा अपने कुर्ते में छुपा लिया और झंडा फहराने कचहरी पहुंच गए. वहां तैनात अंग्रेजी सेना को चकमा देकर झंडा फहराने कचहरी की छत पर चढ़ने लग गए. नीचे खड़े अंग्रेज़ी पुलिस ने उन पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. लेकिन एक भी गोली छू तक ना सकी. कामरेड सुरजीत ने यूनियन जैक के झंडे को उतारकर फेंक दिया. और देखते ही देखते तिरंगा झंडा फहराकर भाग गए. कुछ दिन बाद उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार हुए नौजवान कामरेड हरकिशन सिंह सुरजीत को अगले दिन कोर्ट में पेश किया गया. कोर्ट में जज ने उनका नाम पूछा, नौजवान सुरजीत ने इत्तेफाक से जवाब दिया,
“मेरा नाम लंदनतोड़ सिंह हैसाल 1972, पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ में लोगों का एक जत्था बढ़ रही महंगाई के खिलाफ कूच करता है. सूबे के नए मुख्यमंत्री बौखला जाते हैं और प्रदर्शनकारियों से सख्ती से निपटने के आदेश दे बैठते हैं. जैसे ही उनका आदेश आया पुलिस ने लट्ठ बरसाने शुरू कर दिए. लेकिन लोग फिर भी पीछे नहीं हटे. पीछे हटते भी कैसे, उनके साथ खड़े थे लंदनतोड़ सिंह यानी कामरेड हरकिशन सिंह सुरजीत. जब लाठीचार्ज से बात नहीं बनी तो करीब 250 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तार किए गए सभी लोगों को बुड़ैल जेल में डाल दिया गया.गिरफ्तार हुए लोगों में उनके नेता हरकिशन सुरजीत भी शामिल थे. उस समय उनके साथ जेल में बन्द रहे कामरेड रघु उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं, कि किसी अफसर ने जैल सिंह को खबर भिजवाई कि जल्दी कुछ करें, कामरेड सुरजीत तो यहां जेल को यूनिवर्सिटी बना रखा है. सारा दिन ये कैदी पढ़ते रहते हैं. कामरेड सुरजीत इनका प्रोफेसर बना हुआ है. हमारा ही राशन खाकर हमारे ही खिलाफ नाटक खेलते हैं, गाने गाते हैं. इनको जेल में डालकर कुछ नहीं होने वाला जल्दी कुछ करें.”
इसके बाद कामरेड सुरजीत के पास के जैलसिंह ने पुलिस वाले के हाथ 1 लाख रुपये का आफर भिजवाया. पुलिस वाले ने उनके पास आकर कहा, ये 1 लाख रुपये ले लो हम आप सभी को जेल से भी छोड़ देंगे. लेकिन बाहर जाकर आप धरना मत करना.”
ये सुनते ही उनके माथे की तियोरियां चढ़ गई और संदेशा लेकर आए पुलिस वाले को बड़ी तल्खी से कहा, जेलसिंह को पता होना चाहिए कि सुरजीत का जमीर बिकाऊ नहीं है, जो इन नोटों की गड्डियों से खरीदा जाए. जाओ, उनको कह देना सुरजीत टूटने वाला नहीं है. वो महंगाई की कमर तोड़कर ही दम लेगा पुलिस वाला बेचारा छोटा सा मुंह लेकर वहां से जाता रहा. हम उनके साथ तब ढाई महीने बन्द रहे. एक कमाल की बात ये थी कि वे 24 घण्टे में सिर्फ 5 या 6 घण्टे ही सोते थे. उनका ज्यादातर समय पढ़ने-लिखने और अपने दूसरे साथियों को पढ़ाने में बीतता था. वे हमें अकसर कहते थे,
“मैं तो सिर्फ मैट्रिक तक ही पढ़ा हूं, फिर भी दिन भर लोगों को पढ़ाने में लगा रहता हूं.आप लोग तो ग्रेजुएट हो,पढ़े लिखे हो. अपने फ़र्ज़ को समझो. जब तक यहां जेल में हो अपने दूसरे अनपढ़ या कम पढ़े लिखे साथियों को पढ़ाना शुरू करो। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर भारत में किसानों के अधिकारों और वर्ग संघर्ष की हर लड़ाई में उनका योगदान अमूल्य था। वे लंबे समय तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव रहे और अखिल भारतीय किसान सभा के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। पंजाब की क्रांतिकारी धरती से उन्हें लाल सलाम इस्तकबाल करता है सोनू गुप्ता आजाद
उनका जीवन हमें सिखाता है कि संगठन, विचार और संघर्ष ही बदलाव का एकमात्र रास्ता है।
आज, जब देश की जनता कॉर्पोरेट-समर्थक नीतियों का शिकार हो रही है, कॉमरेड सुरजीत के विचार और उनके रास्ते और भी प्रासंगिक हो गए हैं। कॉमरेड सुरजीत को लाल सलाम!
हम सबकी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि जनांदोलनों के माध्यम से अपनी विरासत को आगे बढ़ाएँ। ✊*भारत की जनवादी नौजवान सभा(DYFI) पंजाब

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