दीपोत्सव में बुलडोज़र! : राजेंद्र शर्मा
दीपोत्सव में बुलडोज़र! : राजेंद्र शर्मा*

जे टी न्यूज
रात के तीसरे पहर में, अचानक आदित्यनाथ की आंख खुल गयी। बेशक, नींद भी उन्हें भगवा वेश में ही अच्छी आती थी, लेकिन नींद कहां कोई वेश देखती है। सो अच्छे खासे योगी के आसन से खिसक कर, साधारण मनुष्यों की योनि में आ पड़े थे। ऊपर से बीच रात में नींद खुलने की दुर्घटना।
फिर भी आदित्यनाथ ने नींद को वापस बुलाने की कोशिश में आंखें और कस के बंद कर लीं। पर सुख शैया के बगल से आती कदमों की-सी आवाज ने उनकी चिंता जगा दी। शयनागार में कोई है, क्या? एनकाउंटर वालों के भूत क्या अब शयनागार तक पहुंच गए, योगी को परेशान करने के लिए।
फिर खुद को तसल्ली देने की कोशिश करने लगे– मुसलमानों के भूत थोड़े ही होते होंगे! पर तभी लगा कि कोई उनके सिर पर हल्के-हल्के हाथ फेर रहा है। एकदम हड़बड़ा कर उठकर बैठ गए। पर आंखें एक ही झटके में खुलीं और फटी की फटी रह गयीं। और कोई नहीं, साक्षात लक्ष्मी जी उनके आवास पर पधारी थीं और सिर पर हाथ फेरकर बिन मांगे आशीर्वाद जैसा दे रही थीं।
आदित्यनाथ के हाथ खुद ब खुद लक्ष्मी जी के चरणों की ओर बढ़े, पर सहसा उन्हें अपने भगवा वेश का ध्यान आ गया और रुक गए। योगी कैसे किसी के पांव छू सकता है? दूर से ही हाथ जोड़ दिए– माते मेरे धन्यभाग्य, जो आपने स्वयं दर्शन दिए और वह भी दीपावली पर। मेरी दीवाली सार्थक हो गयी। सेवक के लिए कोई आज्ञा, आदेश? आपने क्यों कष्ट किया और वह भी आधी रात में। आप का तो बस इशारा करना काफी था, सेवक आज्ञा पूरी कर देता। गोरख पीठ की गद्दी जरूर संभालता हूं, लेकिन पुराने टाइप का गोरखपंथी नहीं हूं। हिंदू देवी-देवताओं के लिए मेरे मन में पूरा सम्मान है। तभी तो अयोध्या में रामलला की वापसी से शुरू कर के, मोदी जी के नेतृत्व में राम-राज्य लाने में लगा हूं। अब तो हम हिंदुओं से भी आगे बढ़कर, सनातनी हैं बल्कि सनातनियों के बाबा। आप तो बस आदेश करे

पर लक्ष्मी जी को कुछ खटक रहा था। पांव नहीं छुए न सही, पर स्वागत में भी जुमलेबाजी! फिर भी खुद को समझा लिया– त्योहार के मौके पर कोई नेगेटिविटी नहीं! कहने लगीं– आज्ञा-वाज्ञा कोई नहीं है। मैं तो वैसे ही चली आयी, तुम लोगों की दीवाली देखने। तुम्हारी अयोध्या की दीवाली के किस्से अब स्वर्गलोक तक में सुनाए जा रहे हैं। दूसरे देवी-देवता मुझसे ईर्ष्या भी महसूस करने लगे हैं। कहते हैं कि मोदी-योगी के नये भारत में कहने को तो हिंदू राज है, पर मौज सिर्फ एक देवता और एक देवी की है। एक रामलला, जिनकी पांच सौ वर्ष के वनवास के बाद घर वापसी हुई है। और एक ये लक्ष्मी जी, जिनकी दीवाली साल दर साल नये वर्ल्ड रिकार्ड बना रही है और पुराने तोड़े जा रही है। बाकी सब तो बस ये भी हैं में भुगताए जा रहे हैं। सो मैंने सोचा, मैं भी जाकर इस बार जरा नजदीक से तुम्हारा दीपोत्सव देख लूं।
अब आदित्यनाथ का सनातनी योगी पूरी तरह से जागृत हो गया और सीएम सो गया। बखान करने लगे कि वैसे तो नौ साल से हर दीपोत्सव आप की कृपा से खास ही रहा है, पर इस बार का दीपोत्सव सबसे बढक़र है। इस बार 26 लाख दिए एक साथ अयोध्या के 56 घाटों पर जलाए जाएंगे। 26 लाख दियों के लिए, 55 लाख बातियां रहेंगी यानी हर दिए में दो बातियां। एक दिया, दो लौ। 33 हजार वालंटियर दिए लगाने के लिए जुटाए गए हैं। दूर-पास के सब स्कूल, कालेज, विश्व विद्यालय बंद करा दिए गए हैं और छात्र इस असली पढ़ाई में लगाए गए हैं। देवी को प्रसन्न करने के लिए बलिदान भी तो जरूरी है।
वैसे भी इस बार, अयोध्या में दीवाली का जश्न एक दिन नहीं, दो दिन नहीं, पूरे चार दिन चलेगा। दीपोत्सव होगा सो होगा, लेज़र शो भी होगा। विशेष आरती भी। और भी बहुत कुछ। दो दिन पहले से, एक दिन बाद तक, हफ्ते भर टीवी पर यही, यही रहेगा। सारी दुनिया देखेगी। स्वर्ग लोक तक कुछ न कुछ प्रसारण तो पहुंचेगा ही। खैर! आप तो अयोध्या चलकर सब अपनी आंखों से देख लें। और हां! एक बात तो बताना ही भूल गया, 26 लाख दीयों में हम 73,000 लीटर तेल का उपयोग करेंगे।

पर अयोध्या जाने का वचन देने के बजाए, लक्ष्मी जी तेल वाली बात से दुविधा में पड़ गयीं। कुछ सोच-विचार के बाद बोलीं – बाकी तो सब बड़ा ही भव्य और दिव्य है। बस तुम्हारे अयोध्या वाले दीपोत्सव में एक ही बात खटकने वाली है। वो जो दीवाली के अगले दिन गरीब वयस्क तो वयस्क, छोटे-छोटे बच्चे भी जले हुए दियों में बचा हुआ तेल, प्लास्टिक की बोतलों में इकठ्ठा करते हर दीपोत्सव के बाद कैमरों में दर्ज हो जाते हैं और खुश हो-होकर बताते भी हैं कि इस तेल से उनके घर पर कितने दिन भाजी-तरकारी बनेगी, उससे मुझे दुख होता है। योगी ने अधीर होकर कहा – पर प्राब्लम क्या है? उतना तेल मेरी तरफ से गरीबों के लिए दीवाली गिफ्ट समझ लीजिए। वो भी क्या याद रखेंगे!
लक्ष्मी जी समझाने लगीं, ये बहुत बैड पब्लिसिटी है। तुम्हारी ही नहीं मेरी भी। बाकी देवी-देवता ताने मारते हैं – दीवाली पर एक दिन कृपा बरसायी जा रही है और वह भी न जाने कहां पर ; आम पब्लिक तो सूखी की सूखी रह जाती है।
योगी जी को बात समझ में आयी। बोले– यह तो मेरे ध्यान में आया ही नहीं। पर क्या करें? ऐसा करते हैं कि कैमरे वालों की नकेल और टाइट कर देते हैं। सिर्फ दीपोत्सव दिखाएं, उसके बाद वाला तेल संग्रहोत्सव नहीं। लक्ष्मी जी ने आशंका जतायी – यह सख्ती काम करेगी, लगता नहीं है। कहीं न कहीं से तस्वीर निकल ही आएगी। योगी जी ने कहा – मेरे पास उसका उपाय है। हम सख्ती का लेवल और ऊंचा कर देंगे। दीपोत्सव के बाद फोटोग्राफरों को अयोध्या के घाटों पर फटकने ही नहीं देंगे। सैटेलाइट से तो दियों से तेल इकठ्ठा करते बच्चे दिखाई नहीं ही देंगे। न खिंचेगी फोटो, न किसी को दिखेगा तेल संग्रहोत्सव!
लक्ष्मी जी फिर भी आश्वस्त नहीं दिखाई दीं, तो योगी जी ने सख्ती का आइडिया और सख्त कर दिया। कहने लगे, दीपोत्सव के फोटो वगैरह खिंचने के फौरन बाद, अयोध्या में कर्फ्यू लगा दें तो। न कोई घर से बाहर निकलेगा और न कोई दियों का तेल इकठ्ठा करेगा!

लक्ष्मी जी ने समझाने की कोशिश की – इससे तो आसान है कि दिए चाहे छह लाख कम जलाएं, पर उतने दियों का तेल अयोध्या के गरीबों को सीधे रसोई में उपयोग के लिए बांट दें। आपकी तरफ से दीवाली गिफ्ट भी हो जाएगा और आपके दीपोत्सव पर हर बार लगने वाला दाग भी मिट जाएगा। योगी जी चिंहुक के बोले– और वर्ल्ड रिकार्ड का क्या? दिए तो 26 लाख ही जलेंगे और तेल भी 75 हजार लीटर। वर्ल्ड रिकार्ड पर अपना दावा हम हर्गिज नहीं छोड़ सकते, वर्ना हम विश्व गुरु कैसे बनेंगे। वैसे भी हम मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के खिलाफ हैं और यूपी में चुनाव भी अभी दूर हैं। पर आपकी बात भी ठीक है, तेल संग्रहोत्सव को रोकने के उपाय करना भी जरूरी है। वैसे शहर में कर्फ्यू से भी कम खर्चीला, फिर भी ज्यादा कारगर उपाय भी मेरे दिमाग में आ रहा है। दीपोत्सव का रिकार्ड बनने के फौरन बाद, बुलडोजर चला कर सारे दीयों को मिट्टी में मिला देते हैं। न रहेंगे दिए और न होंगे दियों से तेल इकठ्ठा करने वाले।
बुलडोजर शब्द जुबान पर आते ही, आदित्यनाथ के शरीर में जोश की कंपकपी दौड़ गयी और नींद सचमुच खुल गयी। एक मिनट तो उन्हें यह समझने में लगा कि लक्ष्मी जी सपने में ही उनके पास आयी थीं। फिर फौरन अपने मुख्य सचिव को नींद से उठवाकर फोन पर आदेश दे दिया – सारे बुलडोजर अयोध्या की ओर कूच करें!
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)*
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*2. विकास ही विकास, एक बार चुन तो लें! : विष्णु नागर*
एक वीडियो- पत्रकार चुनाव कवरेज के लिए बिहार के लखीसराय के किसी गांव में पहुंचा। उसने एक बुजुर्ग से पूछा — ‘विकास पहुंचा है आपके गांव में?’ वह बोले — ‘विकास? हम नहीं थे यहां सर। बीमार थे। डाक्टर के यहां गए थे।’
तो बंधुओं-भगिनियों समझे कुछ? तुम्हारा-हमारा यह बेहद लोकप्रिय-सा ‘विकास’ शब्द के रूप में भी आज तक ठीक से बिहार नहीं पहुंचा है। पटना से 130 किलोमीटर दूर भी नहीं जा सका है। ‘विकास’ का नाम सुनते ही आज भी कोई बुजुर्ग डर जाता है, यह अपने-आप में हौलनाक है। उसे ‘विकास’ शब्द सुनकर उस ‘विकास’ की याद नहीं आती, जिसे पहुंचाने में प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी बताते हैं कि दिन-रात लगे रहते हैं, जिसके लिए 18-18 घंटे काम करते रहते हैं, साल में एक दिन की भी छुट्टी नहीं लेते हैं, तोहफे पर तोहफे बांटते चले जाते हैं और जिस ‘विकास ‘ की जिम्मेदारी लेने के लिए अभी पटना में टिकट की भयंकर मारामारी मची। और जो मारामारी कर रहे थे, सबको अपने लिए नहीं, बल्कि बिहार के ‘विकास’ के लिए टिकट चाहिए था। जिन्हें भाजपा या कांग्रेस या राजद आदि से टिकट नहीं मिला, वे बेहद दुखी थे और जो टिकट मिलने के बाद भी हार जाएंगे, वे बाद में दुखी पाएंगे, क्योंकि ऐड़ी-चोटी का जोर लगाने के बावजूद उन्हें ‘बिहार के विकास’ का सुनहरा अवसर नहीं मिल सकेगा। एक बार जिसे भी ‘विकास’ की चाबी मिल जाती है, तो फिर उसे अपना विकास ही, देश और प्रदेश का ‘विकास’ लगने लगता है। ‘विकास’ करने से जिंदगी भर का खाने-पीने का इंतजाम हो जाता है और अगली बार टिकट मिलने की संभावना बेहद बढ़ जाती है!
जब टिकट नहीं मिलता है, ‘विकास ‘ करने का अवसर नहीं मिलता है, तो सुबह तक जो पार्टी का अनुशासित सिपाही था, वह शाम होने से पहले विद्रोही हो जाता है। कफ़न ओढ़कर अपनी जान देने की धमकी देते हुए अपना विडियो जारी करवाता है और उसकी पत्नी आराम से उसकी बगल में बैठी हुई मिलती है कि पतिदेव टिकट के लिए बलिदान भी हो जाएं, तो उसे कोई समस्या नहीं! दुनिया इन्हें भी भगत सिंह की तरह याद रखेगी!
उधर एक और साहब को टिकट नहीं मिलता है, तो वे कार में रुदन करने का विडियो बनवाते हैं। ‘विकास-विकास’ रोते हैं! तो जो ‘विकास’ अब तक पुल आदि के गिरने के रूप में हुआ है, वह इन जैसों के हित में ही हुआ है। पुल का पहली बार बनना भी ‘विकास ‘ था और उसका गिरना भी ‘विकास’ है और फिर दुबारा बनना भी ‘विकास’ होगा और कभी तीसरी बार भी गिर गया, तो वह ‘सुपर विकास’ होगा!

उधर लखीसराय जिले का ग्रामीण समझता रहेगा कि ‘विकास’ कोई बला है और ये साहब जो ‘विकास’ के पहुंचने की इन्क्वायरी करने आए हैं, असल में सादी वर्दी में पुलिस के दरोगा हैं। ये चोर और बदमाश ‘विकास’ को पकड़ने आए हैं। वह साफ-साफ कहता है कि वह तो गांव में था ही नहीं , डाक्टर को दिखाने गया था। हो सकता है, वह वाकई गया हो या न गया हो, मगर वह इस बुढ़ौती में दरोगा के झंझट में पड़कर अपनी रही-सही ज़िंदगी बर्बाद करना नहीं चाहता! उसने ‘विकास’ को भले न देखा हो मगर इन दरोगाओं और साहबों को बहुत बार, बहुत तरह से देखा है। वह इनसे डरने लगा है। वह जानता है कि ये जब भी आते हैं, तो किसी न किसी को फांसने आते हैं, इसलिए वह इनसे न कहना ही बेहतर समझता है! हां कहने में खतरा है! पूछताछ के लिए पता नहीं ये कहां ले जाएं और न जाने किस-किस तरह से उसकी मिट्टी पलीद करें! फिर वह नहीं, उसकी लाश लौटे या वह भी न लौटे!ग्रामीण भारत में अब भी अनेक बार संवाददाता को सरकारी अफसर समझ लिया जाता है, क्योंकि संवाददाता पांच साल में एक बार चुनाव के समय आता है, मगर अफसर कुछ न कुछ काला-पीला करने अकसर आते हैं। जो भी मिल जाए, झटककर ले जाते हैं।
सुनो मोदी जी और सुनो नीतीश जी और सुनो तेजस्वी यादव जी और लालू जी आप भी! यह जो बिहार का ‘विकास-विकास’ आप लोग दिन-रात शोर मचाए रहते हो, आपस में झगड़ते हो कि ‘विकास’ हमने किया, इन्होंने नहीं किया! हम अब फिर से करेंगे ‘विकास’, बिहार को नंबर वन बना देंगे, आपका यह ‘विकास’ अभी तक गांव के बुजुर्ग को डराने की हद तक ही पहुंच सका है। ‘विकास’ ‘नाम उसके लिए किसी गुंडे-बदमाश का पर्याय है।
इसी ‘विकास’ की राह आसान करने के लिए चुनाव आयोग ने बिहार में एस आई आर करवाया है। जो गड़बड़ियां नहीं थीं, उन्हें संभव करवाया है। यह वही ‘विकास’ है, जिसे संभव करने के लिए अडानी जी हर दिन आतुर रहते हैं और हर दिन नये-नये ठेके प्राप्त करते रहते हैं और बैंकों में देश के साधारण जनों की जमा हजारों करोड़ रुपए से ‘विकास’ के नाम पर ऋण लेते रहते हैं। जिनके लिए लाखों पेड़ों से हरे-भरे जंगल को परती भूमि बता दिया जाता है और इन पेड़ों को काटने का अधिकार दे दिया जाता है और पर्यावरण संरक्षण कानून से छूट दे दी जाती है।
इतना अधिक ‘विकास’ हुआ है बिहार का कि आज भी मुसहर चूहे खाकर गुजारा कर रहे हैं! आज भी राशनकार्ड पर राशन वाला पांच लोगों के कार्ड पर एक का राशन खुद खा जा रहा है। इतना ‘विकास’ हुआ है बिहार का कि वहां इतने ज्यादा ‘घुसपैठिये’ आ गए हैं कि बिहारी गरीब को रोजी-रोटी के लिए दिल्ली से केरल तक जाना पड़ रहा है! फिर भी ‘विकास’ तो करना है। ‘विकास’ नहीं करेंगे, तो कमीशन से अपनी झोली कैसे भरेंगे! झोली नहीं भरेंगे, तो ख़ुद को और पार्टी को कैसे चलाएंगे और खुद को और पार्टी को नहीं चलाएंगे, तो अपनी राजनीति कैसे चलाएंगे और राजनीति नहीं चलाएंगे, तो देश ठप हो जाएगा, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? विष्णु नागर जी आप लेंगे?

*(कई पुरस्कारों से सम्मानित विष्णु नागर साहित्यकार और स्वतंत्र पत्रकर हैं। जनवादी लेखक संघ के उपाध्यक्ष है।)*
 


