कूचबिहार से कमरहाटी तक आंसुओं और संघर्ष का सफर

सलीम और मीनाक्षी की अगुवाई में 'मिनी ब्रिगेड' बना दीवानपाड़ा मैदान

कूचबिहार से कमरहाटी तक आंसुओं और संघर्ष का सफर

सलीम और मीनाक्षी की अगुवाई में ‘मिनी ब्रिगेड’ बना दीवानपाड़ा मैदान

जे टी न्यूज, दुर्गापुर/कोलकाता:
क्या किसी राजनीतिक यात्रा में इतनी भावनाएं उमड़ सकती हैं? आज कमरहाटी के दीवानपाड़ा मैदान में खड़े होकर यह सवाल पूछना लाजिमी हो गया। उत्तर बंगाल के सुदूर कूचबिहार से शुरू हुई ‘बंगाल बचाओ यात्रा’ जब आज कोलकाता के উপকठ कमरहाटी में थमी, तो लगा जैसे पूरा बंगाल अपने दर्द और गुस्से को लेकर यहाँ सिमट आया है।

मीलों चला संघर्ष, चेहरे पर थकान नहीं – उम्मीद की चमक*
माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य मो. सलीम* और युवा दिलों की धड़कन मीनाक्षी मुखर्जी* के नेतृत्व में जब यह काफिला दीवानपाड़ा की ओर बढ़ा, तो दृश्य देखने लायक था। १,००० किलोमीटर से अधिक का सफर तय करने के बाद भी इन नेताओं और हजारों कार्यकर्ताओं के चेहरों पर थकान की एक लकीर नहीं थी। थी तो बस एक जिद—बंगाल को बचाने की जिद।

कूचबिहार से जिस मशाल को जलाया गया था, आज कमरहाटी में वह दावानल बन चुकी थी। सड़कों के दोनों ओर खड़े आम नागरिक, जिन्हें शायद राजनीति से कोई लेना-देना नहीं, वे भी आज लाल झंडे को देखकर हाथ हिला रहे थे, कुछ की आँखों में नमी थी। शायद उन्हें मीनाक्षी मुखर्जी की उस हुंकार में अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित दिख रहा था, या मो. सलीम की संजीदा बातों में अपने खोए हुए अधिकारों की गूँज सुनाई दे रही थी।

मैदान छोटा पड़ गया जज्बातों के आगे*
स्थानीय लोग कह रहे हैं कि दीवानपाड़ा मैदान ने आज अपनी क्षमता से कई गुना ज्यादा भार उठाया। भीड़ इतनी थी कि तिल रखने की जगह नहीं बची। इसे ‘मिनी ब्रिगेड’ कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह भीड़ किराए की नहीं थी, यह उन माताओं की भीड़ थी जो रोजगार मांग रही हैं, उन छात्रों की भीड़ थी जो शिक्षा मांग रहे हैं।

मो. सलीम ने जब मंच से कहा, यह यात्रा खत्म हुई है, लेकिन लड़ाई आज से शुरू हुई है,”* तो पूरा मैदान गूँज उठा। वहीं मीनाक्षी मुखर्जी ने भीड़ की आँखों में आँखें डालकर कहा, हम डरने वाले नहीं हैं, हम झुकने वाले नहीं हैं। कूचबिहार की मिट्टी की कसम, हम बंगाल का गौरव लौटा कर रहेंगे।”*

*एक पत्रकार का नज़रिया*
दुर्गापुर से कोलकाता तक की नब्ज को टटोलते हुए, मैंने (शंकर पाल) आज जो देखा, वह अभूतपूर्व है। लाल झंडा, जिसे कई लोगों ने इतिहास मान लिया था, आज वर्तमान बनकर सड़कों पर दौड़ रहा था। यह जनसैलाब बता रहा है कि २०२६ का रास्ता शासक दल के लिए आसान नहीं होगा। आज कमरहाटी गवाह बना—सिर्फ एक रैली का नहीं, बल्कि एक सोए हुए बंगाल के जागने का।

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