किसानाे की जमीन कॉरपोरेट को देना बंद करो

जे टी न्यूज़, मसौढ़ी : आज संयुक्त किसान मोर्चा बिहार द्वारा मसौढ़ी में किसान भूमि अधिकार दिवस मनाया जा रहा है।इस अवसर पर आयोजित किसान महापंचायत को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय वित्त सचिव कृष्णा प्रसाद ने कहा कि केंद्र सरकार और डबल इंजन की बिहार सरकार किसानों की जमीन अधिग्रहण करने में लगी हुई है।वह प्राकृतिक संसाधनों के बहाने कॉरपोरेट संचालित परियोजनाओं के लिए जमीनों का अधिग्रहण धड़ल्ले से कर किसानों को बेदखल करने के खिलाफ तथा भूमि अधिग्रहण पुनर्वास तथा पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 की कार्यान्वयन की मांग को पूरा करने के लिए यह किसान महापंचायत हो रहा है। उन्होंने कहा कि आज देश के किसान गंभीर संकट से गुजर रहे हैं।केंद्र की मोदी सरकार किसानों के खेत खेती और फसल को छीन कर कॉरपोरेट के हाथों में सौंप देना चाहती है।यह जो भूमि सर्वे बिहार में कराया जा रहा है।वह भी पूंजीपतियों और कॉर्पोरेट के लुट के बढ़ावे के लिए हो रहा है।राष्ट्रीय कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति के माध्यम से एक बार चोर दरवाजे से किसान विरोधी तीनों काले कृषि कानूनों को लाना चाहती है। उन्होंने कहा कि भारत दर्शन माला,राम जानकी पथ परियोजना,8 लेन, 6 लेन,गोदाम आदि के नाम पर बिहार के 10 लाख एकड़ से ज्यादा कृषि भूमि की जमीनों को कॉरपोरेट के हाथों में दे दिया गया।इसके अलावे औद्योगिक कॉरिडोर के नाम पर बिहार के सभी जिलों में किसानों की जमीनों को लेने की योजना बनाई जा चुकी है। उन्होंने केंद्रीय बजट 2025 को कॉरपोरेट जगत तथा पूंजीपतियों के लिए बजट बताया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया गया केंद्रीय बजट पूरी तरह से गरीब विरोधी बजट तथा कॉरपोरेट जगत का बजट बताते हुए कहा कि भले ही सकल घरेलू उत्पाद में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों का योगदान बढ़कर 16 प्रतिशत हो गया है, लेकिन कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए बजट आवंटन 2024-25 के संशोधित अनुमानों से कम है। जहां 2024-25 का संशोधित अनुमान 376720.41 करोड़ रुपये था, वहां 2025-26 के लिए आवंटन केवल 371687.35 करोड़ रुपये है। अगर मुद्रास्फीति को ध्यान में रखा जाए, तो यह आवंटन में बहुत बड़ी कटौती है। सही मायने में किसान मोदी सरकार की प्राथमिकता में नहीं हैं। यही कारण है कि एमएसपी को कानूनी दर्जा देने , कृषि बाजार का विस्तार करने या किसानों को कर्ज मुक्त करने के लिए बजट में कुछ भी नहीं है। यहां तक कि लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश को भी अनदेखा कर दिया गया है। रोजगार में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है, यह 2017-18 के 44.1 प्रतिशत से बढ़ कर 2023-24 में 46.1 प्रतिशत हो गई है।
मनरेगा के लिए बजट आवंटन पर की तरह सिर्फ 86,000 करोड़ रुपये रखा गया है। ग्रामीण इलाकों में रोजगार सृजन पर कोई जोर नहीं दिया गया है। सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान के लिए सभी फंड रोक रही है और इसके लिए बजट आवंटन कुछ भी नहीं है।यह ग्रामीण विकास और ग्रामीण गरीबों के प्रति भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की उदासीनता को भी दर्शाता है।

खाद सब्सिडी के लिए किया गया आवंटन भी 2024-25 से कम है। कल्याणकारी योजनाओं के तहत राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेशों को दालों के वितरण के लिए आवंटन शून्य है, जबकि पिछले बजट में इस के लिए 300 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। बहु प्रचारित, 12 लाख रुपये तक आयकर में छूट का उद्देश्य त्वरित चुनावी लाभ प्राप्त करना है। बढ़ती कीमतें, बढ़े हुए अप्रत्यक्ष करो और लगातार होती खाद्य, स्वास्थ्य, शिक्षा, यात्रा व्यय में वृद्धि, के कारण इस छूट के कोई मायने नहीं है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए आवंटन में 15,864 करोड़ रुपये से घटा कर 12,242.27 करोड़ रुपये की भारी कटौती की गई है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के लिए आवंटन में कोई वृद्धि नहीं हुई है । खाद सब्सिडी को 171298.50 करोड़ रुपये से घटाकर 167887.20 करोड़ रुपये कर दिया गया है, यानी 3,411.30 करोड़ रुपये की कटौती की गई है। इस तरह यह स्पष्ट हो गया है कि 2025 का केन्द्रीय बजट कॉरपोरेट के मुनाफे के लिए तथा किसानों ,गरीबों का कमर तोड़ने के लिए बनाया गया है। किसान महापंचायत को मसौढ़ी किसान महापंचायत के संयोजक तथा बिहार राज्य किसान सभा के महासचिव विनोद कुमार,अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव अवधेश कुमार,बिहार राज्य किसान सभा के उपाध्यक्ष प्रभुराज नारायण राव,बिहार के वरिष्ठ नेता अरुण कुमार मिश्र,रामजतन सिंह,सोनेलाल प्रसाद , म.सत्तार, सत्यनारायण सिंह सहित 22 किसान संगठनों के राष्ट्रीय नेता तथा राज्य नेता शामिल हुए।


