बावरे परिंदे
बावरे परिंदे
जे टी न्यूज 
कौन थामे हाथ?
छोड़कर बीच में साथ।
जायें देखिए उड़,
भांति परिंदे, न आते फिर मुड़।
घमंड में हो चूर,
जायें करके चकनाचूर।
हृदयेश्वर महल,
को चुभाकर अनगिनत शूल।
बैठ दूसरी डाल,
पे चलें अनेकानेक चाल।
मगर अफ़सोस,
त्याग स्नेह, खुद को दें परोस।
बनकर “बावरे”,
मिले करते, फिर गुजारे।
समझे पर तब,
लुटे जब चैन-ओ-सुकून सब।
लपटों के घेरे,
में जब, कभी भी घिरे।
आई तब याद,
वो ठंडक जो करे थी आबाद।
परखना “सीख”,
न, मांग दयारूपी भीख।
अपने आप लौटें,
“गिल” तब नहीं फासले कुचेटें।
नवनीत गिल
