सतत विकास का गांधीवादी मार्ग “सादा जीवन, करुणा और उत्तरदायित्व से प्रकृति और समाज का संतुलन”
सतत विकास का गांधीवादी मार्ग
“सादा जीवन, करुणा और उत्तरदायित्व से प्रकृति और समाज का संतुलन”

विश्व के हर हिस्से में जलवायु परिवर्तन, असमान आर्थिक विकास और सामाजिक विभाजन चिंता का विषय हैं । संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य भी यही संदेश देते हैं कि विकास तभी सार्थक होगा जब वह पर्यावरण-संवेदनशील, सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण और आर्थिक रूप से समावेशी हो। ऐसे समय में प्रकृति के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले लोगों में युगपुरुष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं।
गांधीजी का मानना था कि “हमारी आवश्यकता की पूर्ति के लिए इस पृथ्वी पर पर्याप्त संसाधन हैं मगर हमारे लालच के लिए नहीं हैं।” उनका यह कथन आज के प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और जलवायु संकट को देखते हुए एक चेतावनी जैसा लगता है। उन्होंने स्वयं प्रयोग कर प्रमाणित किया कि सादगी, आत्मसंयम, स्वावलंबन और करुणा जैसे मूल्य व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन का आधार है ।
उनका “ग्राम स्वराज” मॉडल आज के विकेंद्रीकरण, सामुदायिक भागीदारी और स्थानीय अर्थव्यवस्था की अवधारणाओं से मेल खाता है । गांवों को स्वावलंबी बनाने की यह सोच आधुनिक ‘लोकल टू ग्लोबल’ विकास रणनीति का मार्ग बन सकता है ।
ji
गांधीजी के दृष्टिकोण में सतत विकास के तीन प्रमुख स्तंभ—आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन सहज रूप से दिखाई देते हैं। आर्थिक स्तंभ में, गांधीजी का ‘ट्रस्टीशिप यानी न्यायसिता’ का सिद्धांत अमीर और उद्योगपति वर्ग को समाज के प्रति उत्तरदायी बनाता है । आज यह कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सी एस आर) और “ग्रीन बिज़नेस” के लिए मार्गदर्शन देता है । सामाजिक स्तंभ में, उन्होंने अस्पृश्यता, जातीय भेदभाव और लैंगिक असमानता के खिलाफ आवाज़ उठाई । यह सोच आज भी सतत विकास लक्ष्य -5 (लैंगिक समानता) और सतत विकास लक्ष्य -10 (असमानता में कमी) जैसे लक्ष्यों को दिशा देती है। पर्यावरणीय स्तंभ में, गांधीजी ने प्रकृति को पूजनीय मानते हुए ‘सादा जीवन’ और सीमित उपभोग का संदेश दिया है । आज यह सोच कार्बन फुटप्रिंट कम करने, अक्षय ऊर्जा और सतत उपभोग जैसी नीतियों को प्रेरित कर सकती है ।
भारत सतत विकास लक्ष्य की दिशा में नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है । “लाइफ़– पर्यावरण के लिये जीवनशैली” जैसी पहल, सौर ऊर्जा मिशन, और ग्रामीण विकास कार्यक्रम गांधीवादी दर्शन के ही आधुनिक रूप हैं। छोटे पैमाने के उद्योग, जैविक खेती, जल-संरक्षण और स्थानीय रोजगार सृजन गांधीजी की सोच को व्यवहार में बदलने की मिसालें हैं।
गांधीजी के विचार हमें यह समझाते हैं कि सतत विकास कोई नया शब्द नहीं, बल्कि जीवन और विकास की एक नैतिक दिशा है । सादगी, स्वावलंबन, करुणा और उत्तरदायित्व जैसे गांधीवादी सिद्धांत न केवल हमारे संसाधनों की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि विकास को मानवीय और न्यायपूर्ण बना सकते हैं। गांधीजी के शब्दों में, “हम पृथ्वी के संसाधनों के स्वामी नहीं, उनके रक्षक हैं।” यही भाव हमें एक ऐसे भविष्य की ओर ले जाएगा जहाँ विकास और नैतिकता, प्रगति और पर्यावरण – सब साथ-साथ चलें।
डॉ विजय कुमार गुप्ता
वरीय सहायक प्राध्यापक,
अर्थशास्त्र विभाग, वीमेंस कॉलेज, समस्तीपुर



